
गुजरात में मां अंबा भवानी के दर्शन
के बाद अब वापस लौटना है। यह हमारी छोटी सी गुजरात यात्रा थी। हमारा अगला पड़ाव है जोधपुर। यह अंबाजी मंदिर के मुख्य द्वार के पास से ही आबू रोड रेलवे स्टेशन के लिए
शेयरिंग टैक्सियां चलती हैं। भरेगी तो चलेगी के हिसाब से। हमने टैक्सी में जगह ले
ली है, पर टैक्सी के भरने में थोड़ा वक्त लगा। सामान टैक्सी की छत पर जमा दिया है। टैक्सी वाले
तीन की सीट पर चार लोगों को बिठा रहे हैं। मतलब गुजरात और बिहार में कोई अंतर नहीं। पर सफर ज्यादा लंबा नहीं है इसलिए थोड़ा समझौता
किया जा सकता है। एक बार फिर राजस्थान में प्रवेश करके हमलोग आबू रोड रेलवे स्टेशन
के बाहर पहुंच चुके हैं। यहां से जोधपुर बस से भी जाया जा सकता है। पर हमने रेल का सफर
सुविधाजनक रहेगा यह सोचकर रेल से जाना तय किया है।
अब हमें इंतजार है 19223 अहमदाबाद जम्मूतवी एक्सप्रेस का। यह ट्रेन हमें जोधपुर तक पहुंचाएगी। हमने पता लगाया कि इसमें दो जनरल डिब्बे आगे दो बीच में और एक पीछे लगता है। हम बीच में खड़े हैं।
अब हमें इंतजार है 19223 अहमदाबाद जम्मूतवी एक्सप्रेस का। यह ट्रेन हमें जोधपुर तक पहुंचाएगी। हमने पता लगाया कि इसमें दो जनरल डिब्बे आगे दो बीच में और एक पीछे लगता है। हम बीच में खड़े हैं।
आबू रोड रेलवे स्टेशन देखने में अच्छा है। बड़ा
रेलवे स्टेशन है। भीड़ ज्यादा नहीं है। स्टेशन परिसर की सफाई अच्छी है। ट्रेन आधे घंटे से ज्यादा
लेट है तो स्टेशन पर थोड़ी पेट पूजा। माधवी और वंश ने कैंटीन में खाया। मैं स्टेशन के बाहर निकल कर आया। वहां एक प्याज
कचौरी की दुकान से कचौरी खाई। आर्डर करने पर उन्होंने कचौरी को बड़ी सी कैंची से
चार हिस्सों में काट दिया और उसपर चटनी उड़ेल दी।
वैसे आबू रोड प्रसिद्ध है अपनी रबड़ी के लिए। स्टेशन के बाहर कई रबड़ी की दुकानें हैं तो स्टेशन परिसर में भी आबू की रबड़ी की दुकाने हैं। कुछ लोग कहते हैं कि आबू की रबड़ी की गुणवत्ता अब कम हुई है। पर अभी भी लोग यहां की रबड़ी खूब खाते हैं।
वैसे आबू रोड प्रसिद्ध है अपनी रबड़ी के लिए। स्टेशन के बाहर कई रबड़ी की दुकानें हैं तो स्टेशन परिसर में भी आबू की रबड़ी की दुकाने हैं। कुछ लोग कहते हैं कि आबू की रबड़ी की गुणवत्ता अब कम हुई है। पर अभी भी लोग यहां की रबड़ी खूब खाते हैं।
तो 3.30 वाली ट्रेन आ गई है शाम को 4
बजे। यहां पर 10 मिनट का ठहराव है। थोड़े संघर्ष के बाद जनरल डिब्बे में हमें
बैठने को जगह मिल गई। एक पंजाब जाने वाले भाई ऊपर वाले बर्थ पर सो रहे थे। लाख आग्रह
पर बैठने को तैयार नहीं हुए। माधवी और वंश ने उपर वाली बर्थ पर तो मैंने नीचे अपने
लिए सीट का इंतजाम किया। चार घंटे से ज्यादा का सफर है। रास्ते में फालना, मारवाड़
जंक्शन, पाली मारवाड़ और लूनी जंक्शन प्रमुख स्टेशन पड़ते हैं।
एक स्टेशन आया रानी। ट्रेन वहां नहीं रुकी। पर रानी स्टेशन है तो भारतीय रेलवे की पटरियों पर कोई राजा स्टेशन भी होना चाहिए। मारवाड़ जंक्शन पर प्लेटफार्म नंबर एक की चलंत ट्राली से हमने पकौड़े लेकर खाए। शाम गहरा चुकी है।
एक स्टेशन आया रानी। ट्रेन वहां नहीं रुकी। पर रानी स्टेशन है तो भारतीय रेलवे की पटरियों पर कोई राजा स्टेशन भी होना चाहिए। मारवाड़ जंक्शन पर प्लेटफार्म नंबर एक की चलंत ट्राली से हमने पकौड़े लेकर खाए। शाम गहरा चुकी है।
अगला स्टेशन है पाली मारवाड़। इस शहर
के एक सज्जन मेरे पड़ोस में बैठे हैं। उन्होने बताया कि राजस्थान का पाली शहर पूरे
देश में मेटल की चूड़ियों के निर्माण के लिए जाना जाता है। पूरे शहर के हर मुहल्ले
में मेटल की चूड़ियां बनती हैं। ये चूड़ियां टूटती नहीं हैं और इसमें तमाम रंग और
डिजाइन बन जाते हैं। इसलिए इन मेटल की चूड़ियों ने फिरोजाबाद की सीसे की चूड़ियों
का बाजार मंदा कर दिया है।
लूनी जंक्शन से ट्रेन आगे बढ़ चुकी है। रात साढ़े आठ बजे हमलोग जोधपुर पहुंच चुके हैं। मैं दूसरी बार जोधपुर पहुंचा हूं पर अनादि और माधवी पहली बार। रेलवे स्टेशन पर सुंदर नक्काशियों ने मन मोह लिया। तो अब बाहर चलें।
लूनी जंक्शन से ट्रेन आगे बढ़ चुकी है। रात साढ़े आठ बजे हमलोग जोधपुर पहुंच चुके हैं। मैं दूसरी बार जोधपुर पहुंचा हूं पर अनादि और माधवी पहली बार। रेलवे स्टेशन पर सुंदर नक्काशियों ने मन मोह लिया। तो अब बाहर चलें।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य Email - vidyutp@gmail.com
(AMBAJEE, ABU ROAD, MARWAR, PALI MARWAR, LUNI JN, JODHPUR )
(AMBAJEE, ABU ROAD, MARWAR, PALI MARWAR, LUNI JN, JODHPUR )
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 136वां बलिदान दिवस - वासुदेव बलवन्त फड़के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteरोचक वृत्तांत। अगली कड़ी का इन्तजार है।
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