हल्दी घाटी में हम सबसे पहले बादशाही बाग में पहुंचे हैं। यह हल्दी
घाटी से ठीक पहले खमनोर ग्राम में स्थित है। अब यह सुंदर सजा संवरा उद्यान दिखाई
देता है। पर कभी यह युद्ध का मैदान था।
बादशाही बाग वह जगह है जहां 21 जून 1576 को पहली बार मुगल और महाराणा प्रताप की सेना का आमना सामना हुआ। इस पहली बार के युद्ध में प्रताप की सेना ने मुगलों की सेना को मुश्किल में डाल दिया था। बादशाही बाग में एक पट्टिका लगाकर इसकी जानकारी दी गई है। पार्क में कई तरह के फूल खिले हैं और चिड़ियों का बसेरा है। दोपहर भी सुहानी लग रही है। हरे भरे बाग में कुछ घंटे सैर करने के बाद हमलोग आगे बढ़ चले।
बादशाही बाग वह जगह है जहां 21 जून 1576 को पहली बार मुगल और महाराणा प्रताप की सेना का आमना सामना हुआ। इस पहली बार के युद्ध में प्रताप की सेना ने मुगलों की सेना को मुश्किल में डाल दिया था। बादशाही बाग में एक पट्टिका लगाकर इसकी जानकारी दी गई है। पार्क में कई तरह के फूल खिले हैं और चिड़ियों का बसेरा है। दोपहर भी सुहानी लग रही है। हरे भरे बाग में कुछ घंटे सैर करने के बाद हमलोग आगे बढ़ चले।
हमारा पड़ाव है हल्दीघाटी संग्रहालय। संग्रहालय के रास्ते में एक
जगह सड़क दो तरफ ऊंचेपहाड़ से होकर गुजरती है। यहां देखने में आया कुछ लोग रुक कर
मिट्टी काट रहे हैं। पता चला कि काफी लोग हल्दी घाटी की मिट्टी जो देखने में हल्दी
के रंग की लगती है यहां से काट कर स्मृति के लिए ले जाते हैं। पर यह क्या अच्छी
बात है। इस मिट्टी के काटने से चट्टान खोखली होती जा रही है।
हल्दी घाटी संग्रहालय के के पास दिन भर चहल पहल रहती है। बाहर खाना
नास्ता, चाय की दुकाने हैं। कार पार्किंग के लिए काफी जगह है। साथ ही आप यहां ऊंट
की सवारी का भी मजा ले सकते हैं। हल्दी घाटी युद्ध की याद में बना यह संग्रहालय
यहां के स्थानीय लोगों ने निजी प्रयास से बनाया है। संग्रहालय में प्रवेश के लिए
टिकट है। इस टिकट में एक आधे घंटे का शो दिखाया जाता है। हल्दी घाटी के युद्ध पर
केंद्रित है यह शो।
इस शो में हल्दी घाटी की लड़ाई के कथानक को बड़ी ही निष्पक्षता से
लोगों को सरल भाषा में समझाने की कोशिश की गई है। वरना इतिहास को लेकर तो पढ़े
लिखे लोगों में काफी भ्रम रहता है। इस शो के बाद एक मल्टी मीडिया एग्जबिशन है। यह
खास तौर पर बच्चों के लिए काफी रोचक है। इसमें महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े
प्रसंगों को बड़ी रोचकता से पिरोया गया है। आमतौर पर लोग हल्दी घाटी में दो घंटे
बीताते हैं। यहां पर महाराणा प्रताप समेत हल्दी घाटी के युद्ध के मैदान को विशाल
चित्रों में दिखाया गया है। यह सब कुछ देखना काफी रुचिकर लगता है। सैलानियों को यह
संग्रहालय आनंदित करता है।
परिसर में हस्तशिल्प वस्तुओं की दुकान भी है। यहां के एक सरोवर के
चारों तरफ मूर्तियां और प्रदर्शनी बनी है। एक बड़ी दुकान भी है जहां आप कपड़े और
तमाम तरह की सामग्री खरीद सकते हैं।
पर इन सबसे आगे बढ़कर वहां कुछ ग्रामीण परिवेश की वस्तुएं
प्रदर्शित की गई हैं जो शहरी लोगों के लिए काफी कुछ नया हो सकती हैं। मसलन यहां पर
एक गन्ने का रस निकालने वाला बैल कोल्हू लगातार चलता रहता है। आप आर्डर करें और वह
बिना बर्फ वाला एक गिलास गन्ने का रस निकाल कर दे देते हैं। जी हां 15 रुपये में
एक गिलास। अनादि ने पीया और उन्हें मजा भी आया। संग्रहालय परिसर में एक अच्छी
कैंटीन भी है जहां आप पेट पूजा कर सकते हैं। तो अब चलें आगे... बात करेंगे बहादुर घोड़े चेतक
की...
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विद्युत प्रकाश मौर्य Email - vidyutp@gmail.com
( HALDIGHATI, RAJSTHAN, MAHARANA PRATAP )
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