भूटान के हर शहर में प्रसिद्ध
जोंग (बौद्ध मठ) हैं। ये जोंग न सिर्फ भूटान की के इतिहास और संस्कृति से रूबरू
कराते हैं, बल्कि इनकी निर्माण शैली आपको कौतूहल में डालती है। सैलानियों के लिए इन
जोंग को देखना भूटान के सबसे बड़े अजूबे से रूबरू होना है।
रिपुंग जोंग या पारो जोंग -
तो नेशनल म्यूजियम के बाद हमलोग पहुंचे हैं पारो जोंग में। इसका मूल नाम रिंपुंग
जोंग है। इसमें प्रवेश के ले 300 रुपये का
टिकट है। इसका निर्माण 15वीं सदी में हुआ था जो 17वीं सदी तक चलता रहा। इस विशाल
जोंग के अंदर 14 अलग अलग देखने योग्य प्वाइंट है। इनमें चंदन का स्तूप, बौद्ध
भिक्षुओं का प्रार्थना कक्ष आदि प्रमुख है। यहां 11 चेहरे वाले अवलोकितेश्वर बुद्ध
की प्रतिमा भी देखी जा सकती है।
रिंपुंग जोंग मं 1907 में भीषण आग लग गई थी। तब इसकी ज्यादातर धरोहर स्वाहा हो गईं। सिर्फ एक थंगक पेंटिंग को ही बचाया जा सका। इसके बाद इस मठ का पुनर्ऩिर्माण कराया गया।
पारो चू नदी के किनारे बने इस विशाल जोंग तक पहुंचने के लिए नदी के उस पार से एक लकड़ी का पुल भी बना हुआ है। हर साल मार्च महीने मे पारो जोंग के परिसर में पांच दिनों तक चलने वाला मास्क फेस्टिवल का आयोजन भी होता है।
रिंपुंग जोंग मं 1907 में भीषण आग लग गई थी। तब इसकी ज्यादातर धरोहर स्वाहा हो गईं। सिर्फ एक थंगक पेंटिंग को ही बचाया जा सका। इसके बाद इस मठ का पुनर्ऩिर्माण कराया गया।
पारो चू नदी के किनारे बने इस विशाल जोंग तक पहुंचने के लिए नदी के उस पार से एक लकड़ी का पुल भी बना हुआ है। हर साल मार्च महीने मे पारो जोंग के परिसर में पांच दिनों तक चलने वाला मास्क फेस्टिवल का आयोजन भी होता है।
डुंगची लाखांग मठ - हमलोग शहर की ओर लौट रहे हैं
रास्ते में एक और बौद्ध मठ मिला डुंगची लाखांग। हमने इसके अंदर जाकर देखा। धर्म
चक्र चलाया और मठ के अंदर लकड़ी के बारीक काम को देखा। यह 1433 का बना हुआ मठ
है। कहा जाता है यह मठ एक राक्षसी के सिर
पर बना है जो पहले लोगों को बीमार बना रही थी। 1841 में इस मठ के भवन का
पुनर्निमाण कराया गया।
कीचू लाखांग की अनूठी दुनिया -
हमारी अगली मंजिल थी कीचू लाखांग जो पारो की सबसे अनूठा और शानदार बौद्ध मठ है। यह
पूरे भूटान में सबसे प्राचीनतम बौद्ध मठों में शुमार है। इसका निर्माण 659 ईस्वी
का बताया जाता है। पारो शहर से उत्तर 3 किलोमीटर बाहर स्थित इस बौद्ध मठ में
प्रवेश के लिए 300 रुपये का टिकट निर्धारित है। कहा जाता है कि इस मठ का निर्माण
तिब्बत के राजा सोंगटेन गांपो ने सातवीं सदी में कराया था। इस राजा ने कुल 108
बौद्ध मंदिरों का निर्माण कराया था। यह भी कहा जाता है कि बौद्ध धर्म गुरु आचार्य
पद्मसंभव आठवीं सदी में अपनी पारो यात्रा में यहां रुके थे। इस दौरान उन्होंने
अपने खजाने की कई महत्वपूर्ण वस्तुएं यहां पर छोड़ी थीं।
इस मठ में प्रार्थनागृह के
अलावा सुंदर संग्रहालय है जो दर्शनार्थियों को विस्मृत कर देता है। मठ के अंदर
हजार हाथों वाले बुद्ध की दो प्रतिमाएं हैं। इन प्रतिमाओं के दर्शन करके बौद्ध
मतावलंबी खुद को काफी धन्य समझते हैं। मठ की दीवारों पर अति सुंदर थंगक पेंटिंग भी
देखी जा सकती है। यहां आप कई प्राचीन शस्त्र भी देख सकते हैं। मंदिर के निर्माण
में लकड़ी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ है। इसके अंदर कई बेशकीमती रत्नों का भी
निर्माण में इस्तेमाल किया गया है। वास्तव में किचू लाखांग मठ के अंदर आना और उसके
अलग अलग कक्षों को घूमना किसी तिलिस्म से कम नहीं लगता है।
मठ का परिसर काफी बड़ा है।
परिसर में चारों तरफ धर्मचक्र लगे हैं। जिसे श्रद्धालु लोग नचाते रहते हैं। मंदिर
परिसर में चेरी ब्लास्म के शानदार फूल खिले रहते हैं। पूरे मठ को देखने के लिए
आपके पास एक घंटे से ज्यादा का वक्तहोना चाहिए।
- Vidyut P Maurya - vidyutp@gmail.com
- Vidyut P Maurya - vidyutp@gmail.com
(RINPUNG
DZONG, PARO, DUNGTSE LAKHANG, KUCHU LAKHNAG )