चित्तौड़गढ़ के किले में शिव का
अदभुत मंदिर है। स्थापत्य कला और मूर्ति कला के लिहाज से यह शिव मंदिर देश के सबसे
सुंदर शिव मंदिरों में से एक है। किले में गौमुख कुंड के उत्तरी छोर पर समृध्देश्वर
महादेव का भव्य प्राचीन मंदिर स्थित है। इसके भीतरी और बाहरी भाग पर बहुत ही
सुन्दर नक्काशी का काम किया गया है।
इस मंदिर का निर्माण मालवा के
प्रसिद्ध राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में करवाया था। इसे त्रिभुवन नारायण का शिवालय
और भोज का मंदिर भी कहा जाता था। इसका उल्लेख यहां के शिलालेखों में मिलता है। सन
1428 (विक्रम सवत 1485) में इसका जीर्णोद्धार महाराणा मोकल ने करवाया था,
जिसके कारण लोग इसे मोकलजी का मंदिर भी कहते हैं।
मंदिर के निज मंदिर (गर्भ गृह)
नीचे के भाग में शिवलिंग स्थित है। इसके पीछे की दीवार में शिव की विशाल आकार की
त्रिमूर्ति वाली प्रतिमा बनी है। त्रिमूर्ति की भव्यता तो देखते ही बनती है। शिव
का ऐसी सुंदर प्रतिमा अन्यत्र दुर्लभ है। वे जन्मदाता, पालक और संहारक के रुप में
यहां दिखाई देते हैं।
इस मंदिर में दो शिलालेख हैं। पहला
सन 1150 ईश्वी का है। इसके अनुसार गुजरात के सोलंकी राजा कुमारपाल का अजमेर के
चौहान राजा आणाजी को परास्त कर चित्तौड़ आने का विवरण मिलता है। इस दौरान उसने इस
मंदिर का निरीक्षण किया था। तब उसने मंदिर के दक्षिण मुख्य प्रवेश द्वार के पास एक
शिलालेख खुदवाया था।
दूसरा शिलालेख जो सन 1428 का है,
यह महाराणा मोकल से संबंधित है, जिसमें मंदिर के जीर्णोद्धार का जिक्र मिलता है।
समृद्धेश्वर शिव मंदिर में आज
भी नियमित पूजा होती है। समृद्धेश्वर मंदिर के पृष्ठ भाग में आप विशाल जल कुंड देख
सकते हैं। इसे गौमुख कुंड भी कहते हैं। ऊंचाई पर स्थित किले में बने विशाल कुंड
में सालों भर पानी रहता है। इस कुंड तक पहुंचने के लिए मंदिर के बगल से रास्ता बना
है। राजस्थान के आसपास के श्रद्धालु चित्तौडगढ़ किले में समृद्धेश्वर महादेव के
दर्शन करने नियमित तौर पर आते हैं। ये श्रद्धालु दर्शन से पहले गौमुख कुंड में
जाकर स्नान करते हैं। स्नान के बाद मंदिर में जाकर पूजा करने की परंपरा है। लोगों
की मान्यता है कि समृद्धेश्वर महादेव घर को धन धान्य से परिपूर्ण करत हैं।
जटाशंकर महादेव देवालय
चितौड़गढ़ के किले में एक और
सुंदर शिव मंदिर है। कीर्ति स्तम्भ के उत्तर में जटाशंकर नामक शिवालय स्थित है। इस
मंदिर के बाहरी हिस्से तथा सभामंडप की छत पर उत्कीर्ण देवताओं तथा अन्य तरह की
आकृतियां प्रशंसनीय है। इस मंदिर की अधिकतर मूर्तियां अभी भी अखण्डित एवं सुरक्षित
हैं। इस मंदिर में भी नियमित पूजा होती है। यहां एक छोटा सा मठ भी है जिसमें
पुजारी निवास करते हैं। यहां से पूरे चित्तौड़गढ़ शहर का अदभुत नजारा दिखाई देता
है। किले की छत से देखें तो चित्तौड़गढ़ शहर कंक्रीट का जंगल नजर आता है। शहर के
आसपास खेत और ऊपर खुला आसमान। सर्दी की गुनगुनी सुबह में यह बर्ड आई व्यू काफी
सुंदर भी है। चलिए ना अब आगे भी चलते हैं...
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विद्युत
प्रकाश मौर्य
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वयस्क होता बचपन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteधन्यवाद।
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