
झीलें उदयपुर शहर की शान हैं। शहर की पहचान है। अलग अलग मेवाड़
राजाओं ने पानी की कीमत को पहचानते हुए जल संरक्षण के लिए इन झीलों का निर्माण
कराया। पर संरक्षण के लिहाज से देखें तो ये झीलें भी उपेक्षा के दौर से गुजर रही
हैं। लेक पिछोला गणगौर घाट पर पूजा पाठ के नाम पर लोग गंदगी फैलाते हैं। बड़े
पैमाने पर पूजा फूल फेंक कर झील के पानी को गंदा किया जा रहा है।
सिटी पैलेस के ठीक पीछे लोगों ने प्लास्टिक की बोतलें और गंदगी
फेंक कर झील के पानी निहायत ही गंदाकर रखा है। हालांकि बीच में झील का पानी साफ
दिखाई देता है।
प्रशासन की ओर से हर झीलों की सफाई पर ध्यान दिया जाता है।पर बिना
जन भागीदारी के यह संभव नहीं है। लेक पिछोला में हमें कचरा साफ करने वाली मशीन
चलती हुई दिखाई दे जाती है। यह मशीन झील की जलकुंभी और घास को साफ करती है साथ ही
कचरा भी निकालती है।
रंग सागर कुम्हेरिया सागर तालाब
के आसपास और फतेह सागर झील के पास कचरे का अंबार लगा होने के साथ प्लास्टिक की
थैलियां बिखरी पड़ी दिखाई देती है। साल 2017 में राजस्थान हाईकोर्ट को उदयपुर की
झीलों की सफाई के लिए आदेश देना पड़ा। साथ ही अदालत ने कहा कि झील सिर्फ सैलानियों
के लिए बल्कि शहरवासियों के लिए भी है।
हर साल मानसून से पहले उदयपुर की
इन कृत्रिम झीलों की सफाई के लिए बड़ा अभियान चलाया जाता है। पर उसका पूरा फायदा
नहीं मिल पाता। पर्यावरणविदों ने चेताया है कि झील किनारों पर भारी मात्रा में पड़ा प्लास्टिक,
पॉलीथिन कचरा बरसाती
प्रवाह के साथ झील में समाकर
नागरिकों के लिए कैंसर व नपुसंकता जैसे रोगों का कारक बन जाता है। पर हम लोग इस
बड़े खतरे को लेकर कितने जागरूक हैं।
उदयपुर की झीलों को बचाने के लिए झील क्षेत्र में पटाखों एवं आतिशबाजी पर प्रभावी प्रशानिक रोक की जरुरत है। इससे पक्षियों के जीवन पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है। सर्दियों में आनेवाले प्रवासी पक्षी इससे परेशान होकर अपना ठिकाना बदल सकते हैं। वहीं झीलों को दीपावली के वर्ष भर के कचरे का विसर्जन स्थल बनाना दुखद है।
उदयपुर की झीलों को बचाने के लिए झील क्षेत्र में पटाखों एवं आतिशबाजी पर प्रभावी प्रशानिक रोक की जरुरत है। इससे पक्षियों के जीवन पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है। सर्दियों में आनेवाले प्रवासी पक्षी इससे परेशान होकर अपना ठिकाना बदल सकते हैं। वहीं झीलों को दीपावली के वर्ष भर के कचरे का विसर्जन स्थल बनाना दुखद है।
उदयपुर शहर में झील मित्र
संस्थान,
झील संरक्षण समिति जैसी संस्थाएं कई बार लोगों को जागरूक करने के
लिए झीलों की सफाई के लिए अभियान चलाती हैं। लोगों से झील को पालीथीन मुक्त और
कचरा मुक्त बनाने की अपील की जाती है।
वैसे उदयपुर की झीलों में कपड़े
धोना, नहाना पशुओं को धोना, वाहनों को धोना आदि प्रतिबंधित है। फतेहसागर झील के पास लगे एक बोर्ड पर जानकारी दी गई है इस झील को सीवरेज से मुक्त किया जा चुका है।
अगर कोई कचरा फेंकता पाया गया तो उसकी फोटो अपलोड कर दी जाएगी और जुर्माना किया जाएगा। पर लोग मानते कहां हैं। सुबह सुबह कई लोग झील में स्नान करते दिखाई दे जाते हैं।
कभी जिस झील नाम उसकी पानी की स्वच्छता के कारण दूध तलाई दिया गया था। अब उसका पानी दूध के जैसा बिल्कुल नहीं रह गया है। कई जगह नदियों और तालाबों के जल को स्वच्छ रखने के लिए भावुक संदेश भी लिखे गए हैं। पर सैलानियों और स्थानीय लोगों पर इसका असर भी होना चाहिए। जरा सोचिए जिस दिन आखिरी नदी जहरीली हो जाएगी उस दिन तक काफी देर हो चुकी होगी।
अगर कोई कचरा फेंकता पाया गया तो उसकी फोटो अपलोड कर दी जाएगी और जुर्माना किया जाएगा। पर लोग मानते कहां हैं। सुबह सुबह कई लोग झील में स्नान करते दिखाई दे जाते हैं।
कभी जिस झील नाम उसकी पानी की स्वच्छता के कारण दूध तलाई दिया गया था। अब उसका पानी दूध के जैसा बिल्कुल नहीं रह गया है। कई जगह नदियों और तालाबों के जल को स्वच्छ रखने के लिए भावुक संदेश भी लिखे गए हैं। पर सैलानियों और स्थानीय लोगों पर इसका असर भी होना चाहिए। जरा सोचिए जिस दिन आखिरी नदी जहरीली हो जाएगी उस दिन तक काफी देर हो चुकी होगी।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य
(UDAIPUR, LAKE, CLEANING DRIVE )
(UDAIPUR, LAKE, CLEANING DRIVE )
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