
कुर्ग शहर के मध्य में स्थित है
ओंकारेश्वर मंदिर। यह शिव जी का कुर्ग क्षेत्र का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का
इतिहास कुर्ग के राजपरिवार से जुड़ा हुआ है। सन 1800 के आसपास कुर्ग के राजा
लिंगराजेंद्र -2 ने यहां पर ओंकारेश्वर मंदिर का निर्माण कराया। कहा जाता है कि
राजा के हाथों किन्ही कारणों से एक ब्राह्मण की हत्या हो गई। इसके बाद
ब्रह्मराक्षस राजा को लगातार परेशान करने लगा। परेशान राजा को यह सलाह दी गई कि
अगर वह काशी से शिवलिंगम मंगाकर उसी स्थल पर स्थापित करवाएं जहां पर ब्रह्म हत्या
हुई तो उनकी परेशानी दूर हो सकती है।
खेल जगत की कई बड़ी प्रतिभा कुर्ग से- कुर्ग ने खेल जगत को भी बड़ी हस्तियां दी हैं। कुर्ग से हॉकी खेलने वाले 10 से ज्यादा ओलंपियन हुए हैं। वहीं एथलेटिक्स में भी कुर्ग का बड़ा योगदान है। अश्विनी नचप्पा, रोहन बोपन्ना जैसी खेल जगत की हस्तियां कुर्ग से हुई हैं।
इसके बाद राजा ने यही किया।
काशी से शिवलिंगम मंगाया गया और उसकी स्थापना मडिकेरी में कर दी गई। इस मंदिर का
ही नाम ओंकारेश्वर मंदिर पड़ा। पीले रंग
के इस सुंदर मंदिर के सामने सुंदर सा सरोवर है। यह मंदिर 1820 में बनकर तैयार हो
गया था। कहा जाता है कि उसके बाद ब्राह्मण की आत्मा ने राजा को कभी तंग नहीं किया।
इस्लामिक वास्तु में बना मंदिर –
ओंकारेश्वर मंदिर को इसके निर्माण की शैली देश के बाकी मंदिरों से काफी अलग लाकर
खड़ा कर देती है। इस मंदिर के निर्माण में इस्लामिक स्टाइल की झलक दिखाई देती है।
मंदिर में मसजिद की तरह मीनारे हैं वहीं गुंबद भी किसी मसजिद जैसा ही है।
मंदिर के सामने स्थित तालाब में
मछलियां तैरती नजर आती हैं। तालाब के बीच में भी एक छोटा मंदिर बनाया गया है। मंदिर
आम तौर पर सुबह 6.30 बजे से 12 बजे तक फिर शाम को 5 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता
है। मंदिर परिसर में संस्कार मंडप भी बना हुआ है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको
मुख्य बाजार से नीचे की ओर उतरना पड़ता है। ओंकारेश्वर मंदिर का परिसर बडा ही
मनोरम है।
कुर्ग यानी कोडागू कर्नाटक का
जनजातीय आबादी वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में रहने वाली आबादी शेष कर्नाटक से
अलग है। यहां के लोगों को कोडावा कहा जाता है। यहां 11 प्रमुख पिछड़ी जातियां
निवास करती हैं। इसके अलावा जनजातीय लोग भी हैं। कुर्ग के लोग बड़े स्वाभिमानी और
परिश्रमी होते हैं। परंपरागत रूप से ये लोग धान के खेतों में काम किया करते थे। उनके
इस क्षेत्र में हजारों साल से रहने का प्रमाण मिलता है।
कुर्ग के लोगों में हथियार साथ में रखना, जरूरत पड़े तो बहादुरी से लड़ना उनके खून में है। अपनी अलग पहचान के लिए कई बार ये लोग कुर्ग को कर्नाटक से अलग राज्य का दर्जा देने की मांग भी कर चुके हैं। दरअसल देश आजाद होने के बाद जो 27 राज्य बने उसमें कुर्ग अलग राज्य था। पर 1956 में इसे कर्नाटक में मिला दिया गया। इस क्षेत्र की स्थानीय भाषा कोडावा है जो कन्नड़ से अलग है।
चचेरे, ममेरे भाई बहनों के बीच विवाह संबंध
कुर्ग के लोगों में हथियार साथ में रखना, जरूरत पड़े तो बहादुरी से लड़ना उनके खून में है। अपनी अलग पहचान के लिए कई बार ये लोग कुर्ग को कर्नाटक से अलग राज्य का दर्जा देने की मांग भी कर चुके हैं। दरअसल देश आजाद होने के बाद जो 27 राज्य बने उसमें कुर्ग अलग राज्य था। पर 1956 में इसे कर्नाटक में मिला दिया गया। इस क्षेत्र की स्थानीय भाषा कोडावा है जो कन्नड़ से अलग है।
चचेरे, ममेरे भाई बहनों के बीच विवाह संबंध
कोडावा में लोगो में विवाह की
रस्म बिना किसी ब्राह्मण पुजारी के संपन्न कराई जाती है। यहां चचेरे, ममेरे भाई
बहनों के बीच विवाह संबंध हो सकते हैं। कुर्ग के लोग हर साल 3 सितंबर को
कालीपोल्डु उत्सव मनाते हैं। यह हथियारों
की पूजा का उत्सव है। कुर्ग की ज्यादातर आबादी हिंदू है, पर टीपू सुल्तान के समय बड़ी संख्या में
लोग मुसलमान भी बने थे।
ओंकारेश्वर मंदिर मडिकेरी। |
खेल जगत की कई बड़ी प्रतिभा कुर्ग से- कुर्ग ने खेल जगत को भी बड़ी हस्तियां दी हैं। कुर्ग से हॉकी खेलने वाले 10 से ज्यादा ओलंपियन हुए हैं। वहीं एथलेटिक्स में भी कुर्ग का बड़ा योगदान है। अश्विनी नचप्पा, रोहन बोपन्ना जैसी खेल जगत की हस्तियां कुर्ग से हुई हैं।
-
विद्युत
प्रकाश मौर्य, vidyutp@gmail.com
(COORG, OMKARESHWAR TEMPLE, MADIKERI )
आगे पढ़िए - हर साल गर्म होता जा रहा कुर्ग... (आखिरी कड़ी )
(COORG, OMKARESHWAR TEMPLE, MADIKERI )
आगे पढ़िए - हर साल गर्म होता जा रहा कुर्ग... (आखिरी कड़ी )
No comments:
Post a Comment