त्रिपुरा
के उनाकोटि के बारे में अगर ये कहा जाए कि यह देश के सबसे बड़े शैव तीर्थ में एक
है तो कुछ गलत नहीं होगा। पौराणिक कथाओं में उनाकोटि के बारे में कई दिलचस्प कथाएं मिलती हैं। एक कथा के
अनुसार,
इस स्थान पर देवी-देवताओं की एक सभा हुई थी और भगवान शिव, काशी जाते समय यहां रुके थे। कहा जाता है कि सुबह उठकर शिव तो काशी को
प्रस्थान कर गए पर बाकी देवता सोते रह गए। यानी उनकोटि में देवी देवताओं का वास
है।
उनाकोटि
में प्रवेश करते ही आपको पहाड़ों से एक झरना गिरता हुआ नजर आता है। इस झरने के
आसपास प्राकृतिक पहाड़ों को ही काटकर शिव और उनके परिवार के मूर्तियां उकेरी गई
हैं। इन मूर्तियों का सौंदर्य अप्रतिम और नयनाभिराम है। कलाप्रेमी इन्हे घंटो
निहारते रह जाते हैं। ये मूर्तियां माना जाता है कि छठी से आठवीं सदी के दौर में
बनी हैं।
उनाकोटि
काल भैरव - उनाकोटि में दो तरह की शिव
परिवार की मूर्तियां हैं। एक जो चट्टानों को काटकर उकेरी गई हैं और दूसरे पत्थर की
निर्मित मूर्तियां। यहां पर चट्टानों पर उकेरी गई छवियों में सबसे सुंदर शिव की छवि
है। इसे उनाकोटि काल भैरव के नाम से जाना जाता है। यह
करीब 30 फीट ऊंची शिव की आधार मूर्ति है, जिसका मुकुट ही 10 फीट का है। शिव के बगल
में शेर पर सवार देवी दुर्गा की प्रतिमा है तो दूसरी तरफ देवी गंगा की छवियां
पत्थरों पर उकेरी गई हैं।
यहां
गंगा अवतरण का दृश्य बड़ा ही मोहक है। पहाड़ों को काटकर बनी विशाल आधार मूर्तियों
में एक दृश्य गंगाअवतरण का है। भागीरथ की तपस्या के बाद गंगा से स्वर्ग से पृथ्वी
पर आने को तैयार होती हैं। तो यहां विशाल शिव की जटाओं से जलधारा में गंगा अवतरित
होती दिखाई देती हैं। शिव के चेहरा एक समूचे चट्टान पर बना हुआ है। शिव की जटाएं
पहाड़ों की चोटियों पर फैली हैं। वे गंगा के वेग को अपनी जटाओं में रोकते प्रतीत
होते हैं। यह भारत में शिव की सबसे बड़ी आधारमूर्ति मानी जाती है। पूरे साल यहां
जल प्रपात से पानी बहता रहता है, जो इस नजारे को और भी मनोरम बनाता है। बारिश के
दिनों में तो इसका सौंदर्य और भी बढ़ जाता है।

इसके
बाद तकरीबन आधा किलोमीटर जंगल में ट्रैकिंग करते हुए आगे बढ़ जाएं। वहां जाकर एक
अदभुत शिव मूर्ति नजर आती है। यहां पर एक छोटा संग्रहालय बनाकर कुछ मूर्तियों को
संग्रहित भी किया गया है। जंगल में इधर उधर बिखरी मूर्तियों को संग्रहित करने का
कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से कराया जा रहा है। वहां पेड़ के पास एक
मंदिर भी बन गया है जहां लोग पूजा करते हैं। जंगल में कुछ बकरियां भी नजर आती हैं।
अदभुत
शिवलिंगम – लौटते हुए अदभुत शिवलिंगम के दर्शन होते है। इस शिवलिंगम में तीन तरफ
शिव के चित्र उकेरे गए हैं। एक तरफ शिव की मुकुटधारी छवि है तो दूसरी तरफ शिव की
एक और मोहक छवि।
अनूठा
गणेश दरबार – उनाकोटि में काल भैरव शिव के बाद दूसरी बड़ी आकर्षक छवि गणेश जी की है।
यह छवि शिव की छवि से करीब 50 मीटर नीचे बनाई गई है। यहां पर गणपति और उनका पूरा परिवार इस
छवि में देखा जा सकता है। कला पारखी कहते हैं कि पूूरी दुनिया में पत्थरों को काट कर उकेरी गई इतनी शानदार गणेेश प्रतिमा कहीं भी नहीं है। यह गणपति की बैठी हुई लंबोदर रूप वाली प्रतिमा है। इसको देखकर यह अंदाजा लगाना आसान नहीं है कि शिल्पी ने इसे तराशने में कितना वक्त लगाया होगा। ये है अदभुत अकल्पनी। इस प्रतिमा के पास से भी नदी की जलधारा आगे बढ़ती है।
कल्याणसुंदरम शिव मूर्ति - गणेशजी
के दर्शन के बाद उनाकोटि में आप चतुर्मुख लिंगम शिव के दर्शन करना न भूलें। यह
गणेश मूर्ति से 200 मीटर आगे जंगल में स्थित है। इस मूर्ति के पास ही कल्याणसुंदरम
शिव मूर्ति भी है। दोनों ही मूर्तियां अदभुत हैं।
जब आप
उनाकोटि पहुंचे हैं तो कम से कम यहां तीन घंटे का समय देना श्रेयस्कर रहेगा। यहां
पर अब कुछ वाच टावर भी बना दिए गए हैं जहां से आप जंगल का नजारा कर सकते हैं।
उनाकोटि
में पौष और चैत्र मास में पहली तारीख से दो दिनो का विशाल मेला लगता है। इस मौके
पर आसपास से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। वैसे आप यहां सालों
भर घूमने आ सकते हैं।
कैसे
पहुंचे – उनाकोटि अगरतला से 178 किलोमीटर, धर्मनगर रेलवे स्टेशन से 20 किलोमीटर, कुमारघाट
रेलवे स्टेशन से 23 किलोमीटर है। कैलाशहर में रुककर घूमना बेहतर होगा। कैलाशहर से उनाकोटि
की दूरी 8 किलोमीटर है।
-विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(UNAKOTI, TRIPURA, SHIVA, GANESHA, RIVER, WATER )
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