शरतचंद्र
चट्टोपाध्याय। बचपन से ही मेरे प्रिय लेखक। सातवीं कक्षा से उन्हें पढ़ना शुरू
किया था। दसवीं तक आते आते पूरा शरत साहित्य पढ़ चुका था। घुमक्कड़ी के प्रेरणा
मिलती है शरत साहित्य से। वैसे कोलकाता कई बार आ चुका हूं। पर इस बार पता चला कि
शरत बाबू का वह गांव जहां वे आखिरी दिनों में रहे हावड़ा जिले में है तो वहां जाने
की इच्छा हुआ। 30 दिसंबर को हिस्ट्री कांग्रेस में मेरा शोध पत्र पढ़ने का कार्य
संपन्न हो गया तो मैं निकल पड़ा शरत बाड़ी के लिए। सबसे पहले हावड़ा रेलवे स्टेशन
पहुंचा, हुगली नदी को स्टीमर से पार करके। इसका भी अपना मजा है। हावड़ा स्टेशन पर
लिट्टी चोखा की दुकान दीख गई तो थोड़ी सी पेटपूजा हो जाए।
स्टेशन
में प्रवेश करता हूं। जाने और आने का टिकट देउल्टी रेलवे स्टेशन तक का ले लिया।
प्लेटफार्म नंबर 13 से देउल्टी के लिए पैसेंजर ट्रेन खुलती है। जो लोकल ट्रेनें
खड़गपुर तक जाती हैं वे देउल्टी रुकती हैं। यानी देउल्टी रेलवे स्टेशन हावड़ा से
खडगपुर लाइन पर है। हावड़ा से 52 किलोमीटर पर 19वां रेलवे स्टेशन है देउल्टी। मैं
दोपहर 2.10 बजे वाली लोकल ट्रेन में बैठा हूं। जगह आसानी से मिल गई है। ट्रेन में
चना जोर गरम से लेकर तमाम खाने पीने की सामग्री बेचने वाले आ रहे हैं।
कुछ
स्टेशन बाद संतरागाछी रेलवे स्टेशन आया। संतरागाछी को अब कोलकाता में एक टर्मिनल
के तौर पर विकसित किया जा रहा है। कई ट्रेने
अब यहीं से खुलती हैं। मैं देख रहा हूं स्टेशन पर नए प्लेटफार्म बनाने और
स्टेशन के सौंदर्यीकरण का काम जारी है। संतरागाछी में इंटरस्टेट बस टर्मिनल भी
बनाया गया है। यानी खड़गपुर और ओडिशा की तरफ से आने वाली ज्यादातर ट्रेने यहीं
खत्म हो जाएंगी। आबादी के बढ़ते बोझ के कारण हावड़ा, सियालदह के अलावा कोलकाता,
शालीमार, संतरागाछी अब टर्मिनल बन चुके हैं।
ट्रेन
सरपट भाग रही है। हर स्टेशन पर एक मिनट से ज्यादा नहीं रुकती। घोराघाटा के बाद
अगला स्टेशन है देउल्टी। सहयात्री बता देते हैं कि देउल्टी आने वाला है। मैं आराम
से उतर जाता हूं। प्लेटफार्म पर एक रेलवे स्टाफ से शरत बाड़ी पूछता हूं। वे कहते
हैं दाहिनी तरफ स्टेशन से बाहर निकलिए। बाहर हाईवे पर पहुंचने पर शरतबाड़ी के लिए
आटो रिक्शा मिल जाएगा। मैं देखता हूं के रेलवे स्टेशन पर भी शरतचंद्र की प्रतिमा
लगी है। यहां पर उनके संक्षिप्त परिचय के साथ उनके गांव के बारे में जानकारी दी गई
है।
रेलवे
स्टेशन से बाहर निकलकर कोई 500 मीटर चलने के बाद नेशनल हाईवे आता है। उसके अंडरपास
से पार करने के बाद आटो टैक्सी का स्टैंड है। यहां से समताबेर ग्राम के लिए आटो
रिक्शा मिलता है। टाटा की छोटी गाड़ी में मैं ड्राईवर के बगलवाली सीट पर बैठ जाता
हूं। तीन किलोमीटर चलने के बाद वे उतरने के कहते हैं। समताबेर आ गया है। स्टाप से
बायीं तरफ एक रास्ता जा रहा है। पूरे रास्ते में पश्चिम बंगाल टूरिज्म की ओर से पथ
संकेतक लगे हैं जिसमें शरत बाड़ी जाने का रास्ता बताया गया है। मैं उस रास्ते पर
चल पड़ता हूं, जो मेरे लिए किसी बड़े तीर्थ स्थल जैसा ही तो है। अमरकथा शिल्पी
शरतचंद्र का घर। (जारी... )
-
विद्युत प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
(SHARAT CHANDRA, SAMTABER, HOWRAH, LOCAL TRAIN )
बहुत सुन्दर। शरत बाबू मेरे भी प्रिय रचनाकार हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद विकास भाई
Delete