पटना की धरती को सौभाग्य प्राप्त है कि बापू 1917 में चंपारण जाते
समय में पटना में रुक कर आगे के सफर पर गए थे। पटना में बापू की स्मृति में जो
स्थल हैं उनमें गांधी संग्रहालय प्रमुख है। गांधी
मैदान के एक कोने पर गोलघर के पास स्थित यह संग्रहालय छात्रों और बापू में रूचि
रखने वालों के लिए सुंदर स्थल है। परिसर में एक साहित्य स्टाल भी है जहां से गांधी
और सर्वोदय से जुड़ा साहित्य खरीदा जा सकता है।
परिसर में प्रवेश करते ही
राष्ट्रीय एकता का संदेश देती सुंदर मूर्ति दिखाई देती है। बायीं तरफ बापू और
टैगोर दो महान आत्माओं के मिलन को मूर्तियां बना कर प्रदर्शित किया गया हैं। आगे
बापू और बा (कस्तूरबा) की सुंदर मूर्तियां बनाई गई हैं। अंदर संग्रहालय में जाने
के लिए कोई प्रवेश टिकट नहीं है। बस रजिस्टर में अपना परिचय अंकित करें। रोज बड़ी
संख्या में स्कूली छात्र यहां पहुंचते हैं। संग्रहालय बहुत बड़ा नहीं है। पर बापू
के जीवन और स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष पर अच्छा प्रकाश डालता है।
संग्रहालय से बाहर आने पर इस
परिसर में
ही राजकुमार शुक्ल की प्रतिमा स्थापित की गई है। कौन राजकुमार शुक्ल । वही किसान जो बापू को चंपारण बुलाने में काफी संघर्ष के बाद सफल हो सके थे। यहां पर शुक्ल का छोटा सा परिचय भी लिखा है। बापू को मोहन से महात्मा बनाने में इस महान किसान का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। राजकुमार शुक्ल का जन्म 23 अगस्त 1875 को चंपारण के चनपटिया में हुआ था। शुक्ल को नील की खेती के कारण काफी कष्ट झेलना पड़ा था। इसलिए वे इसका कोई स्थायी निदान चाहते थे। नील आंदोलन की अगुवाई करने के लिए बापू को चंपारण लाने की उन्होंने काफी कोशिश की जिसमें उन्हे अंततोगत्वा सफलता मिली। 20 मई 1929 को मोतिहारी में उनका निधन हो गया। वे आजाद भारत का का सूरज नहीं देख सके। पर उनकी कोशिशें महान थीं।
ही राजकुमार शुक्ल की प्रतिमा स्थापित की गई है। कौन राजकुमार शुक्ल । वही किसान जो बापू को चंपारण बुलाने में काफी संघर्ष के बाद सफल हो सके थे। यहां पर शुक्ल का छोटा सा परिचय भी लिखा है। बापू को मोहन से महात्मा बनाने में इस महान किसान का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। राजकुमार शुक्ल का जन्म 23 अगस्त 1875 को चंपारण के चनपटिया में हुआ था। शुक्ल को नील की खेती के कारण काफी कष्ट झेलना पड़ा था। इसलिए वे इसका कोई स्थायी निदान चाहते थे। नील आंदोलन की अगुवाई करने के लिए बापू को चंपारण लाने की उन्होंने काफी कोशिश की जिसमें उन्हे अंततोगत्वा सफलता मिली। 20 मई 1929 को मोतिहारी में उनका निधन हो गया। वे आजाद भारत का का सूरज नहीं देख सके। पर उनकी कोशिशें महान थीं।
गांधी संग्रहालय परिसर में चरखों
का विशाल संग्रह देखा जा सकता है। चरखा यानी स्वदेशी और स्वावलंबन का प्रतीक। अलग
से बने भवन में 20 से ज्यादा तरह के चरखे यहां देखे जा सकते हैं। इनमें कई चरखे
काफी पुराने हैं। यहां आप अंबर चरखा (राजकोट माडल), बिल्कुल साधारण माडल वाला
किसान चरखा के अलावा सादा सा बिहार चरखा देख सकते हैं।
बहुत से शहरी बच्चों ने जांता
नहीं देखा होगा। वही पीस खाए संसार वाला। तो यह भी देख लिजिए यहां। चक्की का
पुराना रूप। चरखों में आगे बसावन बिगहा माडल,
अंबर चरखा का पूसा माडल देख सकते हैं। इसके बाद पेटी चरखा जो एक पोर्टेबल
माडल है। इसे आसानी से कहीं ले जाया जा सकता है, इसे भी यहां देखा जा सकता है।
यहां चरखे का आधुनिकतम माडल कौवाकोल माडल का चरखा भी देखा जा सकता है।
इस मल्टी काउंट मल्टी फाइबर चरखे को त्रिपुरारी माडल भी कहते हैं। इसे नवादा जिले के कौवाकोल गांव में विकसित किया गया है। यह आठ तकुवे वाला चरखा है। इसमें आठो तुकवे एक साथ चलाए जा सकते हैं। इसमें एक ही चरखे से सूती, रेशमी, पोली सूत की कताई हो सकती है।
इस मल्टी काउंट मल्टी फाइबर चरखे को त्रिपुरारी माडल भी कहते हैं। इसे नवादा जिले के कौवाकोल गांव में विकसित किया गया है। यह आठ तकुवे वाला चरखा है। इसमें आठो तुकवे एक साथ चलाए जा सकते हैं। इसमें एक ही चरखे से सूती, रेशमी, पोली सूत की कताई हो सकती है।
चरखे से आगे बढ़ कर रुई धुनने
वाली धुनकी भी यहां देखी जा सकती है। इसके अलावा आप यहां खेत जोतने वाले हल भी देख
सकते हैं। धीरे धीरे गांव में हल बैल से खेती खत्म होती जा रही है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य
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Email- vidyut@daanapaani.net
(PATNA, CHARKHA, BAPU, )
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हल बैल से होती थी खेती |
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