तलवंडी
साबो बस स्टैंड से निकलकर मैं श्री दमदमा साहिब का रास्ता पूछता हूं। बस स्टैंड से
बाहर निकलते ही दाहिनी तरफ थोड़ी चलने के बाद गुरघर का विशाल प्रवेश द्वार नजर आता
है।
सिख
पंथ में पांच तख्त हैं। अमृतसर का श्री हरिमंदिर
साहिब, रुपनगर जिले में आनंदपुर साहिब, बिहार की
राजधानी पटना सिटी में श्री हरिमंदिर साहिब, महाराष्ट्र के नांदेड़ में
श्री हुजुर साहिब सचखंड गुरुद्वारा और ये आखिरी पंजाब के बठिंडा जिले में श्री
दमदमा साहिब।
पांचवें तख्त के तौर पर मान्यता - श्री दमदमा साहिब को 18 नवंबर 1966 में पांचवे तख्त के
तौर पर मान्यता दी गई। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर ने तलवंडी साबो के
महत्व को देखते हुए इसे पांचवे तख्त के तौर पर मान्यता दी। इस तरह यह पांचों तख्त
में सबसे नया है।
तलवंडी
साबो को गुरु की काशी भी कहा जाता है। दमदमा साहिब गुरुद्वारा का परिसर अत्यंत
विशाल है। परिसर में आप मुख्य गुरुद्वारा के अलावा शहीद बाबा दीप सिंह का कुआं और
गुरुद्वारा लिखनसर साहिब के दर्शन कर सकते हैं।
सिख
श्रद्धालुओं के लिए यहां ठहरने के लिए गुरुद्वारा परिसर में ही सराय की सुविधा
उपलब्ध है। श्रद्धालुओं के लिए यहां अखंड लंगर भी चलता रहता है। तलवंडी साबो बहुत
छोटा सा शहर है। यह रेल लिंक पर नहीं है। पर बठिंडा और मानसा के लिए यहां से हमेशा
बसों की सुविधा उपलब्ध है। गुरुद्वारा परिसर के मुख्य मार्ग पर उपहार सामग्री की
दुकानें सजी नजर आती हैं। यहां पर आप बच्चों के खिलौने और सिख धर्म से जुड़े
प्रतीक वस्तुओं की खरीददारी कर सकते हैं।
तलवंडी साबो का सिख इतिहास में पहुत महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर सिखों द्वारा बचाव के लिए किए गए कई युद्धों के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी इस स्थान पर रुके थे। गुरु गोबिंद सिंह यहां एक साल के लिए रुके थे। दमदमा का अर्थ है सांस लेने का स्थान। गुरु गोबिंद सिंह जी ने दक्कन की सिख संगत के लिए प्रस्थान करने से पूर्व तलवंडी साबो को गुरु की काशी के रूप में आशीर्वाद दिया था।इस स्थान पर गुरूद्वारा का निर्माण होने के बाद इसे सिख पंथ के चार तख्तों में जोड़ दिया गया। इसे अब दमदमा साहिब के नाम से जाना जाता है।
तलवंडी साबो का सिख इतिहास में पहुत महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर सिखों द्वारा बचाव के लिए किए गए कई युद्धों के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी इस स्थान पर रुके थे। गुरु गोबिंद सिंह यहां एक साल के लिए रुके थे। दमदमा का अर्थ है सांस लेने का स्थान। गुरु गोबिंद सिंह जी ने दक्कन की सिख संगत के लिए प्रस्थान करने से पूर्व तलवंडी साबो को गुरु की काशी के रूप में आशीर्वाद दिया था।इस स्थान पर गुरूद्वारा का निर्माण होने के बाद इसे सिख पंथ के चार तख्तों में जोड़ दिया गया। इसे अब दमदमा साहिब के नाम से जाना जाता है।
दमदमा साहिब का इतिहास सिखों के
एक महान शहीद बाबा दीप सिंह जी से भी जुड़ा है। वे इस इस तख़्त के पहले जत्थेदार
थे। सिख इतिहास शहीद बाबा दीप सिंह के बहादुरी के किस्से से भरा पड़ा है।
शहीद बाबा दीप सिंह का जन्म 26
जनवरी 1682 को तरन तारन की तहसील पट्टी के गांव पहुविन्ड में रहने वाले एक सधारण
परिवार में भाई भगतु तथा माता जिऊणी के घर हुआ था। वे 18 साल की उम्र में आनंदपुर
साहिब में अपने माता पिता के साथ गुरु गोबिंद सिंह जी के दर्शन करने आए तो गुरु की
सेवा में ही लग गए। दक्षिण रवाना होने से पहले गुरु गोबिंद सिंह ने तलवंडी साबो की
सारी जिम्मेवारी बाबा दीप सिंह को सौंप दी। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।
बैशाखी पर विशाल मेला –
तलवंडी साबो में हर साल बैशाखी पर विशाल मेला लगता है। खालसा पंथ के सृजनहार और
सरबंसदानी दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की चरण स्पर्श सरजमीं तख्त श्री
दमदमा साहिब तलवंडी साबो में वैशाखी मेला हर साल बड़े ही शान-ओ-शौकत से लगता
है। तीन दिन तक चलने वाले मेले में
लाखों सिख श्रद्धालु पहुंचते हैं।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य
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(SIKH
HISTORY, TALWANDI SABO, BABA DEEP SINGH , FIFTH
TAKHAT )
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