थिंपू से पुनाखा आते समय पुनाखा
से पहले लोबासा में सड़क से लगभग एक किलोमीटर दूर पहाड़ी पर यह लहखांग बौद्ध मंदिर एवं मठ स्थित है। पर हम
यहां जा रहे हैं पुनाखा से वापसी के समय। शाम के 4 बज गए हैं। पर आज पुनाखा के
दर्शनीय स्थलों को देखने की ललक में हम दोपहर का लंच भूल चुके हैं। लोबासा में एक
होटल में रुकते हैं हमलोग पर वे बताते हैं कि खाने में कुछ नहीं है। अब हमारे
ड्राईवर साहब गाड़ी को बायीं तरह मोड देते हैं। खेतों से होकर घाटियों के बीच सड़क
चली जा रही है।
चिमी लाखांग के दर्शन से लौटने
के बाद शाम होने लगी है। आगे चलकर लोबासा बाजार में हमलोग एक रेस्टोरेंट में रुकते
हैं। चूंकि दोपहर का लंच नहीं किया है तो थोड़ी भूख लग रही है। वहां पर कुछ वेज मोमोज और कॉफी का आर्डर करके बैठ जाते हैं। मोमोज थोड़े महंगे जरूर हैं पर उनका स्वाद काफी अच्छा है। कॉफी पीकर भी आनंद आ गया। हमने अपने टैक्सी ड्राईवर साहब को भी अपने साथ बिठाकर कॉफी पिलाई। थिंपू वापसी से पहले परमिट चेकपोस्ट पर हमारा पुनाखा वाला परमिट जमा करा लिया जाता है।
लोबासा गांव में जो भी घर बने
हैं उनकी दीवारों में आकर्षक पेंटिंग बनी हैं। पर हम इन पेंटिंग में बड़े बड़े
पुरुष जननांग देखते हैं। आखिर ऐसा क्यों। भूटान के इस क्षेत्र में पुरुष जननांग को
सृजन का प्रतीक माना जाता है। इसलिए उसकी पेंटिंग बनी जाती है। इसमें यहां शरमाने जैसी कोई बात नहीं है।
चिमी लाखांग से पहले गांव में दोनों तरफ कुछ आर्ट गैलरी
हैं। यहां पर थंगक पेंटिंग खरीदी जा सकती है। इसके साथ ही यहां पर लकड़ी के बने
हुए मानव लिंग बिक रहे हैं। ये मानव लिंग छोटे-बड़े अलग-अलग आकार के हैं। कुछ मानव
लिंग चाबी के गुच्छे के साथ लगे हैं। फुटपाथ पर सामान बेच रही लड़कियां रोककर हमें कुछ
खरीदने के लिए कहती हैं। पर हम नहीं खरीद पाते। भले यहां यह सब कुछ समान्य हो पर हम अपने घर में इसे नहीं रख सकते। न ही किसी को उपहार में दे सकते हैं। इसी बीच हल्की बारिश शुरू हो गई है। तेज
हवाएं भी चल रही हैं। पर इस सुहाने मौसम में हम चल पड़े हैं चिमी लाखांग की ओर।
पार्किंग से आधा किलोमीटर पैदल चलकर मंदिर तक जाना पड़ता है।
चिमी लाखांग तक मुख्य सड़क से
यहां तक आने के लिए पर्यटकों को पगडंडीनुमा रास्ते से हो कर गुजरना पड़ता है जो
धान के खेतों के बीच से हो कर जाता है। ये रास्ता बड़ा ही मनोरम है। हल्की बारिश
ने सफर का मजा और बढ़ा दिया है। यह बौद्ध मंदिर 15वीं सदी की बौद्ध भिक्षु लामा द्रुकपा कुअनले को समर्पित है। मंदिर में
प्रार्थना चक्र घूमाने के बाद हमलोग आगे बढ़ते हैं।
मंदिर परिसर में पूजा हो रही
है। हम भी जाकर प्रार्थना में बैठ जाते हैं। पांच मिनट बाद हम उठने वाले हैं। पर
बौद्ध भिक्षु हमें इशारों में उठने के लिए मना करते हैं। तो हम बैठे रह जाते हैं। और पांच मिनट बाद भिक्षु
एक बाल लामा की ओर इशारा करते हैं। वह हमें आशीर्वाद देने आता है। विशाल हथियार का
स्पर्श और विशाल आकार के मानव लिंग का स्पर्श। दरअसल चिमी लाखांग की ये परंपरा है।
यहां के आशीर्वाद से लोग मानते हैं कि पौरूष कायम रहता है।
चिमी लाखांग बौद्ध मंदिर का
निर्माण 1499 में हुआ था। द्रुपका कुअनले तिब्बती परंपरा के बौद्ध संत थे। वे
पश्चिमी तिब्बत से इधर आए थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे शराब और महिलाओं की
निकटता पसंद करते थे। संत कुअनले ने कविताएं भी लिखी थीं। वे अपने को मुक्त
विचारों का योगी कहते थे। उन्होंने माना कि उन्होंने सैकड़ो महिलाओं से संबंध बनाए
थे। उनका मानना था कि इस तरह से वे उनकी मदद करते हैं। और यह सब आधात्याम की ओर
प्रवृत होने का मार्ग है। वे कहते हैं मैं
शराब, औरत और गीतों के साथ आनंद मनाता हूं। कुअनले कहते हैं – एक युवा
महिला प्रेम में आनंद पाती है। एक युवा पुरुष सेक्स में आनंद पाता है। एक बुजुर्ग
आदमी अपनी स्मृतियों से आनंदित होता है।

- --- विद्युत
प्रकाश मौर्य Email- vidyutp@gmail.com
(CHIMI LHAKHANG, LOBASA, PUNAKHA , LAMA DRUKPA KUNLEY )
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - राजा राममोहन राय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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