अजमेर
भीलवाड़ा जाने के लिए रेल का चयन किया। रेलवे स्टेशन के सामने एक दानापानी
रेस्टोरेंट दिखाई देता है। हां यही तो मेरे ब्लाग का भी नाम है। इस नाम का
रेस्टोरेंट देखकर खुशी होती है। भीलवाड़ा का टिकट लेकर प्लेटफार्म पर ट्रेन का
इंतजार करने लगा। अजमेर का प्लेटफार्म नंबर एक काफी साफ सुथरा है। प्रतीक्षालय और
उसके टायलेट भी बेहतर हाल में हैं। कुछ देर एक नंबर प्लेटफार्म के प्रतीक्षालय में
गुजारना अच्छा लगता है। जोधपुर इंदौर एक्सप्रेस (14801) दोपहर में एक बजे है। मैं समय होने पर दो नंबर
प्लेटफार्म पर पहुंच गया। कुछ मिनट देर से ट्रेन पहुंच गई। यह ट्रेन सुबह जोधपुर
से चलकर पाली मारवाड़ होते हुए अजमेर पहुंचती है। ट्रेन में जगह आसानी से मिल गई।
खिड़की वाली सीट। अगला स्टापेज है नसीराबाद।
इसके बाद बैजननगर फिर सरारी। हालांकि ट्रेन कुछ स्टेशनों पर रुकती गई जहां ठहराव नहीं था। भीलवाड़ा शहर से पहले आउटर सिग्नल पर भी थोड़ी देर रुकी। रास्ते में कई जगह पराठे बेचने वाले मिले। यह पराठा कम नमकीन मोटी रोटी ज्यादा नजर आ रहा है। हम साढ़े तीन बजे भीलवाड़ा रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए हैं। राजस्थान में भीलवाड़ा की प्रसिद्ध टेक्सटाइल सिटी के तौर पर है। कानपुर का कपड़ा उद्योग भले बरबाद हो गया पर भीलवाड़ा का बचा हुआ है। मयूर सूटिंग, बीएसएल जैसी नामचीन कपड़ा निर्माता कंपनियां यहां उत्पादन कर रही हैं। भीलवाड़ा उत्तर पश्चिम रेलवे (एनडब्लूआर) का रेलवे स्टेशन है।
इसके बाद बैजननगर फिर सरारी। हालांकि ट्रेन कुछ स्टेशनों पर रुकती गई जहां ठहराव नहीं था। भीलवाड़ा शहर से पहले आउटर सिग्नल पर भी थोड़ी देर रुकी। रास्ते में कई जगह पराठे बेचने वाले मिले। यह पराठा कम नमकीन मोटी रोटी ज्यादा नजर आ रहा है। हम साढ़े तीन बजे भीलवाड़ा रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए हैं। राजस्थान में भीलवाड़ा की प्रसिद्ध टेक्सटाइल सिटी के तौर पर है। कानपुर का कपड़ा उद्योग भले बरबाद हो गया पर भीलवाड़ा का बचा हुआ है। मयूर सूटिंग, बीएसएल जैसी नामचीन कपड़ा निर्माता कंपनियां यहां उत्पादन कर रही हैं। भीलवाड़ा उत्तर पश्चिम रेलवे (एनडब्लूआर) का रेलवे स्टेशन है।
स्टेशन
के बाहर निकलने पर स्टेशन भवन की दीवारों में रंगबिरंगी सुंदर पेंटिंग नजर आती
हैं। स्टेशन भवन पर राजस्थानी शैली की सुंदर छाप दिखाई दे रही है। स्टेशन भवन में हनुमान
जी का मंदिर है। ये हठीले हनुमान जी हैं। मंदिर के बाहर बोर्ड लगा है। श्री हठीले
हनुमान जी। जरूर उन्होंने कोई हठ किया होगा, तभी उनके नाम के साथ ये उपमा लगी है।
कहा जाता है कि एक समय में यहां
भील जाति के लोगों की बड़ी तादात पाई जाती थी। इसी कारण इस स्थान का नाम भीलवाड़ा
पड़ा। भीलवाड़ा मतलब भीलों का घर। इसके आसपास का क्षेत्र ऊंचा और पठारी है। गेहं,
मक्का और कपास जिले की प्रमुख फसल है।
भीलवाड़ा की स्थापना क़रीब 400
साल पहले हुई बताई जाती है। भीलवाड़ा के शासकों में निरंतर युद्ध
हुए इसलिए इसे कई बार उजड़ना पड़ा। अंग्रेज़ी शासन के दौरान 18वीं शताब्दी में इसकी स्थिति में धीरे-धीरे परिवर्तन हुआ। साल 1948 में राजस्थान का भाग बनने से पूर्व भीलवाडा उदयपुर
रियासत का एक हिस्सा हुआ करता था। भीलवाड़ा जिले की सीमाएं पूर्व में बूंदी, पश्चिम में राजसमंद,
उत्तर में अजमेर और दक्षिण
में चित्तौड़गढ़ जिले से
मिलती हैं।
भीलवाड़ा शहर में गांधी सागर
तालाब स्थित है। कभी यह तालाब शहर के लोगों के पेयजल का प्रमुख स्रोत हुआ करता था।
आज भी इस तालाब में सालों भर पानी रहता है। तालाब के बीचों बीच एक बड़ा सा टापू
है। तालाब के किनारे सूफी संतों की दरगाह है। भीलवाड़ा शहर आबादी में ज्यादा बड़ा
नहीं है। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर पैदल ही बाजार की तरफ चल पड़ा हूं। शहर में परंपरागत
राजस्थानी बाजार नजर आता है। मॉल की संस्कृति से दूर है अभी भीलवाड़ा।
- विद्युत
प्रकाश मौर्य
( BHILWARA, RAJSTHAN, GANDHI SAGAR, RAIL )
( BHILWARA, RAJSTHAN, GANDHI SAGAR, RAIL )
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंचम दा - राहुल देव बर्मन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार। ।
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