शाम के चार बजे हैं और हमलोग पहुंच गए हैं रणकपुर। पार्किंग में गाड़ी
लगाने के बाद मंदिर परिसर में दर्शन के लिए चल पड़े। शाम की गुनगुनी धूप में मंदिर
काफी सुंदर लग रहा है। ताजमहल की तरह रणकपुर का जैन मंदिर संगमरमर की सुंदर संरचना
है।
राजस्थान के रणकपुर का जैन मंदिर न सिर्फ राजस्थान के बल्कि देश के
सबसे सुंदर नक्काशी वाले मंदिरों में से एक है। यह राजस्थान के पाली जिले में
सादडी के पास स्थित है। रणकपुर उदयपुर जोधपुर मार्ग पर है।
अरावली पर्वत की घाटियों के
मध्य स्थित रणकपुर में ऋषभदेव का चतुर्मुखी जैन मंदिर है। चारों ओर जंगलों से घिरे
इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है।
मुख्य मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित चौमुख मंदिर है। यह मंदिर चारों
दिशाओं में खुलता है। चारों
ओर द्बार होने से कोई भी श्रद्धालु किसी भी दिशा से भगवान आदिनाथ के दर्शन कर सकता
है। हल्के रंग के संगमरमर का बना यह मन्दिर बहुत सुंदर लगता है। इस मंदिर का निर्माण 1439 में
हुआ था। संगमरमर से बने इस खूबसूरत मंदिर में 29 विशाल कमरे हैं जहां 1444 खंबे निर्मित हैं। मंदिर में 1444 खंभे है कमरों का
निर्माण इस तरह किया गया है कि मुख्य पवित्र स्थल के दर्शन में बाधा नहीं पहुंचती
है। इन खंबों पर अति सुंदर नक्काशी की गई है और छत का स्थापत्य देखकर तो लोग चकित रह जाते हैं।
यहां संगमरमर के
टुकड़े पर भगवान ऋषभदेव के पदचिन्ह भी है। यह पदचिन्ह भगवान ऋषभदेव तथा शत्रुंजय
की शिक्षाओं की याद दिलाते हैं।
यह मन्दिर लगभग 40,000
वर्गफीट में फैला है। रणकपुर के जैन मन्दिर को
धर्म और आस्था के साथ शिल्प का चमत्कार कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
यह उत्तर भारत के श्वेताम्बर जैन
मंदिर में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस मंदिर परिसर में दो और मंदिर है जिनमें भगवान पार्श्वनाथ और
नेमिनाथ की प्रतिमाएं प्रतिष्ठापित की गई हैं। यहां राजस्थान की जैन कला और
धार्मिक परंपरा का अपूर्व प्रदर्शन दिखाई देता है।
मंदिर का निर्माण -
रणकपुर जैन मंदिर का निर्माण चार जैन श्रद्धालुओं आचार्य श्यामसुंदर जी,
धरनशाह, राणा कुंभा तथा देपा ने कराया। धरनशाह
राणा कुंभा के मंत्री थे। धरनशाह ने धार्मिक प्रवृतियों से प्रेरित होकर भगवान
ऋषभदेव का मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। मंदिर के निर्माण के लिए धरनशाह को राणा कुंभा
ने जमीन प्रदान की। उन्होंने मंदिर के समीप एक नगर बसाने का भी सुझाव दिया। राणा
कुम्भा के नाम पर ही इसे रणपुर कहा गया जो आगे चलकर रणकपुर नाम से जाना जाने लगा।
मंदिर के पास श्रद्धालुओं के
रहने के लिए अतिथिशाला बनी हुई है। भोजनालय का भी इंतजाम है। हालांकि ज्यादातर
श्रद्धालु उदयपुर या जोधपुर से आते हैं और दर्शन करके वापस लौट जाते हैं।
रणकपुर जैन मंदिर के आंतरिक भाग में घूम रहा था कि एक सुंदर सी लड़की हमारे पास आई और अंगरेजी में पूछा क्या मैं आपको इस मंदिर की विशेषताओं के बारे में बताउं। मैंने पूछा आपका परिचय। उसने कहा मैं मंदिर के एक पुजारी की बेटी हूं। मुंबई रहकर 10वीं में पढ़ रही हूं। अभी छुट्टियों इधर आई हूं। वे इस गाइड के लिए कुछ शुल्क की भी आकांक्षी थीं। मंदिर के तमाम पुजारी भी ऐसा करते हैं। उनका लक्ष्य खासतौर पर विदेशी नागरिक होते हैं जो ज्यादा पैसे दे सकें। क्योंकि गाइड शुल्क कुछ तय नहीं है। यहां भी आडियो गाइड हो तो अच्छा रहेगा।
रणकपुर जैन मंदिर के आंतरिक भाग में घूम रहा था कि एक सुंदर सी लड़की हमारे पास आई और अंगरेजी में पूछा क्या मैं आपको इस मंदिर की विशेषताओं के बारे में बताउं। मैंने पूछा आपका परिचय। उसने कहा मैं मंदिर के एक पुजारी की बेटी हूं। मुंबई रहकर 10वीं में पढ़ रही हूं। अभी छुट्टियों इधर आई हूं। वे इस गाइड के लिए कुछ शुल्क की भी आकांक्षी थीं। मंदिर के तमाम पुजारी भी ऐसा करते हैं। उनका लक्ष्य खासतौर पर विदेशी नागरिक होते हैं जो ज्यादा पैसे दे सकें। क्योंकि गाइड शुल्क कुछ तय नहीं है। यहां भी आडियो गाइड हो तो अच्छा रहेगा।
मंदिर में आंतरिक हिस्से में
फोटोग्राफी के लिए शुल्क देना पड़ता है। मंदिर के अंदर निक्कर बारमूडा पहनकर नहीं
जा सकते हैं। ऐसे लोगों के लिए यहां पायजामा किराये पर उपलब्ध है। सौ रुपये सुरक्षा राशि देकर पायजामा मिलता है। वापस करने पर 80 रुपये लौटा दिए जाते हैं। मंदिर परिसर में
पेयजल और शौचालय आदि का इंतजाम है।
कैसे पहुंचे –
रणकपुर की दूरी उदयपुर से 96 किलोमीटर है। यह जोधपुर जाने वाले मार्ग पर स्थित है।
आप जोधपुर से भी रणकपुर पहुंच सकते हैं। जोधपुर से रणकपुर की दूरी 155 किलोमीटर
है। एक बात और . उदयपुर मेवाड़ है तो जोधपुर मारवाड. रणकपुर मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
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( PALI,
RAJSTHAN, RANAKPUR, JAIN TEMPLE, SHEWTAMBAR )
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