कानपुर
के भीड़भाड वाले इलाकों से थोड़ी राहत पानी है तो पहुंच जाइए नानाराव पार्क।
कानपुर का नानाराव पार्क इतिहास की कई स्मृतियां संजोए है। हालांकि विशाल पार्क के
बीच वह बूढ़ा बरगद अब नहीं रहा।
रमन
शुक्ला उस बूढ़े बरगद को ढूंढ रहे हैं। पर अब वह पेड़ नहीं है जो सैकड़ो शहीदों की
देशभक्ति का गवाह था। पर उसकी याद में कानपुर कांग्रेस कमेटी द्वारा एक संगमरमर की
पट्टिका जरूर लगाई गई है। साथ ही यहां वृक्षारोपण किया गया है। आसपास संगमरमर
पट्टिका लगाकर 1857 की क्रांति की कुछ और कहानियां याद करने की कोशिश की गई है।
वर्तमान में इस पार्क में 1857 के
स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष के महान विभूतियां जैसे तात्या टोपे, अजीजा बाई और झांसी की रानी की मूर्तियां लगाई गई हैं। मुझे चलते हुए यहां
झांसी की रानी की सेनापति झलकारी बाई की प्रतिमा भी नजर आती है।
जाकर रण में ललकारी थी, वह
झांसी की झलकारी थी...
गोरों को लड़ना सीखा गई... रानी
बन जौहर दिखा गई।
है इतिहास में झलक रही, वह भारत
की सन्नारी थी।
कुछ क्रांतिकारियों का परिचय भी
यहां विस्तार से लिखा गया है जिससे की नई पीढ़ी के लोगों को प्रेरणा मिलती रहे।
हालांकि नई पीढ़ी के लोग पार्क में रोज आते जरूर हैं पर वे क्रिकेट खेलने आते हैं।
मुझे दोपहर में भी बच्चे स्कूल से बंक करके क्रिकेट खेलते नजर आते हैं। मैं कुछ
प्रतिमाओं की तस्वीरें खिंचता हूं तो कुछ बच्चे पूछते हैं आपने अंकल मेरी तस्वीर
तो नहीं खींच ली। मैं कहता हूं कि नहीं। वे आश्वस्त हो जाते हैं। पार्क में
क्रांति मैनावती का प्रतिमा लगी है। वे नानाराव पेशवा की पुत्री थीं।
शालिग्राम शुक्ल की शहादत - आगे
अमर शहीद शालिग्राम शुक्ल की प्रतिमा लगी
है। युवा शालिग्राम शुक्ल डीएवी कालेज कानपुर के छात्र थे। उनकी शहादत की कहानी को
जगदीश प्रसाद गुप्त जगेश ( कलम आज उनकी जय बोल) के शब्दों में लिखा गया है। वीर
शहीद शालिग्राम शुक्ल कानपुर के रहने वाले थे।
चंद्रशेखर आजाद के गुप्त संगठन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के कानपुर केन्द्र के
चीफ शालिग्राम शुक्ल थे। शालिग्राम
शुक्ल ने चंद्रशेखर आजाद से पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण
लिया था। 1 दिसंबर 1930 को वे चंद्रशेखर आजाद को बचाने की कोशिश में शहीद हो गए।
आजाद कानपुर प्रवास में अक्सर शालिग्राम शुक्ल के घर पर ही रुकते थे।
नाना
राव पार्क को कंपनी बाग भी कहा जाता है। नाना राव पार्क फूल
बाग से पश्चिम में स्थित है। 1857 में इस पार्क में एक बीबी घर था। आजादी के बाद पार्क का नाम बदलकर नाना साहेब के नाम पर नाना
राव पार्क रख दिया गया।
ब्रिटिश शासन काल में इसे
मेमोरियल वेल कहा जाता था, क्योंकि 1857 के स्वतंत्रता युद्ध के समय नाना साहिब के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता
सैनानियों ने लगभग 200 ब्रिटिश महिलाओं और बच्चों को इस कुएं
में डाल दिया था। वह इमारत जिसमें नरसंहार हुआ उसे बीबीघर कहा जाता था। इसके पास
स्थित कुएं में पीड़ितों को डाल दिया गया। इसलिए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के
संदर्भ में कानपुर के इस पार्क का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है।
नानाराव पार्क में पिछले कुछ
सालो से अब पटाखों का बाजार लगने लगा था। क्योंकि यही एक खुली जगह थी शहर के बीचों
बीच। पर साल 2017 में हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि नानाराव पार्क में लगने वाली पटाखों की दुकानों को शिफ्ट किया जाए।
कौन कहता है आंसुओं में वजन
नहीं होता, एक भी छलक जाता है तो मन हल्का हो जाता है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( KANPUR, NANA RAO PARK, JHALKARI BAI, SHALIGRAM SHUKLA )
( KANPUR, NANA RAO PARK, JHALKARI BAI, SHALIGRAM SHUKLA )
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