राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में घने
जंगलों में स्थित रणथंभौर किला देश के उन किलों में शामिल है, जो कई राजवंशों और कई
युद्ध की कहानी बयां करता है। यह रणथंभौर के जंगलों के बीच में स्थित है। सवाई माधोपुर रेलवे
स्टेशन से 15 किलोमीटर दूर
है रणथंभौर का किला। यह किला राजस्थान के अन्य किलों के समूह के साथ यूनेस्को की
विश्व विरासत की सूची में शामिल है। इतिहास में कई लड़ाइयों का साक्षी रणथंभौर अब
जाना जाता है टाइगर सफारी के लिए तो गणेश जी के मंदिर के लिए।
यादव राजाओं ने बनवाया किला – इस किले का निर्माण महाराज जयंत ने पांचवी सदी में करवाया
था। यह किला यादव राजाओं के अधीन 12वीं सदी तक रहा। इस किले से चौहान राजाओं ने कई
लड़ाइयां लड़ी। इस किले ने शाकंभरी के चाहमान राजाओं को काफी ताकत प्रदान की।
12वीं सदी में यह किला पृथ्वी राज चौहान के स्वामित्व में आ गया। हम्मीर देव जिसने सन 1282 से 1301 तक शासन किया
इस किले से शासन करने वाला सबसे प्रतापी राजा था। उसकी बनवाई हुई हम्मीर की कचहरी
और महल यहां अब भी देखा जा सकता है। वह एक शक्तिशाली शासक था जिसने कला और साहित्य
को बढावा दिया। पर 1301 में यह किला अलाउद्दीन खिलजी के कब्जे में आ गया। लंबे समय
बाद 1509 से 1527 तक यह किला राणा सांगा के कब्जे में रहा। इसके बाद यह मुगलों के
अधीन हो गया। साल 1569 में इस किले पर अकबर का कब्जा हो
गया।
किले के सात दरवाजे - रणनीतिक तौर पर
सुरक्षित रखने के लिए किले में सात दरवाजे बनाए गए हैं। शेरपुर के पास दिल्ली गेट
से प्रवेश करने के बाद आगे
सतपोल और सूरजपोल जैसे गेट आते हैं। आगे नवलखा पोल, हाथी
पोल, गणेश पोल के बाद अंधेरी पोल आता है। अंधेरी पोल में दरवाजे के पास टेढा
रास्ता है। किले के बुर्ज पर ऊंचाई से कई किलोमीटर तक का नजारा देखा जा सकता है।
दुश्मन पर नजर रखने के लिए किले की बनावट शानदार थी।
बाघों का अभ्यारण्य - रणथंभौर किले के आसपास बहुत बड़ा इलाका
जंगल है। आजादी के बाद इस जंगल के संरक्षण की कवायद शुरू की गई।
1973 में भारत सरकार ने रणथंभौर के
जंगल को टाइगर रिजर्व ( बाघों के लिए अभ्यारण्य ) घोषित किया। 1980 में इस नेशनल पार्क का दर्जा मिला। साल 2014 की गणना में रणथंभौर में 62
बाघ पाए गए थे। यहां आप बंद जीप में बैठकर टाइगर सफारी के लिए जा सकते
हैं। सफारी के लिए सवाई माधोपुर शहर में
बजरिया और कई होटलों में बुकिंग होती है।
रणथंभौर
के बाघों पर शिकारियों की भी बुरी नजर रहती है। जब टाइगर देखने के इरादे से जाएं
तो जंगल में कुलांचे भरते बाघ दिखाई देंगे ही इसकी कोई गारंटी नहीं रहती। इसलिए जब
मैं रणथंभौर गया तब टाइगर सफारी में कोई रूचि नहीं दिखाई। हां, किला घूमने के लिए हमारा पूरा समूह निकल पड़ा।
इस किले के आसपास कई तालाब भी हैं। इन तालाबों को अलग अलग नाम से
जाना जाता है। पद्म तालाब, राजाबाग का तालाब, मलिक
तालाब आदि। आपके पास समय हो तो इन तालाबों को करीब से देख सकते हैं। चंबल के आंचल में गरमी में लंबा वक्त गुजारने के बाद मैं और दिग्विजय सिंह
जून 1992 की गरमी में रणथंभौर के किले में पहुंचे
थे। हमारे साथ महाराष्ट्र के दो साथी भी थे।
घूमने वालों को सलाह – किले का दायरा भी बहुत बडा है। आप घूमते-घूमते
थक जाएंगे। ऊंची ऊंची दीवारें और विशाल दरवाजों वाले इस किले में सरदी और बरसात में जाना अच्छा रहेगा। किला भ्रमण के
दौरान पानी की बोतल अपने साथ रखें। अंदर कोई दुकान नहीं है इसलिए हल्का खाने पीने
का सामान भी रख लें। कोई बड़ा लगेज लेकर किले में न जाएं। यहां रखने का इंतजाम
नहीं है।
ये किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित है पर किले में
प्रवेश के लिए कोई टिकट नहीं है।
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विद्युत प्रकाश
मौर्य
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विश्व विरासत किला -
05 वीं सदी का बना हुआ है किला
05 वीं सदी का बना हुआ है किला
700 फीट की ऊंचाई पर है किला
07 किलोमीटर में है किले का
विस्तार
17 वीं सदी में मुगलों ने जयपुर के
राजा को उपहार में दिया यह किला।