
मैं यह परिक्रमा आराम से करने के मूड में हूं। ब्रज की अनुभूति
को अच्छी तरह आत्मसात करते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ रहा हूं। छोटी परिक्रमा के मार्ग
में लगभग पूरे रास्ते में बाजार है। चहल पहल है। इसके मार्ग में उद्धव कुंड, राधा
कुंड, कुसम सरोवर, मानसी गंगा आदि क्षेत्र आते हैं। इस मार्ग में रास्ते में खाने
पीने, शौचालय- स्नानागार आदि के इंतजाम दिखाई देते हैं। रातभर रास्ते में चाय
नास्ते की दुकानें खुली रहती हैं।
कान्हा जी के भक्त हर समाज के
लोग हैं। छोटी परिक्रमा के मार्ग में मलाह समाज का धर्मशाला भी नजर आता है। कोई 5
किलोमीटर चलने के बाद हम उद्धव कुंड पहुंच गए हैं। रास्ते में दंडवत परिक्रमा करने
वाले लोग भी दिखाई दे जाते हैं। कुछ दंडवत परिक्रमा करने वाली महिलाएं रोककर लोगों
से खाने पीने के लिए आर्थिक मदद मांगती नजर आईं। रास्ते में कई जगह मंदिर और आश्रम
बने हैं।

उद्धव कुंड से आगे के रास्ते
में थोड़ा वन क्षेत्र आता है। इन वनों में जामुन के पड़े खूब हैं। कुछ संस्थाओं
द्वारा यहां 11 हजार से ज्यादा जामुन के पेड़ लगाए जा चुके हैं। कुछ किलोमीटर के
रास्ते में दुकान बाजार कम हैं। पक्की सड़क के साथ फुटपाथ पर चलने का विकल्प है।
नंगे पांव कच्ची सड़क पर धूल में चलना ही बेहतर होता है। मुझे बायीं तरफ सारस्वत
गौड़ीय मठ का कृष्ण मंदिर नजर आता है। मंदिर में शाम की आरती हो रही है। मैं जाकर
पूजा में हिस्सा लेता हूं। आधा घंटा से अधिक वक्त मंदिर में गुजारा। इस मंदिर में
अतिथि गृह भी है। यहां से राधाकुंड की दूरी 5 किलोमीटर है।
इस मार्ग में आपकी यात्रा कितने
किलोमीटर बची है यह बताने वाले संकेतक लगे हैं। रास्ते में दो जगह अखिलेश यादव
सरकार के समय बनवाए गए रेस्टरूम कांप्लेक्स मिले। यहां शौचालय स्नानागार और
कैफेटेरिया बना है। हालांकि कैफेटेरिया चालू नहीं था।
तो चलते चलते 16वें किलोमीटर पर
हम पहुंच गए हैं राधा कुंड। वास्तव में राधा कुंड एक गांव है। जहां बड़ा बाजार है
और खूब चहल पहल है। बीच में एक विशाल सरोवर है जिसे राधाकुंड कहते हैं। कहते हैं।
यहां भक्त गण पूजा करते हैं। कुंड के जल में दीप प्रज्जवलित करते हैं और राधा रानी
से कृपा का आशीर्वाद मांगते हैं।
राधाकुंड के बाद आता है जय ललिता कुंड। रास्ते
में कई मंदिर मिल रहे हैं। इनमें पूजा जारी है। इनमें से कई मंदिर बंगाल के लोगों
द्वारा निर्मित हैं। अब 4 किलोमीटर की यात्रा बाकी रह गई है। तो क्यों न बैठकर चाय
पी ली जाए। मिट्टी के कप में चाय के स्वाद सोंधापन है। चाय वाले दुकानदार बता रहे
हैं कि वे सिर्फ रात में दुकान खोलते हैं दिन में आराम करते हैं।
हम कुसुम सरोवर पहुंच चुके हैं।
कहा जाता है इसी सरोवर में जल क्रीड़ा के समय कृष्ण जी ने राधा की वेणी गूंथी थी। पहले
यह कच्चा था। पर 1609 में ओरछा के राजा वीर सिंह जूदेव ने इसे पक्का करवाया। इस
सरोवर के पास सुंदर छतरियां भी बनाई गई हैं।
अगला पड़ाव है ग्वाल पोखरा है।
नाम से लगता है कि यहां ग्वाल बाल अटखेलियां करते होंगे। यहां से आखिरी पड़ाव
मानसी गंगा डेढ़ किलोमीटर है। ग्वाल पोखरा के बाद आया ब्राह्मणान। यहां पर एक
मंदिर में मत्था टेका तो पुजारी जी ने आशीर्वाद दिया। संकल्प कराया और दान भी ले
लिया। मध्य रात्रि होने को है।
हम यात्रा के आखिरी पड़ाव मानसी गंगा पहुंच चुके
हैं। यहां के विशाल सरोवर है। इससे लगा हुआ एक मंदिर है। यहां बहुत सारे झरने लगे
हैं। यात्रा से लौटने वाले यहां स्नान करके थकान मिटाते हैं। पर मेरे पास दूसरे
कपड़े नहीं हैं इसलिए स्नान का इरादा त्याग दिया। पर मानसी गंगा का नजारा बड़ा
मनोरम है। कुछ देर बैठकर ब्रज की मिठास को महसूस करने के बाद मुख्य सड़क पर आ गया।
चलते चलते एक झाल खरीदा। झाल को देखकर बचपन याद आ गया। बचपन में खूब झाल बजाई थी।
रात में मथुरा के लिए शेयरिंग
टैक्सी मिल गई। रात के करीब डेढ़ बजे मथुरा हाईवे से दिल्ली जाने वाली बस में बैठ
गया। जय श्री कृष्णा।
( GOVARDHAN PARIKRAMA, RADHA KRISHNA, MATHURA, )
-विद्युत प्रकाश मौर्य
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