
मुरगन स्वामी के दर्शन के बाद
होटल से चेकआउट कर बस स्टैंड पहुंच गया हूं। अब पलनी से त्रिपुर के लिए चल पड़ा
हूं। हर 15 मिनट पर त्रिपुर के लिए एक बस मिल जाती है। एक बस में खिड़की के पास
वाली सीट मिल गई है। पलनी से त्रिपुर की दूरी 80 किलोमीटर है। पलनी शहर को पार
करके बस हरे भरे रास्ते पर आगे बढ़ रही है। कुछ देर बाद बस धारापुरम नामक कस्बे
में जाकर बस स्टैंड में थोडी देर के लिए रुकी। धारापुरम अब त्रिपुर जिले का हिस्सा
है, पर यह तमिलनाडु का बहुत ही प्राचीन शहर है। कभी यह चेर,
पश्चिमी गंगा राजवंश और बाद में कांगू चोलस राजवंश के शासन काल में कांगू
नाडू प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी। इतिहास में इसे वंचिपुरी के नाम से जाना जाता
था।
धारापुरम से बस आगे स्टेट हाईवे
नंबर 37 पर बढ़ रही है। रास्ते में विंड एनर्जी के टर्बाइन खेतों में लगे नजर आए।
ऐसे प्रोजेक्ट गुजरात और राजस्थान में भी हमने देखे हैं। अगला कस्बा आया कोडुवाई।
यहां से त्रिपुर 22 किलोमीटर रह गया है। कोडुवाई में नागेश्वर स्वामी का मंदिर
स्थित है। और अब हम त्रिपुर शहर की सीमा में पहुंच चुके हैं। कई चौक चौराहों को
पार करता हुई बस शहर के बीचों बीच स्थित बस स्टैंड में पहुंच गई है। हालांकि
त्रिपुर का बस स्टैंड तमिलनाडु के दूसरे शहरों के बस स्टैंड की तरह शानदार नहीं
है।
त्रिपुर यानी तमिलनाडु को वह
औद्योगिक शहर जो विश्व मानचित्र में अपनी बड़ी पहचान बना चुका है। हम आप सब हर रोज
त्रिपुर के बने हुए उत्पादों का इस्तेमाल हर रोज करते हैं। देश के अमीर से लेकर
गरीब नागरिक जो भी कॉटन होजरी के उत्पाद इस्तेमाल करते हैं इसमें 99 फीसदी त्रिपुर
के बने होते है। बनियान, जांघिया, ब्रा, पैंटी, टी शर्ट कुछ भी। यहां तक की विश्व
के प्रमुख बाजारों में बिकने वाले कॉटन होजरी के उत्पाद त्रिपुर से बनकर जाते हैं।
नाइक और एडिडास जैसी नामचीन कंपनियां यहां से उत्पाद बनवाती हैं। किसी जमाने में
कॉटन होजरी के केंद्र कोलकाता हुआ करता था। पर अब वह भी त्रिपुर में शिफ्ट हो चुका
है। वीआईपी, लक्स से लेकर तमाम नए ब्रांडों का उत्पादन केंद्र त्रिपुर है।
एक अनुमान के मुताबिक त्रिपुर शहर
में तकरीबन पांच लाख बिहार, यूपी, बंगाल
और ओडिशा के मजदूर होजरी के उद्योग में काम कर रहे हैं। मैं बस स्टैंड से
निकल कर पैदल चलता हुआ त्रिपुर के बाजार में प्रवेश कर जाता हूं। तीन अलग अलग
होजरी और गारमेंट के शोरुम में जाकर कुछ चीजें देखता हूं। अंत में एजा (
ESSA
) के शोरुम से अपने लिए कुछ चीजें खरीद लेता हूं,
त्रिपुर के यादगारी के तौर पर। बाजार में एक युवक से मुलाकात हुई। वे ओडिशा के
रहने वाले हैं यहां टीशर्ट पर प्रिंटिंग का काम करते हैं। चलते चलते मोतिहारी के
कुछ मजदूर मिले जो सिलाई का काम करते हैं।
त्रिपुर शहर नोयाल नदी के
किनारे बसा है। इसे अब देश दुनिया में वस्त्रों के शहर के तौर पर ही जाना जाता है।
त्रिपुर का सालाना निर्यात 12 हजार करोड़ से अधिक का है। देश के कुल निटवियर
एक्सपोर्ट में 90 फीसदी हिस्सेदारी त्रिपुर की है। तमिल राजनीति के दो बड़े नाम
पेरियार और सी अन्नादुर्रै की पहली मुलाकात भी त्रिपुर में ही हुई थी। पांच लाख से
ज्यादा आबादी वाला शहर 27 वर्ग किलोमीटर में फैला है। त्रिपुर सेलम से कोयंबटूर
रेल मार्ग पर रेलवे से भी जुड़ा है। यहां से कोयंबटूर की दूरी 45 किलोमीटर है।
त्रिपुर शहर के सभी बाहरी
मुहल्लों में होजरी उत्पादन की इकाइयां काम कर रही हैं। कई बड़े उत्पादकों के अलावा
यहां पर बड़ी संख्या में जॉब वर्कर भी हैं, जो बड़ी कंपनियों को अपने उत्पादों की
सप्लाई करते हैं।
त्रिपुर शहर के आसपास के इलाके में कपास की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इसलिए यहां कॉटन इंडस्ट्री के कच्चा माल भी आसानी से मिल जाता है।
त्रिपुर शहर के आसपास के इलाके में कपास की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इसलिए यहां कॉटन इंडस्ट्री के कच्चा माल भी आसानी से मिल जाता है।
- ( TAMILNADU, TRIPPUR, GARMENT INDUSTRY )
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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Email- vidyut@daanapaani.net
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