सवाल यह उठता है कि क्या सिंधु
घाटी सभ्यता हिंदू सभ्यता थी। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के हड़प्पा कालीन नगर
कालीबंगा से मिट्टी का शिव लिंगम भी मिला है जो हमें यह सोचने को विवश कर देता है
उस समय लोग शिवलिंगम की आराधना करते होंगे।
कालीबंगा से खुदाई में मिट्टी
का बना शिवलिंगम भी मिला है। यह मंदिरों में स्थापित होने वाले शिवलिंगम जैसा ही
है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह हिंदू सभ्यता रही होगी और लोग तब शिव
की उपासना करते थे। कालीबंगा से हाथी दांत की बनी कलात्मक वस्तुएं भी मिली हैं। जो
इस ओर इंगित करती हैं यह अत्यंत समृद्ध नगर था।
जैसे ही काली बंगा के इस
संग्रहालय के अंदर आप प्रवेश करते हैं। आप कई हजार साल पहले के इतिहास पन्नों पर
पहुंच जाते हैं। कालीबंगा के इस संग्रहालय में कुल तीन गैलरियां हैं। यहां पर 1961
से 1969 तक कुल नौ सत्रों में हुई खुदाई से
मिली वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। ये खुदाई प्रो बी बी लाल, प्रो वीके थापर और प्रो जेपी जोशी की अगुवाई में हुई।
तांबे के हथियार और मूर्तियां

कालीबंगा में उत्खन्न से प्राप्त अवशेषों में मिट्टी और पत्थर के अलावा तांबे
(धातु) से निर्मित औजार, हथियार और मूर्तियां मिली हैं।
इनसे यह प्रकट होती है कि यहां का मानव प्रस्तर युग से ताम्र युग में प्रवेश कर
चुका था। यहां खुदाई में मिट्टी और तांबे के बहने गहने मिले हैं। इन गहनों
कलात्मकता नजर आती है। इससे तब के लोगों के सौंदर्यबोध का भी पता चलता है। इसमें
मिली तांबे की काली चूड़ियों की वजह से ही इस स्थल को कालीबंगा कहा गया।

मिट्टी की बनी मुहरें और लेख - कालीबंगा से सिंधु घाटी (हड़प्पा) सभ्यता की
मिट्टी पर बनी मुहरें मिली हैं, जिन पर वृषभ व अन्य
पशुओं के चित्र और अनजान लिपि में अंकित लेख है जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका
है। वह लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी। इस लिपि को पढ़ने में सफलता मिले तो इस नगर के बारे में और जानकारी मिल सकती है।
बैल, बंदर और पक्षियों की मूर्तियां
- पशुओं में बैल, बंदर व पक्षियों की मूर्तियां
मिली हैं जो पशु-पालन और कृषि में बैल का उपयोग किया जाना प्रकट करता है। इतना ही
नहीं यहां पत्थर से बने तोलने के बाट मिले हैं। इससे पता चलता है कि बाटों का
उपयोग यहां तिजारत में हुआ करता होगा।
मिट्टी के घर और जल निकासी के
लिए नालियां - मोहनजोदडो से अलग
कालीबगां के घर कच्ची ईंटो के बनाए जाते थे। यहां के लोग घर बनाने के लिए सूर्य की रोशनी में पकाई गई मिट्टी के ईंटों का भी
इस्तेमाल करते थे। यहां के मकानों में दरवाजे, चौड़ी
सड़कें, कुएं, नालियां आदि
पूर्व योजना के अनुसार निर्मित मिलते हैं। यह तत्कालीन मानव की नगर-नियोजन, सफाई-व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था के बेहतरीन होने
पर प्रकाश डालते हैं। संग्रहालय में पकी हुई मिट्टी की नालियां दिखाई देती हैं,
जिनका इस्तेमाल घर से जल निकासी के लिए होता होगा।
खेती बाड़ी के लिए हल - कालीबंगा से प्राप्त हल से अंकित रेखाएं भी
प्राप्त हुई हैं जो यह सिद्ध करती हैं कि यहां का मानव कृषि कार्य भी करता था।
इसकी पुष्टि बैल व अन्य पालतू पशुओं की मूर्तियों से भी होती हैं। यहां से बैल और बारहसिंघा की अस्थियों भी प्राप्त हुई हैं।
बच्चों के लिए मिट्टी के खिलौने - कालीबंगा से खुदाई में बैलगाड़ी के खिलौने भी मिले हैं। मिट्टी की बनी
हुई सिटियां भी मिली हैं जिन्हें बजाया जा सकता है। धातु और मिट्टी के खिलौने भी
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की तरह यहां से प्राप्त हुए हैं। इससे पता चलता है कि बच्चों
के मनोरंजन के यहां के लोग ऐसे खिलौने का निर्माण किया करते होंगे। कलात्मक खिलौने
शतरंज से खेल के लिए बने पासे और गोटियां आदि कालीबंगा की समृद्धि की गवाही देते
हैं।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( KALIBANGA, HANUMANGARH, RAJSTHAN )
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धांजलि - मनोहर पर्रिकर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुन्दर चिट्ठा।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुंदर और ऐतिहासिक चित्रों से सुसज्जित, खोजपरक और ज्ञानवर्द्धक आलेख बढ़िया लगा। आपको बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद
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ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी है सर
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है
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