थिंपू के होटल भूटान में हमारा
कमरा तीसरी मंजिल पर है। कमरे से बाहर का सुंदर नजारा दिखाई देता है। मैं शाम को
शहर में टहलने निकल पड़ता हूं पर अनादि कमरे में ही रहना चाहते हैं। तो मैं पैदल
चलकर भूटान के वेजिटेबल मार्केट पहुंच गया हूं। ये बाजार वांगचू नदी के किनारे
स्टेडियम और ताज ताशी होटल के पास ही है। वेजिटेबल मार्केट का भवन दो मंजिला है।
विशाल बाजार में सब्जियों की दुकानों और मसालों और चावल दाल की दुकानें हैं।
बिक्रेताओं को स्थायी फड़ अलाट किए गए हैं। बाजार बड़ा साफ सुथरा है। पर बाजार में
सब्जियां महंगी हैं। भूटान में सब्जियां होती हैं। पर आलू प्याज और काफी चीजें
भारत से भी आती हैं। बेबी कैरेट (गाजर) 60 रुपये किलो है। मैं आधा किलो खरीद लेता
हूं। नास्ते के लिए।
सब्जी बाजार से निकल कर मैं अब सड़क पर आ गया हूं। वांगचू नदी पर पुराना लकड़ी का बना पुल दिखाई देता है। पैदल यात्रियों के लिए बने इस पुल के दोनों तरफ बड़े बड़े कक्ष बने हुए हैं। यहां आप बारिश में खड़े भी हो सकते हैं। पुल पर रात में रोशनी का इंतजाम भी है। मुझे बताया गया कि इस पुल के निर्माण में कहीं लोहे की कांटी का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
भूटान में इस तरह के कई लकड़ी के पुल बनाए हैं। पारो और पुनाखा में भी ऐसे पुल हैं। थिंपू के बाजार का मुआयना करता हुआ अपने होटल की ओर वापस लौट रहा हूं। सनडे मार्केट में एक मिनी मॉल जैसा स्टोर मिला। इसके प्रोपराइटर जिग्मे मिले जो दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कालेज में तीन साल पढाई कर चुके हैं। वे मुझसे मिलकर बड़े खुश होते हैं। उनकी माता जी भी स्टोर में हैं। इस स्टोर से मैं चावल की लाई ( मुरुंडा) कुछ जूस की बोतलें खरीद लेता हूं। ये चावल के मीठे लड्डू बहुत काम आते हैं। ये इमरजेंसी फूड है तो सुबह का अच्छा नास्ता भी है। जहां कुछ पसंद का न मिले वहां खा लिजिए।
अचानक सब्जी बाजार में एक
ग्राहक से टकराता हूं। चेहरे से बिहारी लग रहे थे। बातचीत शुरू हुई। चंपारण के रहने
वाले हैं। थिंपू के भारतीय दूतावास में हाल में पोस्टिंग हुई है। उन्होंने दो झोले
सब्जी के खरीदें हैं। बता रहे हैं कि यहां सब्जियां बहुत महंगी हैं। ये देखिए इतनी
सी सब्जी खरीदी है। ये डेढ़ हजार की हो गई है।
वे कहते हैं, यहां सब्जियां खाने में बिहार की
तरह बहार नहीं है। सब्जी बाजार में ज्यादातर दुकानदार महिलाएं हैं। कम ही दुकान
में तराजू नजर आ रहा है। आधा किलो और एक किलो के पैकेट बनाकर रखे हैं। लिजिए और
जाइए। कोई मोल भाव का माहौल नहीं है। बिहार वाले भाई साहब मुझे पूरे सब्जी बाजार
का मुआयना करने की सलाह देते हैं।
सब्जी बाजार से निकल कर मैं अब सड़क पर आ गया हूं। वांगचू नदी पर पुराना लकड़ी का बना पुल दिखाई देता है। पैदल यात्रियों के लिए बने इस पुल के दोनों तरफ बड़े बड़े कक्ष बने हुए हैं। यहां आप बारिश में खड़े भी हो सकते हैं। पुल पर रात में रोशनी का इंतजाम भी है। मुझे बताया गया कि इस पुल के निर्माण में कहीं लोहे की कांटी का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
भूटान में इस तरह के कई लकड़ी के पुल बनाए हैं। पारो और पुनाखा में भी ऐसे पुल हैं। थिंपू के बाजार का मुआयना करता हुआ अपने होटल की ओर वापस लौट रहा हूं। सनडे मार्केट में एक मिनी मॉल जैसा स्टोर मिला। इसके प्रोपराइटर जिग्मे मिले जो दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कालेज में तीन साल पढाई कर चुके हैं। वे मुझसे मिलकर बड़े खुश होते हैं। उनकी माता जी भी स्टोर में हैं। इस स्टोर से मैं चावल की लाई ( मुरुंडा) कुछ जूस की बोतलें खरीद लेता हूं। ये चावल के मीठे लड्डू बहुत काम आते हैं। ये इमरजेंसी फूड है तो सुबह का अच्छा नास्ता भी है। जहां कुछ पसंद का न मिले वहां खा लिजिए।
होटल वापस आने पर रात को मैं और
अनादि एक बार फिर बाहर निकले खाने के लिए। खाना तो फिर उसी होटल गासिल में खाएंगे।
तो हम पहुंच क्लॉक टावर स्क्वाएयर। होटल गासिल की थाली पसंद आ गई है अनादि को। आज
पंजाबी थाली आर्डर किया छककर खाया। इसके बाद सोनम दोरजी के संग अपने पारो के
अनुभवों को साझा किया। उनकी सलाह पर ही हमलोग पारो में एक दिन जाकर रुके थे।
थिंपू के मुख्य बाजार की दुकानें रात के
9.30 बजे के बाद बंद होने लगती हैं। खाने का बाद टहलते हुए हमलोग अपने होटल लौट
आते हैं।
थिंपू
में क्या देखें –
छोरटेन
मेमोरियल – बौद्ध मठ और संग्रहालय।
क्लाक
टावर स्क्वायर –
कोरोनेशनल
पार्क बुद्ध मूर्ति – (वॉकिंग बुद्ध)
वेजिटेबल
मार्केट, सनडे मार्केट
लकड़ी
पुल (वांगचू नदी पर )
ताशी
जोंग और राजा का महल
क्राफ्ट
बाजार –
बुद्ध
प्वाइंट ( शहर का सबसे ऊंचा प्वाइंट जहां
बुद्ध मूर्ति स्थापित है )
-
विद्युत
प्रकाश मौर्य
( THIMPU, CAPITAL OF BHUTAN )
( THIMPU, CAPITAL OF BHUTAN )
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