मेनाल के मंदिर दर्शन के बाद
आधा किलोमीटर पैदल चलकर मैं भीलवाडा – कोटा हाईवे पर आ जाता हूं। यहां एक दो लाइन
होटल हैं और जोगणिया माता मंदिर की तरफ जाने वाले रास्ते का प्रवेश द्वार है। बस
अंधेरा होने ही वाला है। कुछ मिनट इंतजार के बाद कोटा की तरफ जाने वाली बस दिखाई
दे गई। मैंने बस को हाथ दिया और बस रूक गई। अब मैं कोटा की तरफ जा रहा हूं। बस
हाईवे पर सरपट भाग रही है। पहले आरोली बाजार आया, फिर बस बिजौलिया नामक कस्बे में
जाकर रुक गई। यहां तकरीब 20 मिनट का ठहराव था।
यह बिजौलिया भीलवाड़ा जिले में पड़ता है। पर मुझे पता चलता है कि बिजौलिया राजस्थान के प्रजा-मंडल आन्दोलन में विशिष्ट स्थान रखता है। यहीं से महान स्वतंत्रता सेनानी और गुर्जर समाज के गौरव विजय सिंह 'पथिक' के नेतृत्व में जागीरदारी के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत हुई थी। यह स्वतंत्रता से पहले देश का प्रमुख किसान आंदोलन था। 27 फरवरी 1882 को विजय सिंह पथिक का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के गुठावली कलां गांव में हुआ था। उनकी मृत्यु 28 मई 1954 को हुई।
यह बिजौलिया भीलवाड़ा जिले में पड़ता है। पर मुझे पता चलता है कि बिजौलिया राजस्थान के प्रजा-मंडल आन्दोलन में विशिष्ट स्थान रखता है। यहीं से महान स्वतंत्रता सेनानी और गुर्जर समाज के गौरव विजय सिंह 'पथिक' के नेतृत्व में जागीरदारी के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत हुई थी। यह स्वतंत्रता से पहले देश का प्रमुख किसान आंदोलन था। 27 फरवरी 1882 को विजय सिंह पथिक का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के गुठावली कलां गांव में हुआ था। उनकी मृत्यु 28 मई 1954 को हुई।
पथिक का युवावस्था में ही सम्पर्क रास बिहारी बोस और शचीन्द्र नाथ सान्याल जैसे
क्रान्तिकारियों से हो गया था। साल 1915 के लाहौर षड्यन्त्र के बाद उन्होंने अपना असली नाम
भूप सिंह गुर्जर से बदल कर विजय सिंह पथिक रख लिया था। बाद में हमेशा इसी नाम से जाने
जाते रहे। महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन से भी पहले
1916 में पथिक ने राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया में किसानों का आंदोलन खड़ा कर किसानों में स्वतंत्रता के लिए अलख जगाने का काम किया था। तब
बिजौलिया उदयपुर रियासत में आता था। यहां के किसान अंग्रेजों द्वारा मालगुजारी के
तौर पर ज्यादा राशि वसूले जाने से परेशान थे। यहां किसानों पर कुल 84 तरह के कर लगाए जाते
थे। पथिक ने कई साल इस आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने साल 1919 में मुंबई जाकर गांधी जो को
किसानों की करुण दशा सुनाई। पथिक उच्च कोटि के पत्रकार भी थे। उन्होंने वर्धा में
रहकर राजस्थान केसरी नामक पत्र भी निकाला। बाद में अजमेर से नवीन राजस्थान नामक पत्र
भी निकाला।
बिजौलिया के गांधी - पथिक को उनके कार्यों से बिजौलिया का गांधी भी कहा गया। 1921 में पथिक ने बेगू,
पारसोली, भिन्डर, बस्सी
और उदयपुर में शक्तिशाली आन्दोलन खड़ा किया। बिजौलिया दूसरे
क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया। अंतत: ब्रिटिश सरकार ने जी हालैण्ड
को बिजौलिया किसान पंचायत बोर्ड और राजस्थान सेवा संघ से बातचीत करने के लिए
नियुक्त किया। दोनो पक्षों में समझौता हुआ और किसानों की तमाम मांगें मान ली गईं। कुल
84 में से 35 लागन माफ हुए। यह किसानों की बड़ी जीत थी।

गाजियाबाद में पथिक की प्रतिमा- दिल्ली के पास गाजियाबाद में भोपुरा तिराहा पर 2017 में विजय सिंह की पथिक की प्रतिमा लगाई गई है। इस प्रतिमा के साथ लिखे आलेख में उनके योगदान को याद किया गया है। गाजियाबाद , बुलंदशहर क्षेत्र के लोग स्वतंत्रता आंदोलन, किसान आंदोलन और पत्रकारिता में पथिक की भूमिका पर गर्व करते हैं।
बिजौलिया की ऐतिहासिक बावड़ियां और मंदिर -
बिजौलिया में कुछ ऐतिहासिक इमारते भी हैं। यहं पर प्रसिद्ध मंदाकिनी मंदिर एवं कुछ
बावडियां स्थित हैं। ये मंदिर 12 वीं
शताब्दी के बने हुए हैं। लाल पत्थरों से बने ये मंदिर पुरातात्विक व ऐतिहासिक
महत्व के हैं।
बस बिजौलिया से आगे चल पडी है। आगे
बूंदी जिले का डाबी नामक कस्बा आता है। कुछ देर बाद बस राजस्थान के सबसे बड़े
शहरों में से एक कोटा में प्रवेश कर चुकी है। बस हमें कोटा के बस स्टैंड में उतार
देती है। पर मुझे अगले दिन सुबह रेल से सफर करना है इसलिए मैं बस स्टैंड से आटो
पकड़कर रेलवे स्टेशन के लिए चल देता हूं। कोटा रेलवे स्टेशन के पास राम मंदिर रोड
पर एक होटल में रात के लिए ठिकाना बनाता हूं।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य
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