कोटला जो कभी दिल्ली का
पांचवां शहर था...
दिल्ली के आईटीओ के पास स्थित
है कोटला का किला। आईटीओ से दिल्ली गेट की ओर जाते हुए दाहिनी तरफ अंदर जाकर आप
किले के प्रवेश द्वार पर पहुंच सकते हैं। यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर
से संरक्षित स्मारक है। किले में प्रवेश के लिए टिकट लेना पड़ता है। किले का दायरा
बहुत बड़ा नहीं है। एक घंटे में आप पूरा किला घूम सकते हैं।
फिरोज शाह कोटला दिल्ली का एक किला है, जिसे 1360 में फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया था। तब उसने नगर का नाम दिया था
फिरोजाबाद। उस समय यह दिल्ली का पांचवे शहर था। किले के अवशेषों के साथ - साथ
जामा मस्जिद और अशोक स्तम्भ के बचे अवशेष भी फिरोजाबाद में स्थित हैं। फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली के फिरोजबाद के अलावा पंजाब का फिरोजपुर,
हरियाणा का फतेहाबाद, हिसार और यूपी में जौनपुर जैसे नगर बसाए थे। उसने कुल 300 नए
शहरों की स्थापना की थी।
फिरोज शाह तुगलक अपने चाचा
मुहम्मद बिन तुगलक से राज-गद्दी छीनने के बाद 1354 में फिरोज शाह कोटला किले का निर्माण शुरू करवाया था। फिरोज शाह ने ये
किला इसलिए भी बनवाया था क्योंकि तुगलकाबाद के किले में पानी की समस्या हो गई थी। तब
वह यमुना के किनारे आया। किले के अंदर सुंदर उद्यानों,
महलों, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण किया
गया था, यह राजधानी का शाही गढ़ था।
खास आकर्षण है अशोक स्तंभ - फिरोजशाह
कोटला किले का खास आकर्षण है तीसरी शताब्दी इसा पूर्व का अशोक स्तंभ। यह स्तंभ एक तीन मंजिला पिरामिड नुमा
इमारत के ऊपर स्थापित है। यह स्तंभ 13 मीटर ऊंचा है। इसे हरियाणा के अंबाला के पास
के टोपरा गांव से उखाड़कर यहां लाकर स्थापित कराया गया था। इस स्तंभ पर लेखन भी
है। पर इसे अंबाला से दिल्ली कैसे लाया गया। यह थोड़ा आश्चर्य जनक है। बताया जाता
है कि इसे यमुना में जल मार्ग से दिल्ली लाया गया था। फिर इसे तीसरी मंजिल पर
पहुंचा कर स्थापित कैसे किया गया होगा यह देखकर भी अचरज होता है।
अशोक स्तंभ को टोपरा से दिल्ली लाने की कथा बहुत रोचक है। इस स्तंभ को सिल्क कपड़े से लपेट कर विशाल रथ पर रखा गया। इस रथ में कुल 42 पहिए थे। इस रथ को 200 लोग खींच रहे थे। इसे बड़ी सावधानी से दिल्ली लाया गया। इसके दिल्ली लाए जाने की पूरी प्रक्रिया को फिरोजशाह तुगलक खुद देख रहे थे। बाद में फिरोजशाह कोटला में पिरामिड नुमा दो मंजिला इमारत बनाई गई। इस इमारत के ऊपर बड़ी सावधानी से ले जाकर इसे स्थापित कर दिया गया। यह स्थानांतरण और स्थापना की प्रक्रिया तब की इंजीनियरिंग का अदभुत नमूना थी।
फिरोजशाह तुगलक को भारत का अंतिम मुस्लिम शासक माना जाता है। उसे इतिहास में बड़े प्रशासनिक सुधारों और विकास कार्यो के लिए याद किया जाता है। क्या आपको पता है कि वह दीपालपुर की हिंदू राजकुमारी का पुत्र था।
अशोक स्तंभ को टोपरा से दिल्ली लाने की कथा बहुत रोचक है। इस स्तंभ को सिल्क कपड़े से लपेट कर विशाल रथ पर रखा गया। इस रथ में कुल 42 पहिए थे। इस रथ को 200 लोग खींच रहे थे। इसे बड़ी सावधानी से दिल्ली लाया गया। इसके दिल्ली लाए जाने की पूरी प्रक्रिया को फिरोजशाह तुगलक खुद देख रहे थे। बाद में फिरोजशाह कोटला में पिरामिड नुमा दो मंजिला इमारत बनाई गई। इस इमारत के ऊपर बड़ी सावधानी से ले जाकर इसे स्थापित कर दिया गया। यह स्थानांतरण और स्थापना की प्रक्रिया तब की इंजीनियरिंग का अदभुत नमूना थी।
फिरोजशाह तुगलक को भारत का अंतिम मुस्लिम शासक माना जाता है। उसे इतिहास में बड़े प्रशासनिक सुधारों और विकास कार्यो के लिए याद किया जाता है। क्या आपको पता है कि वह दीपालपुर की हिंदू राजकुमारी का पुत्र था।
क्या भुतहा है फिरोजशाह कोटला
का किला - कोटला फिरोजशाह एक खंडहर सा किला है। कहा जाता है कि यहां कई रहस्यमयी
जिन्न रहते हैं, जो उनको मानने वालों की
मुराद भी पूरी करते हैं। फिरोज शाह कोटला में सबसे ज्यादा चर्चित जिन्न है 'लाट वाले बाबा' जो बाकी जिन्नों के मुखिया हैं।
आसपास से लोग यहां आते हैं,
जो कई बार अपने सबसे गहरे और डरावने राज को साझा करते हैं। इतना ही
नहीं यहां कई लोग झाड़-फूंक करवाने भी आते हैं जिन्हें लगता है कि उनके ऊपर किसी
बाहरी ताकत का साया है कोई शैतानी ताकत उनपर हुकुम चला रही है। जब हमलोग यहां
पहुंचे तो कई औरतें रो रो कर इन जिन्नों से गुहार लगाती हुई नजर आईं। काफी लोग
यहां अपनी समस्याएं लेकर आते हैं और खत लिखकर छोड़ जाते हैं। इन सबको देखकर काफी
लोग कहते हैं कि ये किला भुतहा है।
कई लोग ये भी कहते हैं कि कोई
अकेली लड़की इस किले के हर हिस्से का दौरा नहीं कर सकती। कहा जाता है कि यहां के
जिन्न सुंदर महिलाओं को अपने वश में कर लेते हैं इसलिए अकेली महिलाएं यहां जाने से
कतराती हैं।
किले में सुंदर बाउली - कोटला के किले में एक सुंदर बाउली है। वैसे तो दिल्ली में सैकड़ो बाउली का इतिहास मिलता है। पर ये बाउली कुछ अलग है। इसमें नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां नहीं थीं। पुलियों के सहारे पानी निकाला जात था। ये बाउली कोटला किले के जल का प्रमुख स्रोत हुआ करती थी। इस विशाल वृताकार सुंदर बाउली को अब भी यहां देखा जा सकता है। और तकनीक देखिए पाइपों और नलियों की जटिल संरचना से पानी दूसरी मंजिल तक ले जाने का इतंजाम था। इसके लिए तब कोई बिजली की मोटर नहीं हुआ करती थी।
क्या क्या देखें – किले अंदर मुख्य रूप से आप फिरोजशाह कोटला किला, अशोक का स्तंभ, मस्जिद और बाउली (सीढ़ी युक्त कुंआ ) देख सकते हैं। किले के पिछले हिस्से से दिल्ली का रिंग रोड और इंदिरा गांघी इंडोर स्टेडियम नजर आता है।
क्या क्या देखें – किले अंदर मुख्य रूप से आप फिरोजशाह कोटला किला, अशोक का स्तंभ, मस्जिद और बाउली (सीढ़ी युक्त कुंआ ) देख सकते हैं। किले के पिछले हिस्से से दिल्ली का रिंग रोड और इंदिरा गांघी इंडोर स्टेडियम नजर आता है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
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