यूं तो मैं गाजियाबाद में रहता हूं पर गाजियाबाद से रेलवे स्टेशन
से ट्रेन कम ही पकड़ता हूं। मेरे घर से पुरानी दिल्ली स्टेशन 13 किलोमीटर है तो
गाजियाबाद भी 13 किलोमीटर। पर जब देखा कि कानपुर जाने वाली शताब्दी गाजियाबाद रुकती
है तो यहीं से बैठना तय किया। सुबह सुबह ओला कैब ड्राईवर ने गाजियाबाद जाने से मना
कर दिया। खैर आटो रिक्शा मिल गया। गाजियाबाद भले दिल्ली एनएसआर के रेलवे स्टेशन
हो, जगह भी काफी है। पर ये बडा ही अव्यवस्थित गंदा स्टेशन है। पर स्टेशन के फुटओवर
ब्रिज पर कुछ सुंदर म्युरल्स दिखाई देते हैं।
अगले दिन हमलोग निकल पड़े पुराने कानपुर की गलियों में। कानपुर को
कभी यूपी का मैनेचेस्टर कहा जाता था। क्योंकि यहां कई कपड़ा मिलें थीं। अब यह सब
इतिहास बन चुका है। पर कानपुर उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा शहर तो है।
तीन नंबर प्लेटफार्म पर इंतजार। पहले काठगोदाम शताब्दी आई फिर
कानपुर शताब्दी। ट्रेन 20 मिनट लेट है। लखनऊ जाने वाली शताब्दी के कोच बदरंग हो
चले हैं। फटे हुए सीट की पेबंद लगाकर सिलाई की गई है। परोसा गया नास्ता संतोषजनक
है। कानपुर तक ट्रेन कई स्टेशनों पर रुकती गई। अलगीढ़, टुंडला, इटावा के बाद
कानपुर। कानपुर रेलवे स्टेशन पर अंकुर त्रिपाठी मिले। उनके साथ मैं और हमारे साथी
रंजन कुमार सिंह सीधे आयोजन स्थल की ओर चले। यह कानपुर का साकेत नगर इलाका है। हम
किशोरी वाटिका में हैं। हमारे एक सहकर्मी रमन शुक्ला का तिलकोत्सव है। दिन में भोज
रात को तिलक के बाद भोज। इस दौरान कई नए लोगों से मुलाकात। पर पहले से तय था कि
तिलक के अगले दिन रमन मुझे कानपुर की सैर कराएंगे।

तो हमलोगों की शुरुआत सबसे पहले मट्ठा पीने से होती है। मिट्टी के
करूआ में मट्ठा। मुझे कभी वरिष्ठ पत्रकार अतुल प्रकाश निगम कानपुर के दूध स्टाल के
बारे में बताया करते थे। बड़े कड़ाह में दूध खौलता रहता है और उसमें छाली डालकर
दूध पीने का अपना मजा है। तो सुबह में मट्ठा और रात में गर्म दूध। ये कानपुर है।
फिलहाल हमलोग भूलोक के अमृत मट्ठा वाले स्टाल पर हैं। नाम पर गौर फरमाइए। वाकई
मट्ठा भूलोक का अमृत ही तो है। कई और लोग सुबह सुबह मट्ठा पी रहे हैं। हमलोग अब
आगे बढ़ते हैं।
रमन हमें डिप्टी पड़ाव चौराहा दिखाते हैं। यहां आज हिंदी दैनिक का
पुराना दफ्तर दिखाई देता है। इसके बाद हमलोग लाटूश रोड की ओर हैं। यहां मशीनरी का
बाजार है। मूलगंज चौराहा, कानपुर शहर का प्रमुख चौराहा है। यहां से हमलोग मेस्टन
रोड की ओर चल पड़े। चौक इलाके में कोतवालेश्वर मंदिर के दर्शन किए।
इसके आगे चावल मंडी चौराहा आया। हमलोग पहुंच गए हैं खस्तेश्वर महादेव। महादेव के मंदिर के बगल में खस्ता कचौरियों की प्रसिद्ध दुकान है। खस्ता खाएं और महादेव के दर्शन करें। कानपुर में पुराना चलन रहा है। मिठाई नमकीन की दुकान को प्रसिद्ध बनाना है तो बगल में एक छोटा सा मंदिर बना दो। लोग आकर पूजा करेंगे और खस्ता कचौरी भी खाएंगे। भगवान जी कारोबार पर कृपा बरसा रहे हैं। पर खस्ता में वाकई स्वाद है। पर अभी तो कई और स्वाद लेना है।
इसके आगे चावल मंडी चौराहा आया। हमलोग पहुंच गए हैं खस्तेश्वर महादेव। महादेव के मंदिर के बगल में खस्ता कचौरियों की प्रसिद्ध दुकान है। खस्ता खाएं और महादेव के दर्शन करें। कानपुर में पुराना चलन रहा है। मिठाई नमकीन की दुकान को प्रसिद्ध बनाना है तो बगल में एक छोटा सा मंदिर बना दो। लोग आकर पूजा करेंगे और खस्ता कचौरी भी खाएंगे। भगवान जी कारोबार पर कृपा बरसा रहे हैं। पर खस्ता में वाकई स्वाद है। पर अभी तो कई और स्वाद लेना है।
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विद्युत प्रकाश
मौर्य Email: vidyutp@gmailgmail.com ( KANPUR , MATTHA , MILK, KHASTESWAR MAHADEV)
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
Deleteआपकी यह जानकारी बहुत ही सरहानीय है- Albadan chori
ReplyDeleteधन्यवाद, उत्साह बढ़ाते रहें
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