सुबह सुबह हम राजधानी थिंपू की सैर करने निकले हैं। सूरज की मीठी धूप सड़कों पर बिखर रही है। क्लाक टावर स्क्वायर से आधा किलोमीटर आगे चलकर हम लोग राजधानी के इमारतों के आसपास से गुजर रहे हैं। कई किलोमीटर तक सड़क पर यूं पैदल चलते हुए हम एक स्वच्छ सुंदर राजधानी और उसकी इमारतों के वास्तु का अवलोकन कर रहे हैं। किसी भी नए शहर में सुबह टहलना मेरा प्रिय शगल है, तो थिंपू में उसे कैसे छोड़ सकता था।
हमलोग रॉयल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी भूटान के हाईकोर्ट के पास से गुजर रहे हैं। सन 1955 में राजधानी बनाए जाने के बाद थिंपू में तमाम सरकारी भवनों का निर्माण हुआ है। आबादी की बात करें तो यहां कोई एक लाख 20 हजार लोग रहते हैं। यह भारत के किसी जिला मुख्यालय के शहर से भी कम है।
राजधानी वाले इलाके में वाहनों की आवाजाही भी काफी कम है। कहीं कहीं रंग बिरंगे फूल खिले हुए हैं। वांग चू नदी के किनारे जरूरत के हिसाब से नए भवनों का भी निर्माण कराया जा रहा है। वांग चू नदी के पश्चिमी किनारे पर राजधानी के तमाम भवन स्थित हैं। थिंपू शहर के उत्तरी क्षेत्र में नेशनल एसेंबली और राजा का निवास बना हुआ है।
इस इलाके में थिंपू जोंग भी स्थित है जो भूटान सरकार का राजकीय बौद्ध मठ है। इसका मूल नाम तासिखो जोंग है। यह मूल रूप से 1216 में बना था। पर दो बार नष्ट होने के बाद इसे 1962 में बनवाया गया। तब तीसरे राजा जिग्मे दोरजी वांगचुंक का शासन था। इस जोंग के अंदर शाम को 5 बजे के बाद ही प्रवेश किया जा सकता है।
आमतौर पर इस क्षेत्र में सैलानियों की आवाजाही की मनाही है। पर सुबह की सैर करते हुए हुए हम लोग तमाम मंत्रालयों के आसपास से गुजर रहे हैं।
इन दिनों थिंपू में तीन दिनों का वज्रयान कान्फ्रेंस चल रहा है। यह आयोजन भारत भूटान के कूटनीतिक रिश्तों के स्वर्ण जयंती के मौके पर हो रहा है। हालांकि हम इसमें शामिल होने नहीं आए हैं। कई किलोमीटर की सुबह की सैर करने के बाद अब वापसी। लौटते हुए वांग चू न दी के किनारे पहुंच गए। यहां बेंच पर बैठकर नदी की सुहानी धार को देखते रहना बड़ा सुखद लगता है।
पारो से लौटते हुए हमने भूटान शहर को रात में देखा। यह किसी भी पहाड़ों के शहर की तरह एक अलग नजारा पेश करता हुआ नजर आता है। हां दिवाली सा नजारा। रंग बिरंगा सतरंगा शहर थिंपू।
- विद्युत प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com ( BHUTAN, THIMPU, CAPITAL)
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