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जिस शहर में आपने कई साल गुजारे हों वहां एक बार फिर पहुंच जाएं तो यादों की अंगनाई में सैकड़ों स्मृतियां ताजी हो जाती हैं। दिसंबर की ठंडी सुबह मे एक बार फिर जालंधर पहुंच गया हूं। हमारी बस ने सुबह 7 बजे के आसपास जालंधर बस स्टैंड में उतार दिया है। पर इस बार मेरी मंजिल जालंधर नहीं है। मुझे सुल्तानपुर लोधी जाना है। हालांकि कपूरथला सुल्तानपुर लोधी तक जाने वाली बस इसी बस स्टैंड से मिल सकती है पर मैंने शहर में कई सालों बाद सुबह की सैर करना तय किया। बस स्टैंड से निकलकर बीएमसी चौक पहुंच गया हूं। वहां से आगे देश भगत यादगार हॉल। जालंधर प्रवास के दौरान ये मेरी पसंदीदा जगह हुआ करती थी जहां अक्सर दोपहर गुजरा करती थी। इस हॉल में एक अच्छी सी लाइब्रेरी भी है। एक बड़ा सभागार है। प्रांगण में कई बार सेल और बाजार भी लगा रहता है।

अब मैं आगे बढ़कर फुटबाल चौक पर पहुंच गया हूं। इसी फुटबाल चौक के बगल में 66 विजय नगर मेरा कई साल तक आवास हुआ करता था। पर फुटबाल चौक नाम क्यों। इसलिए कि इसके बगल में जालंधर की खेल कूद का सामान बनाने वाले इंडस्ट्री है।
बस्ती नौं और बस्ती गुजां में क्रिकेट के बल्ले, फुटबॉल और बैडमिंटन के रैकेट से लेकर खेल के तमाम सामान बनते हैं। तो इसी से जुड़ा चौराहे का नाम है फुटबॉल चौक। चौक के एक कोने में विशाल फुटबाल बनाया गया है। किसी जमाने में यह फुटबाल चौराहे के बीचों बीच था। पर बाद ट्रैफिक की सहूलियत के लिए इसे किनारे कर दिया गया। अगला चौराहा है कपूरथला चौक। यहां से मैं कपूरथला जाने वाली बस में बैठ जाता हूं। अलविदा जालंधर फिर मिलेंगे।
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जिस शहर में आपने कई साल गुजारे हों वहां एक बार फिर पहुंच जाएं तो यादों की अंगनाई में सैकड़ों स्मृतियां ताजी हो जाती हैं। दिसंबर की ठंडी सुबह मे एक बार फिर जालंधर पहुंच गया हूं। हमारी बस ने सुबह 7 बजे के आसपास जालंधर बस स्टैंड में उतार दिया है। पर इस बार मेरी मंजिल जालंधर नहीं है। मुझे सुल्तानपुर लोधी जाना है। हालांकि कपूरथला सुल्तानपुर लोधी तक जाने वाली बस इसी बस स्टैंड से मिल सकती है पर मैंने शहर में कई सालों बाद सुबह की सैर करना तय किया। बस स्टैंड से निकलकर बीएमसी चौक पहुंच गया हूं। वहां से आगे देश भगत यादगार हॉल। जालंधर प्रवास के दौरान ये मेरी पसंदीदा जगह हुआ करती थी जहां अक्सर दोपहर गुजरा करती थी। इस हॉल में एक अच्छी सी लाइब्रेरी भी है। एक बड़ा सभागार है। प्रांगण में कई बार सेल और बाजार भी लगा रहता है।
हर
रविवार को यहां तमाम छोटी बड़ी संस्थाओं के लोग बैठक करने आते हैं। बाबा भगत सिंह बिलगा नहीं रहे। उनकी याद में अब देशभगत
यादगार हॉल में पट्टिका लगी है। उनकी याद में अब यहां बाबा भगत सिंह बिलगा बुक
हाउस खुला है। वे पंजाब के महान क्रांतिकारियों में से एक था। काफी लंबा जीवन
जीया। जालंधर के दिनों में इसी देशभगत यादगार हॉल में उनसे मुलाकात हो जाती थी। 22
मई 2009 को बाबा बिलगा का निधन इंग्लैंड के बरमिंघम में अपने बेटे के आवास पर हो
गया। उनका जन्म 2 अप्रैल 1907 को हुआ था। उनका 102 साल का जीवन काफी तंदुरुस्ती
भरा रहा। हांलाकि वे 102 साल जीने वाली जोहरा सहगल की तरह ही शाकाहारी नहीं थे। गदर
पार्टी से जुड़े बाबा बिलगा बुढ़ापे में भी खूब सक्रिय थे।
यहां से आगे चल पड़ा
हूं। कंपनी बाग चौराहे पर जीपीओ के सामने अब जालंधर का प्रेस क्लब बन गया है।
हमारे जमाने में यहां प्रेस क्लब नहीं था। पैदल चलता हुआ दिलकुशा मार्केट होकर
ज्योति चौक पहुंच गया हूं। अब ज्योति सिनेमा की जगह मार्केटिंग कांप्लेक्स बन गया
था। यहां से नकोदर चौक वाली सड़क पर बढ़ रहा हूं। इसी रोड पर जालंधर की प्रसिद्ध
मिठाइयों की दुकान लवली स्वीट्स है। अब उनका कारोबार मिठाइयों से आगे बढ़कर
यूनीवर्सिटी तक चला गया है। जालंधर फगवाड़ा के बीच लली प्रोफेशनल यूनीवर्सिटी
मित्तल बंधुओं की है।
नकोदर चौक से फुटबाल चौक के रास्ते में कुंदन लाल सहगल
मेमोरियल हॉल है। महान गायक केएल सहगल जालंधर के रहने वाले थे। उनकी याद में ये मेमोरियल
बना है। वैसे जालंधर गजलगो सुदर्शन फाकिर का भी शहर है जिनकी लिखी कई गजलें जगजीत
सिंह ने गाई हैं। ( अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें... ये दौलत भी ले लो...ये
शोहरत भी ले लो...भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, पर मुझको लौटा दो, बचपन का सावन,
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी ) 18 फरवरी 2008 को इस महान शायर का गुमनामी में
ही निधन हो गया। जालंधर पंजाबी के महान लेखक हरनाम दास सहराई का शहर है। प्रेम
प्रकाश, जसवंत सिंह विरदी, वरियाम सिंह संधू का शहर है। कभी इन सब लोगों से
गुफ्तगू करने का मौका मिला था मुझे इस शहर में।

अब मैं आगे बढ़कर फुटबाल चौक पर पहुंच गया हूं। इसी फुटबाल चौक के बगल में 66 विजय नगर मेरा कई साल तक आवास हुआ करता था। पर फुटबाल चौक नाम क्यों। इसलिए कि इसके बगल में जालंधर की खेल कूद का सामान बनाने वाले इंडस्ट्री है।
बस्ती नौं और बस्ती गुजां में क्रिकेट के बल्ले, फुटबॉल और बैडमिंटन के रैकेट से लेकर खेल के तमाम सामान बनते हैं। तो इसी से जुड़ा चौराहे का नाम है फुटबॉल चौक। चौक के एक कोने में विशाल फुटबाल बनाया गया है। किसी जमाने में यह फुटबाल चौराहे के बीचों बीच था। पर बाद ट्रैफिक की सहूलियत के लिए इसे किनारे कर दिया गया। अगला चौराहा है कपूरथला चौक। यहां से मैं कपूरथला जाने वाली बस में बैठ जाता हूं। अलविदा जालंधर फिर मिलेंगे।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य Email - vidyutp@gmail.com
( JALANDHAR, PUNJAB, FOOTBAL CHAUK, KL SAHGAL )
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सुन्दर छोटी सी घुमक्क्ड़ी। कई बार ऐसे ही किसी जाने पहचाने शहर में लौटना सुकून दे जाता है।
ReplyDeleteहां भाई, सही कहा।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वीं जयंती - अमरनाथ झा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
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