बचपन में अपनी साहित्य के किताब में दिलवाड़ा जैन मंदिर पर एक
अध्याय पढ़ा था। तो माउंट आबू आने पर इस
प्रसिद्ध मंदिर को देखना तो था ही। भोजन के बाद हमलोग मंदिर की ओर चल पड़े हैं। वही
जो कभी हमारे सपनों का मंदिर हुआ करता था, अब वह हकीकत बनने जा रहा है।
माउंट से छह किलोमीटर दूर
दिलवाड़ा में स्थित दिलवाड़ा जैन मंदिर देश के तमाम जैन मंदिरों के बीच बेहतरीन
नक्काशी और कला में अलग स्थान रखता है।श्वेतांबर जैन समाज के इस मंदिर में संगमरमर पर अनूठा काम किया
गया है। मंदिर में प्रवेश से पहले जूते चप्पल बैग आदि जमा कराना पड़ता है। मंदिर
के अंदर कैमरा ले जाना या फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है।
यहां मंदिर के पुजारी दर्शकों
को समूह में मंदिर के अंदर प्रवेश कराते हैं। वही पुजारी मंदिर की विशेषताओं के
बारे में आपको बताते हैं। पर ये पुजारी बड़े ही अनपढ़ और जाहिल किस्म के हैं। वे
गंदे कपड़ो में रहते हैं। ये बड़ी ही घटिया हिंदी में बड़े ही बेहुदे ढंग से मंदिर
के बारे में आपको जानकारी देते हैं। अंत में वे आपके अपने लिए दक्षिणा मांगते हैं।
यह कोई तय राशि नहीं होती। कोई उन्हें सौ दो सौ तो कोई दस बीस दे देता है।
इससे अच्छा हो कि मंदिर प्रबंधन लोगों के लिए आडियो गाइड का प्रबंध करे। जिसे इच्छाहो वह शुल्क लेकर आडियो गाइड लेकर मंदिर में जाए। मंदिर के गाइड पुजारियों के कारण मंदिर परिसर में दिन भर हल्ला गुल्ला और चिल्लपों मची रहती है। इस खूबसूरत जैन मंदिर पर ब्राह्मण पुजारियों का कब्जा है। देलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में बचपन ने मन में जो विशाल छवि थी वह इन पुजारियों के कारण बदरंग हो गई।
इससे अच्छा हो कि मंदिर प्रबंधन लोगों के लिए आडियो गाइड का प्रबंध करे। जिसे इच्छाहो वह शुल्क लेकर आडियो गाइड लेकर मंदिर में जाए। मंदिर के गाइड पुजारियों के कारण मंदिर परिसर में दिन भर हल्ला गुल्ला और चिल्लपों मची रहती है। इस खूबसूरत जैन मंदिर पर ब्राह्मण पुजारियों का कब्जा है। देलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में बचपन ने मन में जो विशाल छवि थी वह इन पुजारियों के कारण बदरंग हो गई।
पांच मंदिरों का समूह - दिलवाड़ा
मंदिर या देलवाडा मंदिर, पांच मंदिरों
का एक समूह है। इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ
था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं। इस मंदिर में जैन धर्म के कई तीर्थंकरों जैसे आदिनाथ जी, नेमिनाथ जी, पार्श्वनाथ जी और महावीर जी की
मूर्तियां स्थापित हैं।
विमल वसाही या श्री आदिनाथजी
मंदिर
दिलवाड़ा के पांच मंदिरों में
से पहला मंदिर विमल वसाही मंदिर पहले जैन तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। सन 1021 में विमल वसाही मंदिर का निर्माण गुजरात के सोलंकी महाराजा विमल शाह ने
किया था। मंदिर एक खुले वर्ग में बनाया गया है। यह मंदिर नक्काशीदार मार्ग, कॉलम, मेहराब और द्वार के साथ सजाया गया है। इस
मंदिर की छत में पौराणिक कथाएं और फूलों का चित्रण किया गया है।
लूना वसाही (श्री नीमी नाथजी
मंदिर)
दिलवाड़ा का दूसरा जैन मंदिर
लूना वसाही 1230 में
बनाया गया। लूना वसाही मंदिर 22 वें जैन तीर्थंकर
भगवान भगवान नेमिनाथ को समर्पित है। मंदिर का मुख्य हॉल रंग मंडप के रूप में जाना
जाता है। इस हॉल में एक नक्काशीदार लटकन वाला एक केंद्रीय गुंबद शामिल है।
पिथलहर या श्री ऋषभ देवजी मंदिर
दिलवाड़ा समूह का तीसरा मंदिर पिथलहर
मंदिर भीमा सेठ द्वारा निर्मित है। इस मंदिर में भगवान ऋषभदेव की एक विशाल मूर्ति
है। यह मूर्ति पांच धातुओं से बनी है। पीतल की संरचना इनमें प्रमुख है। इस तथ्य के
कारण, इसे ‘पिटलर’ के नाम
से जाना जाने लगा। मंदिर में एक गर्भगृह, गुद्ध मंडप
(मुख्य हॉल) शामिल है।
खतरार
वसाही या श्री परशुनाथजी मंदिर- दिलवाड़ा का सबसे बड़ा मंदिर
खतररार वसाही का निर्माण 1459
में मंडलिक द्वारा बनाया गया था। यह तीन मंजिला इमारत 23 वीं जैन तीर्थंकर भगवान
भगवान परशुनाथ को समर्पित है। यह दिलवाड़ा के मंदिर समूहों में सबसे लंबा मंदिर है। जमीन के तल पर,
कक्ष के चारों ओर चार बड़े हॉल हैं। बाहरी दीवारों को ग्रे बलुआ
पत्थर में नक्काशीदार मूर्तियां बनी हैं।
श्री महावीर स्वामीजी मंदिर -
महावीर स्वामी मंदिर अन्य मंदिरों की तुलना में छोटी संरचना है जो भगवान महावीर,
24 वें जैन तीर्थंकर भगवान को समर्पित है। यह सबसे नया मंदिर है। इसका निर्माण 1582 में कराया गया था।
इस मंदिर के छत पर कई सुंदर तस्वीरें उकेरी गई हैं।
दिलवाड़ा के मंदिर इस तरह बनाए गए हैं कि इनकी भव्यता बाहर से नजर नहीं आती। दूर से ये मंदिर समूह भव्य नहीं दिखाई देता है। पर जब आप मंदिर के अंदर प्रवेश करते हैं तो कला शिल्प का चरमोत्कर्ष दिखाई देता है। संगमरमर पर जैसी बारीक कारीगरी यहां की गई है वह आप ताजमहल में नहीं देख सकते।
दिलवाड़ा मंदिर परिसर से बाहर निकलते समय परिसर में एक दुकान है जहां से आप स्मृति चिन्ह की खरीददारी कर सकते हैं। मंदिर के बाहर छोटा सा बाजार है। यहां सालों भर मेले सा माहौल रहता है।
खुलने का समय - दिलवाड़ा जैन मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक जैन श्रद्धालुओं के लिए खुलता है। उसके बाद शाम 6 बजे तक आम श्रद्धालुओं और सैलानियों के लिए खुला रहता है।
धन्यवाद। तकरीबन20 वर्ष पूर्व मेरा वहाँ जाना हुआ था। पुजारी गाइड की बात जान कर दुख हुआ। आशा है यह स्थिति शीघ्र ही सुधरेगी
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 13वीं पुण्यतिथि - अभिनेत्री नादिरा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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