राजस्थान
के चित्तौड़गढ़ जिले के बेगूं कस्बे में जोगणिया माता का मंदिर है। इसके बारे में ऐसी ही मान्यता है कि लोग
यहां हथकड़ी चढाते हैं। माना जाता है कि जो अपराधी पुलिस
से पीछा छुडाना चाहते है वह यहां आकर यदि हथकड़ी चढ़ा देते हैं तो पुलिस और
मुकदमे से निजात मिलती है। कहा जाता है कि अपराधी
यहां भविष्य में अपराध न करने कसम खाता कर यहां हथकड़ियां बंधता है तो कुछ दिनों
बाद ही हथकड़ियां अपने
आप खुल जाती हैं।
ऊपरमाल पठार के दक्षिणी
छोर पर जोगणिया माता का प्रसिद्ध
मन्दिर स्थित है।
माना जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ। लोकमान्यता है कि पहले यहां अन्नपूर्णा देवी का मन्दिर था। माता द्वारा पर्चा देने और चमत्कार दिखने की अनेक कथाएं लोक मानस में प्रचलित है। मनोकामना पूरी होने पर मन्दिर परिसर में मुर्गे छोड़कर जाने की भी प्रथा है।
माना जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ। लोकमान्यता है कि पहले यहां अन्नपूर्णा देवी का मन्दिर था। माता द्वारा पर्चा देने और चमत्कार दिखने की अनेक कथाएं लोक मानस में प्रचलित है। मनोकामना पूरी होने पर मन्दिर परिसर में मुर्गे छोड़कर जाने की भी प्रथा है।
लोक आस्था की देवी - जोगणिया माता लोक आस्था की देवी
है। एक
चमत्कारी देवी के रूप में उनकी मान्यता है। देवी मन्दिर
के प्रवेश द्वार पर दो शेरों की सजीव आकृतियां बनी हैं। मन्दिर
के गर्भगृह में महाकाली, महालक्ष्मी और सरस्वती की
प्रतिमाएं प्रतिष्ठापित है। मन्दिर
परिसर में दो शिव मन्दिर बने हैं जहां सालों भर गोमुख
से रिस-रिसकर जलधारा बहती है। जोगणिया माता परिसर की देव
प्रतिमाओं में पद्मासनस्थ शिव, अष्टभुजी नटराज और स्थानक सूर्य की
प्रतिमायें बहुत सजीव और कलात्मक हैं। पर्वतमाला और
सुरम्य वन्य प्रदेश के बीच स्थित होने के कारण मन्दिर का नैसर्गिक सौन्दर्य लोगों को मोह लेता है।
जोगणिया माता की कृपा से मनोवांछित फल पाने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में देवी के इस मन्दिर में आते हैं। माता द्वारा पर्चा देने और चमत्कार दिखने की अनेक कथाएं लोक मानस में खूब प्रचलित है। मन्दिर से एक किलोमीटर पर बम्बावदागढ़ का किला है जहां हाडा शासक बम्बदेव का शासन था। जनश्रुति है कि बम्बावदागढ़ के अन्तिम शासक देवा हाड़ा ने देवी अन्नपुर्णा को अपनी पुत्री के विवाह में आशीर्वाद देने हेतु आमन्त्रित किया। देवी अपने प्रति आस्था की परीक्षा लेने हेतु जोगन का रूप धारणं कर विवाह समारोह में आई लेकिन देवी को इस रूप में कोई पहचान नहीं सका, इसके कारणउन्हें यथेष्ठ सम्मान नहीं मिला। बाद में देवी एक सुन्दर युवती का वेश धारण कर विवाह स्थल पर फिर से आयी तो सम्मरोह में आए अनेक लोग इस युवती के सौन्दर्य पर मुग्ध हो गए तथा उसे अपने साथ ले जाने हेतु आपस में लड़ने लगे। स्वयं देवा हाडा भी इस युद्ध में घायल हो गया।
तत्पश्चात देवा हाड़ा ने अन्नपूर्णा देवी के मन्दिर में काफी अरसे तक उनकी आराधना की। इसके बाद देवी के आदेश से वह बूंदी चला गया और मेवाड़ के महाराणा हम्मीर की सहायता से सन 1341 में बूंदी पर हाडा राजवंश का शासन स्थापित किया। देवा हाड़ा की पुत्री के विवाह में जोगन का रूप धारण करने के बाद से ही वे अन्नपूर्णा के बजाय जोगणियामाता के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुई।
प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मेनाल से मात्र सात किलोमीटर दूर होने कारण वहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक भी जोगणिया माता के दर्शनार्थ मन्दिर में आते हैं।
जोगणिया माता की कृपा से मनोवांछित फल पाने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में देवी के इस मन्दिर में आते हैं। माता द्वारा पर्चा देने और चमत्कार दिखने की अनेक कथाएं लोक मानस में खूब प्रचलित है। मन्दिर से एक किलोमीटर पर बम्बावदागढ़ का किला है जहां हाडा शासक बम्बदेव का शासन था। जनश्रुति है कि बम्बावदागढ़ के अन्तिम शासक देवा हाड़ा ने देवी अन्नपुर्णा को अपनी पुत्री के विवाह में आशीर्वाद देने हेतु आमन्त्रित किया। देवी अपने प्रति आस्था की परीक्षा लेने हेतु जोगन का रूप धारणं कर विवाह समारोह में आई लेकिन देवी को इस रूप में कोई पहचान नहीं सका, इसके कारणउन्हें यथेष्ठ सम्मान नहीं मिला। बाद में देवी एक सुन्दर युवती का वेश धारण कर विवाह स्थल पर फिर से आयी तो सम्मरोह में आए अनेक लोग इस युवती के सौन्दर्य पर मुग्ध हो गए तथा उसे अपने साथ ले जाने हेतु आपस में लड़ने लगे। स्वयं देवा हाडा भी इस युद्ध में घायल हो गया।
तत्पश्चात देवा हाड़ा ने अन्नपूर्णा देवी के मन्दिर में काफी अरसे तक उनकी आराधना की। इसके बाद देवी के आदेश से वह बूंदी चला गया और मेवाड़ के महाराणा हम्मीर की सहायता से सन 1341 में बूंदी पर हाडा राजवंश का शासन स्थापित किया। देवा हाड़ा की पुत्री के विवाह में जोगन का रूप धारण करने के बाद से ही वे अन्नपूर्णा के बजाय जोगणियामाता के नाम से लोक में प्रसिद्ध हुई।
प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मेनाल से मात्र सात किलोमीटर दूर होने कारण वहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक भी जोगणिया माता के दर्शनार्थ मन्दिर में आते हैं।
कैसे पहुंचे - चित्तौड़गढ़
से लगभग 85 किलोमीटर दूर राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों की सीमा पर जोगणिया माता का
मंदिर स्थित है। भीलवाड़ा-कोटा हाईवे पर मेनाल से उतर कर मंदिर पहुंचना सहज है।
मेनाल से मंदिर की दूरी 7 किलोमीटर है।
मंदिर का जीर्णोद्धार
जारी – मैं जब
जोगणिया माता के मंदिर में पहुंचा हूं तो देख रहा हूं कि मंदिर का जीर्णोद्धार
जारी है। बताया जा रहा है कि जोगणिया माता मंदिर का
शिखर 71 फीट
ऊंचा होगा। इसका जीर्णोद्धार करोड़ों की लागत से हो रहा
है।
(JOGANIA MATA TEMPLE, MENAL )
--- विद्युत प्रकाश मौर्य
(JOGANIA MATA TEMPLE, MENAL )
--- विद्युत प्रकाश मौर्य
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