जयगांव से सिलिगुड़ी के वापसी के सफर में माल बाजार के बाद टैक्सी वाले ने रास्ता बदल लिया। वे सेवक के बाघ पुल की तरफ नहीं गए, बल्कि वे शार्ट कर्ट से सिलिगुड़ी की तरफ चल पड़े। हालांकि बसें तो बाघ पुल से होकर ही जाती हैं। इस नए रास्ते से आने का हमें लाभ हुआ। समय की बचत हुई। इसके साथ ही हमें तीस्ता नदी पर तीस्ता बैराज देखने का मौका भी मिल गया।
यहां बैराज बनाकर सिंचाई के लिए नहर निकाली गई है। तीस्ता नदी को हमने सिलिगुड़ी से गंगटोक जाते हुए रास्ते में खूब देखा है। कई बार देखा है। तीस्ता नदी में यहां भी पानी खूब है। यहां से निकली नहर से सिलिगुड़ी के आसपास के खेतों को पानी मिलता है।
चाय की प्याली - तीस्ता बैराज पार करके टैक्सी वाले रूक गए हैं। सड़क के किनारे कुछ चाय की दुकानें हैं। यहां हमलोगों ने रुककर चाय पी और बिस्कुट खाया। चाय, पांच रुपये प्रति कप। तो महाराष्ट्र से बंगाल बहुत सस्ता है। महाराष्ट्र में पांच साल पहले सड़क के किनारे चाय दस रुपये की थी।
तीन घंटे के सफर में हमलोग सिलिगुड़ी में कदमतल्ला इलाके में पहुंच गए हैं। यहां पर मारवाड़ी दंपत्ति उतर गए। हमें लेकर टैक्सी वाले आगे चले। थोड़ी देर बाद हम दार्जिलिंग मोड पर पहुंच गए।
टैक्सी वाले ने कहा कि आप हमें 100 रुपये और दें तो एयरपोर्ट पर छोड़ दूंगा। हमें यही तो चाहिए था। अगर सिलिगुड़ी बस स्टैंड जाते तो वहां से एयरपोर्ट के लिए टैक्सी वाले 600 रुपये मांगते हैं महज 12 किलोमीटर के लिए।
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सिलिगुड़ी के पास तीस्ता नदी के बैराज पर। |
तीन घंटे के सफर में हमलोग सिलिगुड़ी में कदमतल्ला इलाके में पहुंच गए हैं। यहां पर मारवाड़ी दंपत्ति उतर गए। हमें लेकर टैक्सी वाले आगे चले। थोड़ी देर बाद हम दार्जिलिंग मोड पर पहुंच गए।
टैक्सी वाले ने कहा कि आप हमें 100 रुपये और दें तो एयरपोर्ट पर छोड़ दूंगा। हमें यही तो चाहिए था। अगर सिलिगुड़ी बस स्टैंड जाते तो वहां से एयरपोर्ट के लिए टैक्सी वाले 600 रुपये मांगते हैं महज 12 किलोमीटर के लिए।
हम एयरपोर्ट के पास पहुंच गए हैं पर हमारी उड़ान में अभी देर है। तो टैक्सी वाले ने हाईवे से एयरपोर्ट को मुड़ने वाली सड़क के पास एक होटल में हमें छोड़ दिया। चारों तरफ चाय बगान बीच में भोजनालय। यहां 80 रुपये की शाकाहारी थाली है। चावल, दाल, सब्जी, भुजिया, घर जैसा बना हुआ साग, छोटे छोटे कटे हुए सलाद और चटनी। ये सब कुछ खाना अनलिमिटेड। खाने के बाद हमने थोड़ी देर यहीं टाइम पास किया। 12 बजे हम बागडोगरा एयरपोर्ट में प्रवेश कर चुके थे। चेक इन के बाद थोड़ा इंतजार। इस दौरान सिलिगुड़ी से प्रकाशित प्रभात खबर पढने को मिल गया।
इस बीच हमने एयरपोर्ट पर बने गोल्डेन टिप्स के स्टाल से दार्जिलिंग की चाय खरीदी। ग्रीन टी और लीफ टी। एयरपोर्ट के स्टाल पर भी चाय की वही दरें हैं जो दार्जिलिंग के स्टोर में रहती हैं। यह सबसे अच्छी बात है। वर्ना कई जगह एयरपोर्ट के स्टाल पर हर चीज महंगी बिकती है। तो जब भी आप बाग डोगरा से विमान लें चाय पत्ती खूब खरीद सकते हैं।
अब एयर इंडिया का विमान 13.40 में उड़ान के लिए तैयार हो गया। 13.50 में आसमान में था। एक घंटे बाद कप्तान सरजीत सिंह की आवाज आई – हम 34 हजार फीट की ऊंचाई पर हैं। बाहर का तापमान -47 डिग्री सेल्सियस है। मौसम साफ है। विमान को चारों तरफ से शुद्ध हवा के हल्के धक्के लग रहे हैं। विमान के को पायलट परवेज मल्हान हैं। क्रू प्रभारी तन्मय मित्रा। तो हमलोग साढ़े तीन बजे दिल्ली में उतरने लगे हैं। खुशियों के देश भूटान से एक बार फिर उसी दौड़ती भागती जिंदगी में वापसी।
( यहां भूटान की यात्रा खत्म हो रही है, पर फिर चलेंगे किसी और यात्रा पर, जिंदगी सफर ही तो है... )
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बागडोगरा - चाय के बगान में , उड़ान से पहले। |
अब एयर इंडिया का विमान 13.40 में उड़ान के लिए तैयार हो गया। 13.50 में आसमान में था। एक घंटे बाद कप्तान सरजीत सिंह की आवाज आई – हम 34 हजार फीट की ऊंचाई पर हैं। बाहर का तापमान -47 डिग्री सेल्सियस है। मौसम साफ है। विमान को चारों तरफ से शुद्ध हवा के हल्के धक्के लग रहे हैं। विमान के को पायलट परवेज मल्हान हैं। क्रू प्रभारी तन्मय मित्रा। तो हमलोग साढ़े तीन बजे दिल्ली में उतरने लगे हैं। खुशियों के देश भूटान से एक बार फिर उसी दौड़ती भागती जिंदगी में वापसी।
( यहां भूटान की यात्रा खत्म हो रही है, पर फिर चलेंगे किसी और यात्रा पर, जिंदगी सफर ही तो है... )
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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