दोचुला पास से चलने के
बाद पुनाखा से पहले गुरुथांग नामक कस्बा आता है। यह मोचू नदी के किनारे है। भले
पुनाखा भूटान की प्राचीन राजधानी थी, पर यहां शहर बाजार के नाम पर कुछ खास दिखाई नहीं
देता। गुरुथांग बाजार से 5 किलोमीटर आगे जाने पर पोचू और मोचू नदियों के संगम पर
पुनाखा जोंग दिखाई देता है। यह भूटान का शाही बौद्ध मठ है। जोंग नदी के उस पार है।
जाने के लिए नदी पर पुराना लकड़ी का पुल बना हुआ है। यह पुल बड़ा ही सुंदर है। पुल से पानी में मछलियों को देखा जा सकता है।
जोंग में प्रवेश के लिए
भारतीय नागरिकों को 300 रुपये का टिकट लेना अनिवार्य है। अनादि को स्टूडेंट होने
के नाम पर 150 रुपये का डिस्काउंट वाला टिकट मिल गया। छात्र डिस्काउंट के लिए आईडी
कार्ड होना जरूरी है। अनादि स्कूल का आईकार्ड लेकर नहीं गए थे। हमने कहा, आईकार्ड होटल के कमरे में रह गया है, टिकट काउंटर वाले मान गए।
टिकट लेकर लकड़ी के सुंदर
पुल को पार कर हम पुनाखा जोंग के परिसर में पहुंच गए हैं। कोई 20 सीढ़ियां चढ़ने
के बाद मठ का विशाल प्रवेश द्वार है। दोनों तरफ दो विशाल धर्म चक्र और दीवारों पर
बुद्ध के जीवन कथा से जुडी विशाल पेंटिंग दिखाई दे रही है।
इसके बाद हम विशाल आंगन
में पहुंच गए हैं। टिकट चेक करने वाले हमें बताते हैं कि इस जोंग के आंतरिक हिस्से
में तीन भाग हैं। इसमें आप पूजा स्थल और बौद्ध भिक्षु निवास क्षेत्र में नहीं जा
सकते। मुख्य मंदिर और उसके आंगन क्षेत्र में घूम सकते हैं। तो उनके निर्देशों के अनुसार हमने घूमना शुरू कर दिया है।
भूटान का तीसरा सबसे पुराना मठ - पुनाखा जोंग का निर्माण
1637-38 में प्रथम रिनपोछे नागवांग नामग्याल द्वारा करवाया गया। यह भूटान का तीसरा
सबसे पुराना और दूसरा सबसे बड़ा जोंग माना जाता है।
वास्तव में पुनाखा जोंग 1955 तक भूटान
के राजघराने का प्रशासनिक केंद्र हुआ करता था। इसके बगल में ही भूटान का
पुराना राजमहल स्थित है। 1955 में राजधानी थिंपू में जाने के बाद भी इस जोंग का
महत्व बना हुआ है।
मुख्य मंदिर के अंदर गौतम
बुद्ध के अलावा आचार्य पद्म संभव और नागवांग नामग्याल की प्रतिमाएं हैं। यहां बड़ी संख्या में
थंगक पेंटिंग भी हैं। यहां पर आंतरिक हिस्से में फोटोग्राफी निषेध है। पर मंदिर की सजावट काफी भव्य है। नागवांग नामाग्याल को बोरार्ड
लामा के रूप में भी जाना जाता है। वह एक तिब्बती बौद्ध लामा थे। उन्हें एक राष्ट्र
राज्य के रूप में भूटान के एकीकरण के लिए भी जाना जाता है। साल 1651 में पुनाखा में
ही उनकी मृत्यु हो गई। इस जोंग में उनकी कुछ स्मृतियां भी संरक्षित हैं।
हमने जिस
समय हमलोग पुनाखा जोंग में पहुंचे है, भूटान के राजा की दादी यानी तीसरे राजा जिग्मे दोरजी वांगचुक की
पत्नी केसान चोडेन भी विशेष पूजा के लिए आई हैं। हमें उन्हें उनके दर्शन का सौभाग्य मिला। उनकी
उम्र 88 साल के आसपास है। उनका जन्म 21 मई 1930 को हुआ था। संभवतः दुनिया में किसी राजा की वह एकमात्र जीवित दादीमां हैं जो अभी सक्रिय हैं। पूरा भूटान उन्हें शाही दादी मां के नाम से जानता है। उनकी सुरक्षा में तैनात भूटान पुलिस के युवा वरिष्ठ
अधिकारी से हमारी बात हुई। वे भारत के हैदराबाद में सरदार बल्लभभाई पटेल पुलिस
अकादमी में प्रशिक्षण ले चुके हैं। वहीं जहां भारत के सभी आईपीएस भी एक साल का
प्रशिक्षण पाते हैं।
राजा का विवाह होता है इस जोंग में - भूटान के हर राजा की शादी
पुनाखा के जोंग में होती है। साल 2013 में भी जिग्मे खेशर की शाही शादी के लिए
राजधानी थिंपू से 71 किलोमीटर
दूर पुनाखा में 17वीं
शताब्दी के एक किले को पहले दुल्हन की तरह सजाया गया। शाही
शादी में करीब 1500 लोग इक्ट्ठा हुए थे। शाही शादी में 100 बौद्ध भिक्षुओं की विशेष प्रार्थना के साथ आरंभ हुई।
यह शादी सुबह चार बजे से
शुरू होकर करीब दो घटे तक चली। शादी के बाद नरेश और महारानी ने किले के बाहर एक
मैदान में जमा हजारों लोगों के साथ मिलकर नृत्य किया। शादी के जश्न में आए लोगों
को भूटान की 20 घाटियों
से आए 60 बेहतरीन
रसोइयों के हाथों का बना हुआ पारंपरिक भूटानी भोजन परोसा गया। भारत से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी इस शादी में आमंत्रित थे।
--- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( PUNAKHA DZONG, BHUTAN )
REF. - https://yeewongmagazine.com/the-classic-buddhist-queen/
भूटान का शाही बौद्ध मठ – पुनाखा जोंग के बारे में बहुत अच्छी रोचक जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद आपका!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - मृणाल सेन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी.
ReplyDeleteधन्यवाद
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