भगवान गणेश के बडे भाई
कार्तिकेय। क्या आपको पता है कार्तिकेय का सबसे विशाल और प्रसिद्ध मंदिर कहां है।
जवाब है तमिलनाडु के पलनी में। पलनी डिंडिगुल जिले का एक शहर है। पर यह एक बड़ा शहर है। देश भर से श्रद्धालु पलनी पहुंचते हैं
कार्तिकेय के दर्शन के लिए। एक अनुमान के मुताबिक हर साल 70 लाख से ज्यादा श्रद्धालु मुरुगन स्वामी के
दर्शन के लिए आते हैं।
पलनी बस स्टैंड से
मंदिर के आधार तल की दूरी एक किलोमीटर है। पैदल चलकर भी पहुंचा जा सकता है। या फिर
आटो रिक्शा या तांगा का विकल्प उपलब्ध है। मंदिर के आधार तल पर जूता स्टैंड, गठरी
(बैग) स्टैंड आदि की सुविधाएं उपलब्ध है। यहां पर कई सारे सस्ते होटल धर्मशालाएं और रात्रि विश्राम
स्थल भी हैं।
मुरुगन स्वामी का
मंदिर शिवगिरी पर्वत पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए तकरीबन 689 सीढ़ियां
चढ़नी पड़ती है। पर्वत की ऊंचाई 160 मीटर है। पर्वत की परिधि 3 किलोमीटर है। पर्वत
पर कई तरह के औषधीय पौधे हैं। ऊपर तक जाने के दो विकल्प और हैं। आप रोप वे से जा
सकते हैं। दूसरा तरीका रेलगाड़ी से ऊपर पहुंचने का है। रोपवे का किराया 15 रुपये
है तो रेलगाड़ी का 25 और 50 रुपये है।
कहानी है कि एक बार
नारद मुनि कैलास पर्वत पर एक फल लेकर पहुंचे। यह ज्ञान का फल था। शिव ने यह फल
अपने दो बेटों गणेश और कार्तिकेय को दिया। पर मुनि को मंजूर नहीं था कि फल को दो हिस्सों में काटा जाए। तो ये तय हुआ
कि जो तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा पहले कर लेगा उसे ये फल मिलेगा। तो कार्तिकेय
अपने मयूर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा पर निकल पड़े। पर गणेश पिता शिव और
माता पार्वती की परिक्रमा करने लगे। शिव ने वह फल गणेश को दे दिया। जब कार्तिकेय
लौट तो उन्हे गुस्सा आया कि उनकी परिक्रमा व्यर्थ चली गई। नाराज कार्तिकेय ने
कैलास छोड़ दिया और दक्षिण भारत के पलनी पहाड़ी पर आकर अपना निवास बनाया। कहते हैं
कि कार्तिकेय साधु वेश में यहां तपस्या करने लगे। कहते हैं बाद में शिव पार्वती
खुद कार्तिकेय को आशीर्वाद देने पलनी आए। उन्होंने कार्तिकेय को कहा कि तुम खुद
दैवीय फल हो, तुम्हे किसी और फल की क्या जरूरत।
पलनी मुरुगन स्वामी
मंदिर का निर्माण पूर्ववर्ती चेर राजाओं ने करवाया था। इसके मुख्य गोपुरम को सोने
से मढ़ा गया है। मंदिर का परिसर काफी विशाल है। परिसर की दीवारों पर सुंदर
कलाकृतियां बनाई गई हैं। कुछ सुंदर पेटिंग भी यहां देखने को मिलती हैं।
पलनी कार्तिकेय मंदिर में सिर्फ हिंदू धर्म मानने वालों को
ही अंदर जाने की अनुमति है। आप कुल 689
सीढ़ियां चढ़ने के बाद विशाल चौबारे में पहुंच जाते हैं। यहां से दर्शन के लिए तीन तरह की लाइनें हैं। एक निःशुल्क दर्शन और दूसरा 10 रुपये वाली लाइन, तीसरी 50 रुपये वाली लाइन। मंदिर के गर्भ
गृह के अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं है। मुख्य मंदिर के दाहिनी तरफ ऋषि बोगार
की समाधि है।
पलनी की चर्चा तमिल
के संगम साहित्य में आती है। पलनी की कथा 3000 ईसा पूर्व के सिद्ध ऋषि बोगार से
जुडती है। वे चिकित्सा शास्त्र (आयुर्वेद) के बडे विद्वान थे। उन्होंने 4448 जड़ी बूटियों का ज्ञान था। उन्होंने 9 विषैली
बूटियों को मिलाकर दवा तैयार की थी। पलनी वही स्थल है जहां पर उन्होने नौ भस्म से
दवा तैयार की थी। संत ने पलनी के शिवगिरी पर्वत पर मुरुगुन स्वामी की प्रतिमा
स्थापित और दूध पंचामृत से उनका अभिषेक करने लगे। चढ़ावे के लिहाज से तमिलनाडु का
सबसे अमीर मंदिर है।
मंदिर परिसर में
मंदिर प्रबंधन की ओर से संचालित कैंटीन है जिसमें रियायती दरों पर नास्ता और भोजन
मिलता है। इस भोजन को बहुत ही पवित्रता से पकाया जाता है।
पलनी मुरुगुन के
दर्शन के लिए दक्षिण भारत के कोने कोने से श्रद्धालु आते हैं। कुछ लोग तो मयूर पंथ
सिर पर सजाकर और कुछ लोग मुंडन कराकर पलनी पहुंचते हैं।
खुलने का समय –
मंदिर सुबह 5 बजे खुल जाता है। रात्रि 8 बजे तक खुला रहता है। पर श्रद्धालुओं को
शाम 7 बजे के बाद नहीं जाना चाहिए। क्योंकि चढ़ाई करते करते हो सकता है मंदिर बंद
हो जाए।
कैसे पहुंचे - पलनी कोयंबटूर से
100 किलोमीटर, डिंडिगुल से 60 किलोमीटर और कोडाईकनाल से 64 किलोमीटर है। वहीं
त्रिपुर से पलनी की दूरी 80 किलोमीटर है।
( PALNI, MURUGAN SWAMI TEMPLE, TAMILNADU, HILL STATION )
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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