गुरुद्वारा नानक झीरा के बाद
हमारी अगली मंजिल है बीदर फोर्ट। बीदर का किला गुरुद्वारा से कोई 4 किलोमीटर दूर
है। एक आटो वाले से बात हुई। उन्होंने 60 रुपये मांगे। यह वाजिब है। मैं उस आटो
में बैठकर किले के द्वार पर पहुंच गया। बीदर का विशाल किला शहर के एक कोने में
स्थित है। किले को घूमने के लिए दो घंटे का समय रखिए जरूर। पर सबसे काम का बात ये
है कि इस किले को देखने के लिए कोई प्रवेश टिकट नहीं है। हां गेट पर कुछ सुरक्षा
गार्ड जरूर तैनात हैं। किले के प्रवेश द्वार पर एक पुरानी तोप आपका स्वागत कर रही
है। किले का मुख्य द्वार भव्य है। इस द्वार के नक्काशी में रंग बिरंगा काम दिखाई
देता है। कई सौ साल बाद भी इन रंगों में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा है।
इतिहास के झरोखे से –
किले के अंदर प्रवेश करने के बाद इसके प्राचीर पर चढने की सीढ़ियां बनी हैं। तो
आइए थोड़ा सा जान लेते हैं इस किले के इतिहास के बारे में। इस किले का निर्माण
बहमनी सुल्तान अहमद शाह द्वारा 1432 से 1432 के बीच कराया गया। किले की दीवार 5.5
किलोमीटर लंबी और बहुत मोटी है। किले में सुरक्षा को लेकर कई खास विशेषताएं हैं,
जिसके कारण यह देश के अपराजेय किलों में गिना जाता है। किले के तीन तरफ विशाल खाई
है जिसका निर्माण तुर्क सैनिकों द्वारा करवाया गया था। किले की दूसरी विशेषता है
इसके मजबूत सात दरवाजे। मुख्य महल तक
दक्षिण के दो मुख्य द्वारों से पहुंचा जा सकता है। शरजा दरवाजा और गुंबज दरवाजा
दोनों ही भीमकाय द्वार हैं। इन द्वारों में मेहराब और सुंदर चित्रकारियां बनी हैं।
साथ ही सैनिकों के सुरक्षा में तैनात होने के लिए खास जगह बनाई गई है। एक द्वार का
नाम मंदू दरवाजा है जो अत्यंत सुरक्षित सुरंग से होकर जाता है।
किले के अंदर तख्त महल, तरकश महल,
रंगीन महल, शाही मखतब (रसोई), गगन महल और दीवाने आम का निर्माण कराया गया है। किले
में एक 16 खंभो वाली मसजिद और नौबत खाना भी है जो अपनी बेहतरीन वास्तु के कारण
देखने लायक हैं।
किले में सुरंगों का जाल -
बीदर के किले में अच्छी संख्या में सुरंग और गुप्त रास्ते बने हैं। साथ ही कई
भूमिगत कक्षों का निर्माण कराया गया है। इन सुरंगों की मदद से आपात स्थिति में
सुरक्षा तरीके से भागा जा सकता है। किले
के चारों ओर बनी मीनारों पर सुरक्षा के लिए विशाल तोंपे तैनात की गई हैं। किले की
सुरक्षा के लिए कुल 37 गढ़ों का निर्माण कराया गया था।
बीदर के किले में अनूठी है जल
संरक्षण प्रणाली - बीदर के किले की सबसे
बड़ी विशेषता है इसकी जल संरक्षण प्रणाली।
किले के अंदर कई विशाल कुएं का निर्माण भी कराया गया था। इन कुएं के जल को पाइप लाइन के सहारे एक दूसरे से जोड़ा
भी गया था। चूंकि बीदर के इलाके में हमेशा जल संकट रहता है इसलिए किले में पानी बचाने
और उसके इस्तेमाल के लिए खास इंतजाम किए गए थे। बीदर के इस किले के निर्माण शैली
से बाद में अन्य किलों को प्रेरणा मिली। बीजापुर, गोलकुंडा, हैदराबाद, बेंगलुरु को
इस किले से प्रेरणा मिली है।
किले में संग्रहालय –
किले एक अंदर एक छोटा सा पर बड़ा ही सुंदर संग्रहालय है। संग्रहालय के अंदर
फोटोग्राफी पर रोक है। हालांकि यहां
प्रवेश के लिए कोई टिकट नहीं है। संग्राहलय में मध्यकालीन भारत के शस्त्रों को
सुंदर संग्रह है।
मैं देख पा रहा हूं कि किले के अंदर से आम रास्ता भी बना हुआ है।
कुछ लोग आते जाते दिखाई दे रहे हैं। किला देखने के बाद मैं वापस बस स्टैंड के लिए
चल पड़ा हूं। इस बार मुझे शेयरिंग आटो रिक्शा मिल गया है। इसका किराया सिर्फ 10
रुपये है।
(KARNATKA, BIDAR, FORT, WATER )
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