चित्तौड़गढ़
में घूमते हुए आप खालिश राजस्थानी स्वाद को महसूस कर सकते हैं। मुझे किले में जय
चित्तौड़ सोडा शिकंजी की दुकानें दिखाई देती हैं। गर्मी के दिन हो तो शिकंजी तो
पानी ही चाहिए। आगे बढ़ने पर किले के अंदर राजस्थान हस्तकला केंद्र का विशाल शो
रूम नजर आता है। इसमें वे जयपुरी रजाई, साड़ियां आदि बिक्री करते हैं। कुछ और
हस्तशिल्प वस्तुएं भी खरीदी जा सकती हैं। पर मेरी फिलहाल शापिंग में रूचि नहीं है।
हम तो चले छाछ और राबड़ी का स्वाद लेने। हस्तकला केंद्र के बाहर एक राजस्थानी पगड़ी
में सजे ग्रामीण दुकान लगाए हैं। पहले मैं एक ग्लास छाछ पीता हूं। वे राबड़ी पीने
का आग्रह करते हैं।
हां ये राबड़ी है, रबड़ी नहीं। राजस्थानी राबड़ी नमकीन होती है। समझो इसमें छाछ के साथ बूंदी और मसाला मिलाया जाता है। दुकान कहते हैं पी लो, काफी अच्छी बनाई है। मैं पैसे नहीं लूंगा पर एक बार पीकर तो देखो। अब इतना मनुहार कर रहे हैं तो पी ही लेता हूं। सममुच राबड़ी का स्वाद काफी अच्छा है।
हां ये राबड़ी है, रबड़ी नहीं। राजस्थानी राबड़ी नमकीन होती है। समझो इसमें छाछ के साथ बूंदी और मसाला मिलाया जाता है। दुकान कहते हैं पी लो, काफी अच्छी बनाई है। मैं पैसे नहीं लूंगा पर एक बार पीकर तो देखो। अब इतना मनुहार कर रहे हैं तो पी ही लेता हूं। सममुच राबड़ी का स्वाद काफी अच्छा है।
गंभीरी
नदी के किनारे दाल बाटी – किला देखकर वापस आ चुका हूं। दोपहर हो गई है। आगे जाने
के लिए बसों की समय सारणी पता कर ली है। अब बस स्टैंड के बगल में बह रही गंभीरी
नदी के ऐतिहासिक नक्काशीदार पुल पर पहुंच गया हूं।
इस पुल के नीचे चौपाटी नुमा बाजार बना है। यह बाजार खासतौर पर खाने पीने का है। यहां पर दाल बाटी की दुकाने सजी हैं। दाल बाटी की प्लेट 50 रुपये की है जाहे जितना भी खाओ। दाल बाटी के साथ छाछ का एक गिलास भी है। मैं एक प्लेट आर्डर कर देता हूं।
धीरे धीरे दाल बाटी उदरस्थ करने में लगा हूं। मेरे लिए तो पांच दाल बाटी ही काफी है। दुबारा नहीं ले पाता। बाटी वाले बताते हैं कि राजस्थान के गांव में दाल बाटी काफी लोकप्रिय है। इसका फायदा है कि आप पूरे घर की बाटी बनाकर बाटी स्टैंड में सजा कर रख दो। अब बाटी धीमी आंच पर पकती रहती है। इसे बार बार आकर देखना नहीं पड़ता। इस बीच महिलाएं घर के दूसरे काम निपटाती रहती हैं।
इस पुल के नीचे चौपाटी नुमा बाजार बना है। यह बाजार खासतौर पर खाने पीने का है। यहां पर दाल बाटी की दुकाने सजी हैं। दाल बाटी की प्लेट 50 रुपये की है जाहे जितना भी खाओ। दाल बाटी के साथ छाछ का एक गिलास भी है। मैं एक प्लेट आर्डर कर देता हूं।
धीरे धीरे दाल बाटी उदरस्थ करने में लगा हूं। मेरे लिए तो पांच दाल बाटी ही काफी है। दुबारा नहीं ले पाता। बाटी वाले बताते हैं कि राजस्थान के गांव में दाल बाटी काफी लोकप्रिय है। इसका फायदा है कि आप पूरे घर की बाटी बनाकर बाटी स्टैंड में सजा कर रख दो। अब बाटी धीमी आंच पर पकती रहती है। इसे बार बार आकर देखना नहीं पड़ता। इस बीच महिलाएं घर के दूसरे काम निपटाती रहती हैं।
चित्तौड़गढ़
शहर के बीचों बीच गंभीरी नदी बहती है। होटल वाले बताते हैं कि गंभीरी नदी में साल
2016 में भीषण बाढ़ आया। तब पास का सरकारी
बस स्टैंड भी डूब गया था। गंभीरी नदी मध्य प्रदेश के जावरा (रतलाम) की पहाड़ियों
से निकलती है। यह चित्तौड़गढ़ के निम्बाहेड़ा में राजस्थान में प्रवेश करती है।
हालांकि चित्तौड़गढ़ में इसका विस्तार ज्यादा नहीं है, पर इसने 2016 में रौद्र रूप
दिखाया था।
गंभीरी चित्तौड़गढ़ में बेडच नदी में मिल जाती है। आगे बेडच नदी बिगोंद में बनास नदी में मिल जाती है। बनास आगे चंबल में मिल जाती है।
गंभीरी चित्तौड़गढ़ में बेडच नदी में मिल जाती है। आगे बेडच नदी बिगोंद में बनास नदी में मिल जाती है। बनास आगे चंबल में मिल जाती है।
रात
की थाली – चित्तौड़ शहर के बस स्टैंड के आसपास कई शाकाहारी भोजनालय हैं जहां थाली 70
से 100 रुपये की मिल जाती है। इसमें तवे की चपातियां और कई किस्म की सब्जियां होती
हैं। खाना सुस्वादु है। यहां कई गुजराती नमकीन की दुकानें दिखाई देती हैं। खाने
पीने लिहाज से चित्तौड़ का स्वाद यादगार रहेगा।
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