चित्तौड़ के किले के मुख्य द्वार से प्रवेश करने
पर कुंभा महल, विजय स्तंभ, जौहर स्थल, समृद्धेश्वर शिव मंदिर, गौमुख कुंड आदि स्थल
आसपास हैं। यहां से कोई दो किलोमीटर आगे चलने पर रानी पद्मिनी का महल आता है जो
किले का मुख्य आकर्षण है। इस महल के पास कालिका माता का सुंदर मंदिर स्थित है।
बाद में इस मंदिर में शक्ति का प्रतीक कालिका माता
की मूर्ति स्थापित की गई। मंदिर के स्तम्भों,
छतों और अन्तःद्वार पर नक्काशी का बेहतरीन काम देखा जा सकता है। मेवाड़
के राजा महाराणा सज्जन सिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस मंदिर में कालिका
माता की मूर्ति प्रतिष्ठा वैशाख शुक्ल अष्टमी को हुई थी,
इसलिए हर साल यहां वैशाख में एक विशाल मेला लगता है। इस मंदिर की व्यवस्था
राजस्थान सरकार का देवस्थान विभाग देखता है।
चित्तौड़गढ के जैन मंदिर –
चित्तौडगढ़ के किले में दिगंबर परंपरा के दो विशाल जैन मंदिर भी हैं। ये जैन मंदिर
काफी अच्छी हालत में हैं। इनमें जैन मुनियों और श्रद्धालुओं का आगमन होता रहता है।
इन मंदिरों को देखकर प्रतीत होता है कि मेवाड़ शासकों से सानिध्य में जैन धर्म
यहां पुष्पित पल्लवित हो रहा था। यह स्थल सालों तक जैन विद्या, साथना का केंद्र
रहा है। यह जैन संत श्री सिद्धसेन दिवाकर की कर्मस्थली रही है। वर्तमान में देश के
प्रमुख जैन उद्योगपतियों द्वारा चित्तौड़गढ़ के इन जैन मंदिरों की देखभाल की जाती
है।
मूल रूप से सूर्य मंदिर था - पद्मिनी के महल के उत्तर में बांयी ओर कालिका
माता का सुन्दर मंदिर स्थित है। यह एक ऊंची कुर्सीवाला विशाल महल जैसा प्रतीत होता
है। इस मंदिर का निर्माण संभवतः नौवीं शताब्दी में मेवाड़ के गुहिल वंशीय राजाओं
ने करवाया था। कहा जाता है कि पहले मूल रूप से यह मंदिर एक सूर्य मंदिर था। इसके
मुख्य मंदिर के द्वार और गर्भ गृह के
बाहरी पार्श्व के ताखों में स्थापित सूर्य की मूर्तियां इस बात को प्रमाणित करती
हैं। बाद में मुसलिम शासको के आक्रमण के दौरान इस मंदिर की कई मूर्ति तोड़ डाली गई
और बरसों तक यह मंदिर सूना रहा।

कालिका माता मंदिर में सालों भर हर रोज
श्रद्धालुओं की आगमन होता रहता है। लोग यहां परिवार समेत मनौती मांगने आते हैं।
मंदिर में प्रसाद चढ़ाते हैं। मंदिर के बाहर खुले मैदान में लोग भोजन भी पकाते
हैं। इस मंदिर में प्रवेश करते समय बंदरों से सावधान रहना चाहिए। यहां बड़ी संख्या
में बंदर हैं। यहां आप बंदरों को चना और गुड़ भी खिला सकते हैं। इसके ले 5 किलो
चना और 5 किलो गुड़ दान करने की परंपरा है।
मंदिर के आसपास पास कुछ दुकाने भी हैं। यहां पर
आप आईसक्रीम, शिंकजी के अलावा थोड़ी सी पेट पूजा कर सकते हैं। यहां राजस्थानी
परिधान में फोटो खिंचवाने वाली भी कई दुकानें स्थित हैं। कुल मिलाकर यह चितौड़गढ़
किले का सबसे मनोरंजक स्थल है।
पद्मिमनी महल गोरा - बादल की
घुमरें
कालिका मंदिर के सामने ही पद्मिनी
महल स्थित है। इस महल में जाने के लिए आपको प्रवेश टिकट चेक करवाना पड़ता है। महल
के अंदर सुंदर पार्क बनाए गए हैं। महल से लगा हुआ एक सुंदर ताल है। कहा जाता है
इसी ताल में महारानी जल क्रीड़ा करती थीं। हालांकि यह ताल इन दिनों बहुत अच्छे हाल
में नहीं है।
इस तालाब के बीचों बीच भी एक छोटा सा जल महल दिखाई देता है।
इस तालाब के बीचों बीच भी एक छोटा सा जल महल दिखाई देता है।
पद्मिनी महल से दक्षिण-पूर्व
में दो गुम्बदाकार इमारतें हैं, जिसे लोग
गोरा और बादल के महल के रूप में जानते हैं। गोरा महारानी पद्मिनी का चाचा था तथा
बादल चचेरा भाई था। रावल रत्नसिंह को अलाउद्दीन के खेमे से निकालने के बाद युद्ध
में पाडन पोल के पास गोरा वीरगति को प्राप्त हो गये और बादल युद्ध में 12 साल की
अल्पायु में ही मारा गया था। देखने में ये इमारत इतने पुराने नहीं मालूम पड़ते।
इनकी निर्माण शैली भी कुछ अलग है।
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चित्तौडगढ़ किले मे कीर्ति स्तंभ और जैन मंदिर |
कीर्ति स्तंभ -
किले के पीछे की ओर जाने पर कीर्ति स्तंभ देखा जा सकता है। यह जैन धर्म के पहले
तीर्थंकर आदिनाथ की याद में बना है। इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में कराया गया। यह
75 फीट ऊंचा है। इसमें ऊपर जे के लिए एक संकरे जीने वाला रास्ता भी बना है।
लाइट एंड साउंड शो -
अगर आपके पास समय हो तो चित्तौड़गढ़ के किले में शाम को लाइट एंड साउंड शो भी
देखें। यह कुंभा महल में हर शाम को होता है। अगर आपके पास समय हो तो लाइट एंड साउंड का आनंद जरूर लें।
- विद्युत प्रकाश मौर्य
( KALIKA MANDIR, SUN TEMPLE, KIRTI STAMBH, RANI MAHAL, CHITAURGARH)
- विद्युत प्रकाश मौर्य
( KALIKA MANDIR, SUN TEMPLE, KIRTI STAMBH, RANI MAHAL, CHITAURGARH)
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