जब
भी कोलकाता आता हूं साइकिल रिक्शा को बड़ी हशरत से देखता हूं। इन रिक्शा में अगला
पहिया नहीं होता। दो पहियों के भारी भरकम रिक्शे पर दो सवारियां बिठाकर या फिर माल
लादकर रिक्शा लेकर आदमी दौड़ जाता है। लार्ड विलियम बेंटिक स्ट्रीट पर रात को आठ
बजे मेरी मुलाकात फेंकू मियां से होती है। वे अपने रिक्शा के साथ फुटपाथ पर बैठे
हैं।
उमर
65 साल हो गई है, पर अब भी पूरे दमखम से रिक्शा को लेकर दौड़ पड़ते हैं। मिट्टी
के करुए में चाय की चुस्की के साथ मैं फेंकू मियां से संवाद स्थापित करने की कोशिश
करता हूं। फेंकू मियां 40 साल से कोलकाता में रिक्शा लेकर दौड़ रहे हैं। कोलकाता
की हर गली हर सड़क से वे बाबस्ता है। 25 साल के थे जब इस भारी भरकम रिक्शे को थामा
था। तब से यही जिंदगी बन गई। बताते हैं कि रिक्शा 30 रुपये किराये पर 24 घंटे के
लिए मिल जाता है। नया खरीदो तो आजकल 30 हजार का आता है। इसलिए अपना रिक्शा नहीं
खरीदा, किराये पर ही चला रहा हूं। पूरे देश में कोलकाता और महाराष्ट्र का एक हिल
स्टेशन माथेरन है जहां इस तरह का रिक्शा चलन में है।
रिक्शे
पर बातों के साथ फेंकू मियां पुरानी यादो में खो जाते हैं। मैं इस रिक्शे पर सवारी
लेकर टीटागढ़ तक जा चुका हूं। मतलब तकरीबन 30 किलोमीटर। सवारी बिठाकर दौड़ते हुए।
टीटागढ़ क्या एक बार तो नैहाटी भी चला गया था। कोई दाम देगा तो क्यों नहीं जाउंगा।
रोजी रोटी का सवाल है।
फेकूं
मियां बताते हैं कि एक बार एक लाश लेकर नैहाटी तक गया था, करीब 35 किलोमीटर। उस
लाश को कोई ले जाने को तैयार नहीं था। बड़े शान से कहते हैं इस रिक्शे पर दो टन
वजन लेकर दौड़ सकता हूं।
इस
रिक्शे की कमाई से कोलकाता के बाहरी इलाके ठाकुर पुकुर में जमीन खरीदकर घर भी
बनाया। आठ कमरे बना लिए हैं , उन्हें किराये पर भी लगा दिया है। दो बेटियों की
शादी कर चुका हूं। हालांकि बेटे को परिवार से बेदखल कर दिया है। क्यों भला। उसने
मेरी मर्जी के खिलाफ जाकर दूसरी जाति में प्रेम विवाह कर लिया है। उसे मुहब्बत हो
गई थी, ये मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ।

आजकल
कितना कमा लेते हैं। यही कोई 200 से 400 रुपये रोज। ग्राहक मिलने पर है। क्या नए
लोग भी रिक्शा खींचने आ रहे हैं।क्यों नहीं आएंगे। कोलकाता में रोजी रोजगार के
साधन नहीं है। पुराने उद्योग धंधे बंद हो गए। नए लगे नहीं। कोई काम नहीं मिलेगा तो
क्या करेंगे। रिक्शा खींचकर पेट भरने लायक तो कमा लेंगे, नहीं तो भूखे ही सोना
पड़ेगा। किसी दिन ज्यादा ग्राहक मिल गए किसी दिन कम पर, फेंकू मियां जिंदगी से
निराश नहीं है। मैं उन्हें सलाम करता हूं और आगे बढ़ जाता हूं।
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