हमलोग
मोटर बाइक से कानपुर की सड़कों को नाप रहे हैं। कानपुर का प्रसिद्ध ग्रीन पार्क
मैदान दिखाई देता है जहां क्रिकेट के मैच हुआ करते हैं। इसके पास ही डीएवी कालेज
की बिल्डिंग नजर आती है। इस डीएवी कालेज से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
ने पढ़ाई की थी। हम बाहर से जेके मंदिर के देखते हैं। यह जेके समूह द्वारा बनवाया
गया मंदिर है। यह कानपुर शहर का प्रसिद्ध मंदिर है। भौगोलिक तौर पर शहर के बीचों बीच स्थित है।
इससे
पहले कानपुर की गलियो में घूमते हुए सिरकी महाल चौराहा से होकर जाना हुआ। वहां
चंद्रशेखर आजाद चौराहा है। वहां आजाद की प्रतिमा है। इसी रोड पर सालासर बालाजी का मंदिर
है। पास ही नील वाली गली है। घूमते घुमते रमन हमे कुरसावां की गलियों में ले जाते
हैं। वे बताते हैं कि कभी प्रसिद्ध कवि गोपाल दास नीरज यहीं रहा करते थे। हम कानपुर में शिवाला मंदिर, रावण मंदिर और
कैलाश मंदिर देखते हैं। एक दक्षिण भारतीय मंदिर भी नजर आता है कानपुर में। हमलोग
उरसला अस्पताल होते हुए कानपुर कोतवाली पहुंच हैं। कानपुर कोतवाली की विशाल इमारत
पर कानपुर शहर की स्पेलिंग पुराने तरीके से लिखी गई है। वह स्पेलिंग जो कभी अंगरेज
लिखा करते थे। जब हम कानपुर कोतवाली की तस्वीरें खींच रहे थे तो एक पुलिस वाले ने
रुकने का इशारा किया। उसने पहले अपनी हैट पहनी, फिर कहा अब खींचो तस्वीर।
पुस्तक भवन और सुलभ त्रिपाठी – रमन शुक्ला के घर
विवाह समारोह में हमारी मुलाकात सुलभ त्रिपाठी से हुई। वे बड़े मजेदार व्यक्ति
हैं। कानपुर में हेलेट अस्पताल के सामने उनकी पुस्तकों की विशाल दुकान है। यह
कानपुर का पहला बुक मॉल है। यहां आप अपनी पसंद की किताबें तलाश सकते हैं। छांट
सकते हैं। वहां कोर्स की किताबों के अलावा साहित्यिक पुस्तकों का बड़ा संग्रह है।
मेरी इच्छा थी कि मैं कानपुर छोड़ने से पहले पुस्तक भवन जरूर जाऊं। यह किताबों की
दुनिया कानपुर के हेलेट अस्पताल के बिल्कुल पास है।
रमादेवी
चौराहा से वापसी – कानपुर जाना हुआ था ट्रेन से पर वापसी हुई बस से। रात्रि सेवा
की यह बस हमे रमादेवी चौराहा से मिलने वाली थी। वास्तव में यह कानपुर का बाईपास
इलाका है।
जो बसें लखनऊ से आती हैं वह वहीं से मिलती हैं। रमन हमें रमादेवी चौराहा पर छोड़ गए। यहां आरएस यादव ट्रैवल्स का एक दफ्तर है। दफ्तर मे मौजूद कर्मचारी ने मुझे बैठने का कहा। बस का समय होने पर उसने मुझे बाइक पर बिठाया और चौराहे पर ले गया। थोड़ी देर में बस आई। मैं अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। बस में एक पानी की बोतल और कंबल भी मिला। थोड़ी देर बाद नींद आ गई। नींद खुली तो बस कानपुर देहात इलाके में एक हाईवे के ढाबे पर रुकी थी। मैं बाहर उतरकर ढाबे का मुआयना करता हूं। हालांकि कुछ खाने की इच्छा नहीं है। पर ढाबे का खाना अच्छा है। थोड़ी देर में बस फिर चल पड़ी। मुझे दुबारा नींद आ गई। जब नींद खुली तो सुबह हो चुकी है। बस नोएडा के करीब पहुंच चुकी है। हालांकि वादा अक्षरधाम मंदिर छोड़ने का था पर बस ने हमें बोटानिकल गार्डन मेट्रो स्टेशन के पास ही उतार दिया। सामने से घर जाने के लिए मेट्रो ट्रेन मिल गई।
जो बसें लखनऊ से आती हैं वह वहीं से मिलती हैं। रमन हमें रमादेवी चौराहा पर छोड़ गए। यहां आरएस यादव ट्रैवल्स का एक दफ्तर है। दफ्तर मे मौजूद कर्मचारी ने मुझे बैठने का कहा। बस का समय होने पर उसने मुझे बाइक पर बिठाया और चौराहे पर ले गया। थोड़ी देर में बस आई। मैं अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। बस में एक पानी की बोतल और कंबल भी मिला। थोड़ी देर बाद नींद आ गई। नींद खुली तो बस कानपुर देहात इलाके में एक हाईवे के ढाबे पर रुकी थी। मैं बाहर उतरकर ढाबे का मुआयना करता हूं। हालांकि कुछ खाने की इच्छा नहीं है। पर ढाबे का खाना अच्छा है। थोड़ी देर में बस फिर चल पड़ी। मुझे दुबारा नींद आ गई। जब नींद खुली तो सुबह हो चुकी है। बस नोएडा के करीब पहुंच चुकी है। हालांकि वादा अक्षरधाम मंदिर छोड़ने का था पर बस ने हमें बोटानिकल गार्डन मेट्रो स्टेशन के पास ही उतार दिया। सामने से घर जाने के लिए मेट्रो ट्रेन मिल गई।
( आगे पढ़िए - सिक्किम और भूटान की यात्राएं )
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