मैसूर पैलेस से निकल कर मैं पास
के पार्क में प्रवेश कर गया हूं। हरे भरे सुंदर पार्क में सुबह सुबह टहलने वाले पहुंचे
हैं। यहां ओपन जिम भी बना है। पार्क में हरे भरे पड़े आबोहवा को मस्त बना रहे हैं।
पर चामराजेंद्र वाडियार सर्किल पर स्थित यह पार्क कन्नड फिल्मों के महान अभिनेता
राजकुमार के नाम पर बना है। हिंदी फिल्मों के दीवाने बॉलीवुड एक्टर राजकुमार को
जानते थे।
जब राजकुमार को साल 1995 में दादा
साहेब फाल्के अवार्ड दिए जाने का ऐलान हुआ तब लोगों ने कन्नड के इस महान अभिनेता
को देश के दूसरे हिस्सों में जाना। पर कन्नड सिनेमा जगत के वे जेम्स बांड थे। लोग उनकी हर फिल्म का बड़ी शिद्दत से इंतजार करते थे।
कन्नड अभिनेता राजकुमार की
पार्क में सुनहले रंग की आदमकद प्रतिमा लगी है। इसके साथ ही राजकुमार की अभिनेता
के तौर पर कई तस्वीरें भी लगाई गई हैं। कन्नड की जनता में राजकुमार का वही सम्मान
है जो हिंदी में दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन का है।
सिंगनल्लूरु पुठस्वामय्या मुत्तुराज उर्फ
राजकुमार का जन्म 24 अप्रैल 1929
को तालवाडी के गाजनूर में हुआ। उन्होंने कुल 206 फिल्मों में अभिनय
किया। शब्दवेदी उनकी आखिरी फिल्म थी। राजकुमार के पिता सिंगनल्लूरु पुठस्वामय्या
एक थिएटर कलाकार थे। उनकी माता का नाम लक्षम्मा था। राजकुमार ने 25 साल के उम्र में अपनी पहली फिल्म में प्रमुख भूमिका निभाई। इसके बाद ही
उन्होंने अपना लोकप्रिय नाम राजकुमार कर लिया। 1954 में उनकी
फिल्म ’बेडर कण्णप्पा’ आई थी।
राजकुमार
एक फिल्म को छोडकर अपने पूरे जीवन में सिर्फ कन्नड फिल्मों में ही एक्टिंग की। उनकी
अन्य भाषा फिल्म है एकमात्र फिल्म है ’कालहस्ती महात्यम’
तेलुगू भाषा में थी। बाद में राजकुमार अपनी फिल्म निर्माण कंपनी की स्थापना
की जिसका नाम वज्रेश्वरी कंबाइन्स थी। उनकी 100वी फिल्म
भाग्यदा बागिलु’ थी, जबकि 200वीं फिल्म
’देवता मनुष्य’ थी। जयंती वह अभिनेत्री
थीं जिसके साथ राजकुमार ने कुल 32 फिल्में की।
राजकुमार ने कर्नाटक में कन्नड़
भाषा के लिए आंदोलन में भी हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने पूरे कर्नाटक का दौरा
किया। तब लोग उनकी एक झलक पाने के लिए उतावले रहते थे। पर राजकुमार कभी राजनीति में नहीं उतरे।
सन 2000 में राजकुमार उस वक्त
राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आए जब 30 जुलाई को कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन
ने उनका अपहरण कर लिया। गाजनूर में घर के पास अपहरण किए जाने के बाद वीरप्पन ने
108 दिनों तक उन्हें अपने कैद में रखा। 15 नवंबर 2000 को उनकी रिहाई हो गई, पर
रिहाई को लेकर कई रहस्य नहीं खुल सके।
12 अप्रैल 2006 को राजकुमार के
बेंगलुरु में निधन हो गया। पर कर्नाटक लोग उन्हे एक महान सितारे के तौर पर हमेशा
याद रखेंगे। मैसूर के पार्क में उनकी विभिन्न भाव भंगिमाओं में तस्वीरें लगी हैं,
जो उन्हें अभी भी जीवंत बना रही हैं। राजकुमार को दादा साहेब फाल्के के अलावा
पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया था।
पार्क से बाहर निकलने पर मुझे सजीली
बग्घी दिखाई देती है। ऐसी सजीली बग्घी में बैठकर लोग मैसूर पैलेस के चारों तरफ सैर
करते हैं। 2012 में अपनी मैसूर यात्रा के दौरान हमने रात को ऐसी ही बग्घी में सैर
किया था। वो रात याद आ गई, पर दिन के उजाले में अब आगे चलते हैं।
-( MYSORE, KARNATKA, KANNADA ACTOR, RAJKUMAR )
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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