
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से
मुंबई की पुरानी इमारतो को देखते हुए आप टाउन हॉल तक पहुंच सकते हैं। यह इमारत
शहीद भगत सिंह रोड पर रिजर्व बैंक के करीब हारनिमैन सर्किल पर है। टाउन हॉल मुंबई
के विक्टोरियन युग के इमारतों में प्रमुख है।
दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह -
यह एशियाटिक सोसाइटी ऑफ मुंबई का दफ्तर भी
है जिसका इसमें समृद्ध पुस्तकालय है। तो यह सूचनाओं का बड़ा केंद्र है और
अध्ययनशील लोगों की पसंदीदा जगह भी। यहां साहित्य, विज्ञान और कला से संबंधित
पुस्तकों का अच्छा संग्रह है। यहां पर्सियन, प्राकृत, उर्दू और संस्कृत की दुर्लभ
पुस्तकों का भी संग्रह है। भवन में एक छोटा सा संग्रहालय भी है। यहां अकबर द्वारा
चलाई गई सोने की मुहरों का भी संग्रह उपलब्ध है। टाउन हॉल की लाइब्रेरी में लाखों
दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह है। यह सुबह 10.30 से शाम 5.30 तक खुला रहता है। रविवार
को पुस्तकालय बंद रहता है।
1833 में हुआ निर्माण -
टाउन हॉल के भवन का निर्माण 1833 में हुआ था। सन 1811 में इसके निर्माण की योजना
बननी आरंभ हुई थी। मुंबई के रिकार्डर जेम्स मैकिंटोश ने टाउन हॉल बनाने की योजना
पर काम शुरू किया। इसके निर्माण के लिए शुरुआती फंड के तौर पर 10 हजार रुपये का
संग्रह लॉटरी से किया गया था। तब संस्था का नाम था लिटरेरी सोसाइटी ऑफ मुंबई। पर
यह फंड पूरे निर्माण के लिए काफी नहीं था।
तब सोसाइटी ने सरकार से और फंड के लिए संपर्क किया। इस भवन का निर्माण 10 साल में पूरा
हुआ। अंतिम तौर पर इसके निर्माण में 60 हजार पाउंड की लागात आई थी। इस्ट इंडिया कंपनी
ने इसके निर्माण में पूंजी के तौर पर बड़ी हिस्सेदारी निभाई थी।
ग्रीक रोमन स्टाइल की इमारत
- इसके वास्तु पर ग्रीक और रोमन स्टाइल का प्रभाव है। सर जॉन माल्कम जो मुंबई के
उस समय गवर्नर थे, उन्होने टाउन हाल की इमारत को देश के सुंदरतम इमारतों में करार
दिया था। इसका डिजाइन कर्नल थॉमस कूपर ने तैयार किया था। इसकी चौड़ाई 200 फीट और
ऊंचाई 100 फीट है।
टाउन हॉल में प्रवेश के लिए आधार तल से आपको 30 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। इसके निर्माण के लिए पत्थरों का आयात ब्रिटेन से किया गया था। इसके स्तंभों का निर्माण ब्रिटेन में ही किया गया था और उन्हे सेना के जहाज से मुंबई लाया गया था। भवन के अंदर लकड़ी का सुंदर काम किया गया है। इमारत के अंदर सीढ़ियां घुमावदार हैं। भवन का आंतरिक सज्जा में भी काफी सुंदरता से कार्य किया गया है।
टाउन हॉल में प्रवेश के लिए आधार तल से आपको 30 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। इसके निर्माण के लिए पत्थरों का आयात ब्रिटेन से किया गया था। इसके स्तंभों का निर्माण ब्रिटेन में ही किया गया था और उन्हे सेना के जहाज से मुंबई लाया गया था। भवन के अंदर लकड़ी का सुंदर काम किया गया है। इमारत के अंदर सीढ़ियां घुमावदार हैं। भवन का आंतरिक सज्जा में भी काफी सुंदरता से कार्य किया गया है।
दुनिया भर से आने वाले सैलानी
टाउन हॉल की इमारत को बाहर से निहारते हैं। वहीं शोध करने वाले लोग टाउन हॉल की
लाइब्रेरी का इस्तेमाल करने पहुंचते हैं। साल 2016 में टाउन हॉल के भवन की मरम्मत
कराई गई। 2017 में इसे एक बार फिर लोगों के लिए खोल दिया गया। कई हिंदी फिल्मों
में टाउन हॉल की सीढ़ियां दिखाई गई हैं।
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(TOWN HALL, MUMBAI, ASIATIC SOCIETY OF MUMBAI
1804 )
दानापानी ब्लॉग के लिए मिला राष्ट्रीय एकता पुरस्कार
साल 2012 से लगातार ब्लॉग लिखकर देश की राष्ट्रीय एकता, देश की भाषा-खानपान की भिन्नता से पाठकों को परिचित कराने के लिए अगर इस ब्लॉग को कहीं पुरस्कार सम्मान मिले तो खुशी की बात है न। तो 14 नवंबर 2018 को हिंदू कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय में भारतीय जन संचार संघ की ओर मुझे दानापानी ब्लॉग के लिए राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसमें खासतौर पर ब्लॉगिंग के जरिए शाकाहार को बढ़ावा देने का भी जिक्र किया गया। वास्तव में ये सम्मान दानापानी को पढ़ने वाले देश और दुनिया के लाखों लोगों से मिले स्नेह का ही प्रतिफल है। आप सबका आभार। पढ़ते रहिए दानापानी...
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सम्मानित करते प्रोफेसर रामेश्वर राय, डाक्टर रामजीलाल जांगिड, प्रोफेसर प्रदीप माथुर और वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह। |
दानापानी ब्लॉग के लिए मिला राष्ट्रीय एकता पुरस्कार
साल 2012 से लगातार ब्लॉग लिखकर देश की राष्ट्रीय एकता, देश की भाषा-खानपान की भिन्नता से पाठकों को परिचित कराने के लिए अगर इस ब्लॉग को कहीं पुरस्कार सम्मान मिले तो खुशी की बात है न। तो 14 नवंबर 2018 को हिंदू कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय में भारतीय जन संचार संघ की ओर मुझे दानापानी ब्लॉग के लिए राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसमें खासतौर पर ब्लॉगिंग के जरिए शाकाहार को बढ़ावा देने का भी जिक्र किया गया। वास्तव में ये सम्मान दानापानी को पढ़ने वाले देश और दुनिया के लाखों लोगों से मिले स्नेह का ही प्रतिफल है। आप सबका आभार। पढ़ते रहिए दानापानी...
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