इस बार दसहरे की छुट्टियों में हमने सैर की छोटी योजना बनायी। पूरे परिवार के साथ। दिल्ली से उदयपुर, माउंट आबू और जोधपुर होते हुए दिल्ली
वापसी। राजस्थान का यही शहर है उदयपुर जहां हमारा जाना अभी तक हुआ नहीं था। मुख्य
रूप से दिल्ली से उदयपुर जाने के लिए दो रेलगाड़ियां चलती हैं। मेवाड़ एक्सप्रेस
और चेतक एक्सप्रेस। हमारा आरक्षण मेवाड़ एक्सप्रेस में है। हमलोग नियत समय से पहले
हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर पहुंच गए। ट्रेन के लिए एक घंटे के इंतजार में ये देखा
कि प्लेटफार्म नंबर 6-7 पर कहीं बैठने की बेंच नहीं नजर आ रही हैं। तो प्लेटफार्म
पर नीचे बिछाकर बैठने के लिए बुक स्टाल पुराना अखबार भी पांच रुपये में खरीदना
पड़ा। खैर हमारा कोच जहां हम बैठे थे ठीक उसके सामने ही आकर लगा।
माधवी को बहुत दिनों बाद स्लीपर क्लास में बैठने का मौका मिला था। कई बार वे स्लीपर क्लास की गंदगी देखकर भन्ना उठती हैं। पर मेवाड़ एक्सप्रेस ने नाराज होने का मौका नहीं दिया। हमलोग घर से खाना बनाकर पैक करके चले थे। तो डिनर करके सोने की तैयारी करने लगे। हमारे आसपास दिल्ली के शिक्षकों का एक बड़ा समूह जा रहा है जो उदयपुर –चितौड़गढ की सैर करने जा रहा है। तो हमारे समाने वाले मास्टर जी सरल सीधे सादे सज्जन हैं पर पर उनकी बीवी चुस्त है। सुबह हुई तो हम चितौड़गढ़ रेलवे स्टेशन पर थे। मास्टर जी वाला समूह यहीं उतर गया। यहां से उदयपुर की दूरी 110 किलोमीटर है। मैं चित्तौड़गढ़ पहले घूम चुका हूं। अगला स्टेशन कापसान है। यहां काफी लोग उतर गए।
कापसान में एक पीर बाबा की मजार है। तो यहां काफी लोग आते हैं। अगला स्टेशन मावली जंक्शन है। इसके सूरज चढ़ रहा है और हमलोग झीलों के शहर के करीब पहुंचते जा रहे हैं। उदयपुर सिटी एक साफ सुथरा रेलवे स्टेशन है। हमारी गाड़ी प्लेटफार्म नंबर एक पर आकर लग गई है। उदयपुर घूमने आई कुछ बालाएं बड़ी नाजो अदा के संग स्टेशन के नाम के साथ अपनी तस्वीरें खिचवां रही हैं। तो भला हम क्यों पीछे रहे हैं।
उदयपुर सिटी के साथ हमारी भी तस्वीर होनी चाहिए। इस सजे संवरे रेलवे
स्टेशन पर बहुत कम रेलगाड़ियां ही यहां रोज आती हैं। स्टेशन के आसपास नया शहर बसा
हुआ है। इधर नए नए होटल बने हैं। पर हमारा होटल पुराने उदयुपर में हैं।
एक दिन पहले दिल्ली मे ही होटल हेरिटेज हवेली के केयर टेकर नदीम भाई का फोन आ गया था। उन्होने कहा था स्टेशन से उतर कर आटो रिक्शा ले लिजिएगा। उन्होने होटल का लोकेशन भी बताया था लेक पिछोला में वाकिंग ब्रिज के पास है ये होटल जगदीश मंदिर से थोड़ा आगे। हमने कुरता पायजमा और लंबी दाढ़ी में अवतरित हुए एक बुजुर्ग मुस्लिम आटो रिक्शा वाले को होटल का पता बताया। वे बोले 80 रुपये। मैंने कहा ठीक है चलिए। पर इससे पहले उदयपुर रेलवे स्टेशन की कुछ तस्वीरें और सेल्फी तो हो जाए।
स्टेशन के बाहर महाराणा प्रताप की तस्वीर लगी है। स्टेशन भवन पर हल्दीघाटी युद्ध के रेखा चित्र बने हैं। उदयपुर रेलवे स्टेशन से निकलकर शहर को निहारते हुए अब हम पुराने उदयपुर शहर की ओर बढ़ रहे हैं।
माधवी को बहुत दिनों बाद स्लीपर क्लास में बैठने का मौका मिला था। कई बार वे स्लीपर क्लास की गंदगी देखकर भन्ना उठती हैं। पर मेवाड़ एक्सप्रेस ने नाराज होने का मौका नहीं दिया। हमलोग घर से खाना बनाकर पैक करके चले थे। तो डिनर करके सोने की तैयारी करने लगे। हमारे आसपास दिल्ली के शिक्षकों का एक बड़ा समूह जा रहा है जो उदयपुर –चितौड़गढ की सैर करने जा रहा है। तो हमारे समाने वाले मास्टर जी सरल सीधे सादे सज्जन हैं पर पर उनकी बीवी चुस्त है। सुबह हुई तो हम चितौड़गढ़ रेलवे स्टेशन पर थे। मास्टर जी वाला समूह यहीं उतर गया। यहां से उदयपुर की दूरी 110 किलोमीटर है। मैं चित्तौड़गढ़ पहले घूम चुका हूं। अगला स्टेशन कापसान है। यहां काफी लोग उतर गए।
कापसान में एक पीर बाबा की मजार है। तो यहां काफी लोग आते हैं। अगला स्टेशन मावली जंक्शन है। इसके सूरज चढ़ रहा है और हमलोग झीलों के शहर के करीब पहुंचते जा रहे हैं। उदयपुर सिटी एक साफ सुथरा रेलवे स्टेशन है। हमारी गाड़ी प्लेटफार्म नंबर एक पर आकर लग गई है। उदयपुर घूमने आई कुछ बालाएं बड़ी नाजो अदा के संग स्टेशन के नाम के साथ अपनी तस्वीरें खिचवां रही हैं। तो भला हम क्यों पीछे रहे हैं।
एक दिन पहले दिल्ली मे ही होटल हेरिटेज हवेली के केयर टेकर नदीम भाई का फोन आ गया था। उन्होने कहा था स्टेशन से उतर कर आटो रिक्शा ले लिजिएगा। उन्होने होटल का लोकेशन भी बताया था लेक पिछोला में वाकिंग ब्रिज के पास है ये होटल जगदीश मंदिर से थोड़ा आगे। हमने कुरता पायजमा और लंबी दाढ़ी में अवतरित हुए एक बुजुर्ग मुस्लिम आटो रिक्शा वाले को होटल का पता बताया। वे बोले 80 रुपये। मैंने कहा ठीक है चलिए। पर इससे पहले उदयपुर रेलवे स्टेशन की कुछ तस्वीरें और सेल्फी तो हो जाए।
स्टेशन के बाहर महाराणा प्रताप की तस्वीर लगी है। स्टेशन भवन पर हल्दीघाटी युद्ध के रेखा चित्र बने हैं। उदयपुर रेलवे स्टेशन से निकलकर शहर को निहारते हुए अब हम पुराने उदयपुर शहर की ओर बढ़ रहे हैं।
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