
सालों से इच्छा थी गोवर्धन
परिक्रमा करने की। तो इस सावन में अचानक कार्यक्रम बन गया। दिल्ली से गोवर्धन जाने
के लिए एक दिन का अवकाश पर्याप्त है। अपने घर के पास दिलशाद गार्डन से मेट्रो
पकड़ी। कश्मीरी गेट में हेरिटेज लाइन मेट्रो ली और सीधा फरीदाबाद से आगे एस्कॉर्ट
मुजेसर जाकर उतरा। वैसे थोड़े समय बाद तो मेट्रो से बल्लभगढ़ तक जा सकेंगे। मुजेसर
से बल्लभगढ़ के लिए सुबह सुबह भी शेयरिंग आटोरिक्शा मिल जाते हैं। बल्लभगढ़ से मथुरा
की सीधी बस आने में देर थी होडल तक जाने वाली बस में बैठ गया। होडल से बस बदल कर
मथुरा पहुंचा। वैसे आपके पास अपना वाहन हो तो कोसी कलां से भी गोवर्धन के लिए
रास्ता बदल सकते हैं। इसके बाद वृंदावन के मोड़ से गोवर्धन के लिए मार्ग बदला जा सकता है। पर बस से जा रहे हैं तो मथुरा जाकर गोवर्धन मोड पर ही उतरें।
मथुरा में गोवर्धन चौराहे पर हाईवे पर उतर गया। यहां गोवर्धन
की दूरी 20 किलोमीटर है। यह मथुरा से अलवर और राजस्थान के डीग जाने के मार्ग पर है। टाटा मैजिक और मिनी बसें भरेगी तो चलेगी के अंदाज में चलती
हैं। खैर मिनी बस जल्दी भर गई। आधे घंटे के ग्रामीण रास्तों के सफर के बाद उसने
हमें गोवर्धन के नए बस स्टैंड पर पहुंचा दिया। तो अब पहले थोड़ी पेट पूजा। यहां दो
पराठे सब्जी, रायता के साथ मिल रहे हैं 30 रुपये में। तो अब आगे चलते हैं।
गोवर्धन पर्वत। हां वही गोवर्धन
पर्वत जिसे कृष्ण जी ने अपनी ऊंगलियों पर उठा लिया था और ग्रामवासियों की रक्षा की
थी। इस पर्वत को यहां गिरिराज भी कहते हैं। इन्ही वादियों में कान्हा का बचपन
गुजरा है। यहीं वह गैया चराने जाते थे। तो ब्रज के कण कण में कान्हा की स्मृतियां
हैं।
तो 12 किलोमीटर की परिधि में फैले गोवर्धन पर्वत की हर शिला में रचे बसे हैं कान्हा। सालों भर दूर दूर से भक्त इस पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। पूरा मध्यप्रदेश, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हर जिले से गांव गांव से कृष्ण भक्त आपको यहां परिक्रमा करते मिल जाएंगे। वैसे तो परिक्रमा सालों भर दिन रात चलत रहती है। पर हर माह की पूर्णिमा को, सावन में और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के समय भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है।
तो 12 किलोमीटर की परिधि में फैले गोवर्धन पर्वत की हर शिला में रचे बसे हैं कान्हा। सालों भर दूर दूर से भक्त इस पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। पूरा मध्यप्रदेश, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हर जिले से गांव गांव से कृष्ण भक्त आपको यहां परिक्रमा करते मिल जाएंगे। वैसे तो परिक्रमा सालों भर दिन रात चलत रहती है। पर हर माह की पूर्णिमा को, सावन में और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के समय भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है।
परिक्रमा मार्ग – परिक्रमा का
कुल मार्ग 21 किलोमीटर है। पहली परिक्रमा गोवर्धन पर्वत की है। यह 12 किलोमीटर की
होती है। दूसरी परिक्रमा राधाकुंड से होकर जाती है। यह नौ किलोमीटर की है। कई
श्रद्धालु दोनों परिक्रमा के बीच विराम भी लेते है। काफी लोग हर साल तो कुछ लोग हर
छह माह पर परिक्रमा करने आते हैं। तेजी से चलने वाले लोग पांच घंटे में दोनों
परिक्रमा कर लेते हैं।
बड़ी संख्या वे ऐसे श्रद्धालु
भी हैं जो दंडवत परिक्रमा करते हैं। मतलब लेटकर परिक्रमा। इसमें सात दिन लग जाते
हैं। ऐसे श्रद्धालुओं काफी एक चटाई साथ रखते हैं। कान्हा के ऐसे भक्त भी हैं तो
अपने गांव से दंडवत परिक्रमा करते हुए आते हैं।
पूरी परिक्रमा नंगे पांव की
जाती है। इसके पीछे पवित्र भाव है कि जिस धरती पर कान्हा के जगह जगह पांव पड़े थे
कभी उस मिट्टी की धूल का स्पर्श हमें भी कहीं न कहीं मिल जाए और जीवन सफल हो जाए।
महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग, ग्रामीण परिवेश के लोग या फिर शहर के संभ्रात वर्ग के
लोग हों गोवर्धन में राधे राधे... श्याम मिला दे... नारे के साथ परिक्रमा करते हुए
मिल जाएंगे। तो चलें...कान्हा की तलाश में... जय श्री राधे...
परिक्रमा शुरू करने से पहले आप अपनी मोटरी गठरी वाहन यहां पार्किंग और जगह जगह बने अमानती समान घरों जमा कर सकते हैं। अगर गोवर्धन में रुकना चाहते हैं तो होटल और अतिगृहों की कमी नहीं है।
( GOVARDHAN PARIKRAMA, RADHA KRISHNA, MATHURA, )
यात्रा जारी है.... अगली कड़ी में पढ़िए गोवर्धन पर्वत की 12 किमी की परिक्रमा...
यात्रा जारी है.... अगली कड़ी में पढ़िए गोवर्धन पर्वत की 12 किमी की परिक्रमा...
-विद्युत प्रकाश मौर्य
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