पुनाखा में पो चू और मो चू नदियों का संगम |
सस्पेंसन ब्रिज के बिल्कुल पास
तक टैक्सियां नहीं जाती। पुल से एक
फर्लांग पहले पार्किंग में टैक्सी रुक जाती है। हमलोग पैदल चलकर पुल तक जाते हैं।
झूलते पुल पर इस पार से उस पार जाना बड़ा रोमांचक है। पुल के उस पार पर्वत की
चोटियां दिखाई देती हैं। यह पुल पो चू नदी पर है। हमारे अलावे भी कई लोग इस झूलते पुल का आनंद लेने आए हैं। दोपहर में पिकनिक सा वातावरण है।
मो चू और पो चू नदियां आगे बन जाती हैं संकोश -
पुनाखा जोंग के पास ही पोचू और मोचू नदियों का संगम है। दरअसल भूटान की भाषा जोंखा
में चू का मतलब नदी या पानी होता है। मो चू नदी भूटान और तिब्बत की सीमा पर गासा
से निकलती है। भूटान में इसे मदर रिवर यानी स्त्रीलिंग मानते हैं। जबकि पो चू को
पुरुष नदी माना जाता है। पुनाखा तक आने के बाद मो चू और पो चू नदियों का संगम हो
जाता है। आगे इसमें दांग चू नदी का भी मिलन हो जाता है। इसके बाद इसका नाम पूना
त्सांग चू हो जाता है। पूना त्सांग चू नदी कालिखोला में भारत के असम में प्रवेश कर
जाती है। भारत में इसका नाम संकोश हो जाता है। संकोश नदी आगे ब्रह्मपुत्र में मिल
जाती है। पुनाखा आने वाले सैलानी पो चू और मो चू नदियों में रिवर राफ्टिंग का खूब
मजा लेते हैं।
आमो चू बन जाती है तोरसा - भूटान की एक ओर प्रमुख नदी आमो चू है जो भारत
में आकर तोरसा नाम से जानी जाती है। फुंटशोलिंग, जयगांव जैसे शहर तोरसा नदी के
किनारे हैं। आमो चू नदी तिब्बत के चुंबी घाटी से निकलती है। यह 113 किलोमीटर चीन
में, 145 किलोमीटर भूटान में बहने के बाद भारत में प्रवेश करती है। बाद तोरसा नदी
बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है जहां यह कालजानी नाम से जानी जाती है। वहीं इसका
मिलन ब्रह्मपुत्र में हो जाता है। फुंटशोलिंग में आमो चू नदी में क्रोकोडाईल
ब्रिडिंग सेंटर का निर्माण किया गया है।
थिंपू शहर और वांग चू (रैदक और दूधकुमार ) नदी
– भूटान की राजधानी थिंपू वांग चू नदी के
किनारे बसा है। हिमालय से निकलने वाले वांग चू नदी राजधानी थिंपू होती हुई आगे
बढ़ती है। चूजोंग में इसमें पारो की ओर से आने वाली पारो चू नदी मिलती है। संगम के
बाद यह नदी थिंपू –फुंटशोलिंग राजमार्ग के साथ साथ आगे चलती है। भूटान में चुखा
में इस पर 336 मेगावाट का हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट का निर्माण किया गया है। भारत
में जलपाईगुड़ी जिले में प्रवेश के बाद इसका नाम रैदक हो जाता है। भारत में प्रवेश
के समय इसकी चौड़ाई महज 90 मीटर है। बांग्लादेश में प्रवेश करने पर यह दूध कुमार
के नाम से जानी जाती है।
वांग चू (रैदक) का मिलन भी आगे ब्रह्मपुत्र में हो जाता
है। भूटान में इन सभी नदियों का जल
जहां भी नजर डालते हैं सीसे की तरह साफ नजर आता है। पर थिंपू शहर में बस स्टैंड के
पास शहर का कचरा इस नदी में मिलता है तो पानी मटमैले पीले रंग का हो जाता है। पर
भूटान के ज्यादातर इलाकों में नदियों में प्रदूषण का असर नगण्य है। इसलिए पानी की
स्वच्छता उत्तम श्रेणी की है।
सचमुच हम कितने गरीब हैं...
पारो जाते हुए हमारे टैक्सी ड्राईवर मुझसे सवाल पूछते हैं। सुना है तुम्हारे भारत
में पानी जमीन के नीचे हैंडपंप से निकालते हैं। मैं कहता हूं, हां पर इसमें क्या
अचरज की बात है। वे कहते हैं- हमारे यहां तो कहीं भी ऐसे हैंड पंप नहीं है। सभी
जगह पहाड़ों से बहता हुआ स्प्रिंग वाटर (झरने का पानी) हमें सुलभ है। उनकी बात
सुनकर मैं चौंक जाता हूं। तब ये एहसास होता है कि पानी के मोर्चे पर हम कितने गरीब
हैं। हां वाकई गरीब ही तो हैं। 200 फीट की बोरिंग कराने के बाद भी तो वैसा पानी नहीं
आता जो पीने लायक भी हो।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
पहाड़ों में बहने वाली नदियों का जल शहरों में कहाँ नसीब होता है। भूटान के नदियों को देखकर मुझे मेरा पहाड़ी गांव याद आने लगा और उसकी तलहटी में बहने वाली नदी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रोचक प्रस्तुति
बहुत सुंदर कहा, धन्यवाद।
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन।
ReplyDeleteरश्मि जी धन्यवाद.
Deleteवाह....
ReplyDeleteवेहतरीन जानकारी
सादर
धन्यवाद
Deleteवाह ! सुंदर यात्रा विवरण..अगले हफ्ते हम भी भूटान जा रहे हैं, उत्सुकता और बढ़ गयी है..
ReplyDeleteधन्यवाद
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