गुरुद्वारा नानक झीरा - बीदर - हैदराबाद से चली बस कर्नाटक में
प्रवेश कर चुकी है। लाल मिट्टी और दोनों तरफ सघन वन क्षेत्र नजर आ रहे हैं। हम तेलंगाना
के संगारेड्डी जिले से गुजर रहे हैं। बीदर शहर से पहले स्वामी नारायण गुरुकुल स्कूल का विशाल परिसर नजर आता है। बस कर्नाटक के बीदर शहर में प्रवेश कर गई है। चौड़ी चौड़ी सड़के हैं। थोड़ी देर में हम सेंट्रल बस
स्टैंड में है। बस स्टैंड काफी साफ सुथरा है। बीदर न सिर्फ आस्था और इतिहास के
लिहाज से महत्वपूर्ण है बल्कि शिक्षा का भी बड़ा केंद्र बन चुका है।
कर्नाटक का शहर बीदर। वैसे तो
कर्नाटक में पड़ता है पर यह भौगोलिक रूप से हैदराबाद के नजदीक है। महाराष्ट्र की
सीमा भी इसके पास है। महाराष्ट्र के नांदेड़ और उस्मानाबाद जिले इसके उत्तर में
हैं। बीदर में बोली जाने वाली भाषा कन्नड न होकर हिंदी, उर्दू और मराठी है। कर्नाटक
के भौगोलिक विभाजन के हिसाब से यह हैदराबाद कर्नाटक में पड़ता है। राजधानी
बेंगलुरु से बीदर की दूरी 700 किलोमीटर है। मैं बस स्टैंड से बाहर निकल कर
गुरुद्वारा नानक झीरा का रास्ता पूछता हूं। दाहिनी तरफ थोड़ा आगे चलने पर बाएं
मुड़ रही सड़क पर गुरुद्वारा का विशाल द्वार बना है और बोर्ड लगा हुआ है। इस सड़क
पर आधा किलोमीटर चलने के बाद हम गुरुद्वारा नानक झीरा पहुंच चुके हैं।
महान संत और सिखों के पहले गुरु
गुरु नानक देव जी का संबंध कर्नाटक के शहर बीदर से है। गुरुजी यहां आए और कई महीने
तक ठहरे। उनके साथ उनके प्रिय शिष्य मरदाना थे। मरदाना रबाब बजाते थे। बीदर का गुरुद्वारा नानक झीरा पहले गुरु की
याद में बना है। ...सा धरती भई हरीआवली, जिथे मेरा सतगुरु बैठा आई।
गुरुद्वारा के मुख्य द्वार के
दो सौ मीटर पहले सड़क पर दो शेर आपका स्वागत करते हैं। वहां स्पष्ट निर्देश है
तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट का इस्तेमाल आगे वर्जित है। बीदर का गुरुद्वारा परिसर काफी
विशाल है। परिसर के बाहर भी अतिथि गृह बने हैं और अंदर भी। गुरुद्वारा का मुख्य
प्रवेश द्वारा काफी कलात्मक और भव्य है। एक तरफ गुरुद्वारा और लंगर और दूसरी तरफ
विशाल सरोवर बना है।
गुरुद्वारा नानक झीरा साहिब में
अमृत कुंड है, जिसकी कहानी गुरुनानक देव जी से जुडी है। सन 1510 से 1514 के गुरुनानक
देव जी ने दक्षिण की यात्रा की थी। गुरुजी सुल्तानपुर लोधी से चलकर ओंकारेश्वर,
बुरहानपुर होते हुए नांदेड़ पहुंचे। वहां से हैदराबाद (गोलकुंडा) होते हुए बीदर
पहुंचे। बीदर में इसी अमृत कुंड के पास उन्होंने आसन लगाया। आसपास का रमणीक नजारा
देख बाबाजी ने मरदाना को रबाब बजाने को कहा और स्वयं कीर्तन करने लगे। रबाब की
ध्वनि सुन वन क्षेत्र में श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए आने लगे।
संगत ने बाबाजी से आग्रह किया
कि इलाके में पानी की भारी कमी है। 150 फीट खुदाई पर भी पानी नहीं निकलता। मिलता
भी है तो खारा पानी। लोगों के आग्रह पर सत करतार कहते हुए बाबा जी ने अपने दाहिने
खड़ाउ से पत्थर हटाया और यहां से मीठे पानी का सोता बह निकला। उस समय से आजतक यहां
जल प्रवाहित हो रहा है। इसे अमृत कुंड या नानक झीरा नाम दिया गया है।
इस घटना की
याद में बाद में यहां विशाल गुरुद्वारा बना, जो सिखों का बड़ा तीर्थ बन गया है। इसके साथ ही पंज प्यारों में से
भाई साहिब सिंह बीदर के रहने वाले थे। वे चमकौर साहिब के युद्ध में शहीद हो गए थे।
श्रद्धालु यहां से अमृत जल लेकर अपने घर जाते हैं।
इस स्थान पर आकर ऐसा महसूस हुआ जैसे यहां पवित्र आत्मा का वास हो रहा हो। मैं अपना बैग गुरुद्वारा परिसर में
यूं ही पेड़ के नीचे छोडकर मत्था टेकने आगे बढ़ गया। घंटे भर बाद लौटा तो मेरा बैग पेड़ के नीचे मेरा इंतजार कर रहा था। गुरुद्वारा में मत्था
टेकने के बाद लंगर हॉल की तरफ कदम बढ़ गए। लंगर छकने के बाद वापस आकर अपना बैग
लेकर गुरुद्वारा के सौंदर्य को निहारते हुए पूरे परिसर का मुआयना किया। फिर एक
ओंकर सतनाम का जाप करते हुए अगली मंजिल की तरफ चल पड़ा।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(BIDAR, GURUDWARA NANAK JHIRA, MARDANA, RABAB, WATER )

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