उनाकोटि
से लौटते हुए कैलाशहर में प्रवेश के दौरान ही हमारे आटो वाले साधन मालाकार मुझे
लक्ष्मीनारायण मंदिर ले जाते हैं। कैलाशहर का या लक्ष्मी नारायण मंदिर शहर के
प्रवेश द्वार के पास बड़े ही मनोरम वातावरण में है। इस मंदिर में लक्ष्मी नारायण
के अलावा मां दुर्गा और तमाम देवी देवताओं की आदमकद मूर्तियां है। ये मूर्तियां
कुछ वैसी हैं जैसी दुर्गापूजा के समय कुम्हार बनाते हैं।
रंगबिरंगी सजीली मूर्तियां । पर यहां मंदिर में ये मूर्तियां सालों भर के लिए स्थापित की गई हैं। तो मंदिर बड़ा ही रंगबिरंगा और प्रदर्शनी सा प्रतीत होता है।
रंगबिरंगी सजीली मूर्तियां । पर यहां मंदिर में ये मूर्तियां सालों भर के लिए स्थापित की गई हैं। तो मंदिर बड़ा ही रंगबिरंगा और प्रदर्शनी सा प्रतीत होता है।
इस
मंदिर के दर्शन के बाद वापस होटल लौट आता हूं। अपने आटो वाले को नए मोटर स्टैंड पर
ही उतार देने को कहता हूं। पैदल चलकर मनु नदी का पुल पार कर आगे बढ़ता हूं। जिला
जेल के पास पहुंच कर समय देखता हूं। अभी मेरे पास समय है। तो कुछ और देखा जा सकता
है। शहर के प्रशासनिक दफ्तर वाले इलाके में एक सुंदर कालीबाड़ी है। इस बाड़ी के
बगल में विशाल तालाब है। रात में तालाब के पानी के साथ कालीबाड़ी का नजारा बड़ा
मोहक नजर आता है।
सुदूर गांव में मनभावन मंदिर - रंगावटी
का चतुर्दश देवता मंदिर
उनकोटि से लौटने के बाद थोड़ा समय है तो मैं आसपास के लोगों से जानकाली लेने के बाद निकल पड़ता हूं रंगावटी की तरफ। कैलाशहर
से नौ किलोमीटर आगे रंगौती मार्ग पर गांव में बड़ा ही सुंदर चतुर्दश देवता मंदिर
है। त्रिपुरा में कई जगह 14 देवताओं का मंदिर एक साथ बनवाने की परंपरा है।
कैलाशहर
से 5 किलोमीटर आगे तिलगांव। वहां से 4 किलोमीटर आगे रंगौती मार्ग पर दाहिनी तरफ
खोराबिल गांव में चतुर्दश देवता का मंदिर स्थित है। मंदिर के बगल में एक नहर और
चारों तरफ खेत हैं। मंदिर परिसर में एक विशाल बरगद का पेड़ है जिसकी तमाम डालियां
चारों तरफ तने बनकर पसर गई हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो पूरा पेड़ ही धरती मां के
प्रेम में आबद्ध हो।
मंदिर
के गर्भ गृह में 14 देवी और देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित कराई गई हैं। ये सभी
प्रतिमाएं आदमकद और बहुरंगी हैं। कला शिल्पी ने इसमें पूरा सौंदर्य उड़ेलने की
कोशिश की है। मंदिर की मुख्य प्रतिमा कालभैरव यानी शिव की है जो बीचों बीच में
स्थित है। यह प्रतिमा सारी प्रतिमाओं की तुलना में बड़ी भी है। कालभैरव के आसपास
कृष्ण, बलराम, सुभद्रा, कल्कि अवतार, सरस्वती, गंगा, हरि गौरी, काली आदि देवियों
की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। मंदिर ज्यादा पुराना नहीं है। पर यह कैलाशहर के
आसपास के सुंदर मंदिरों में शामिल है।
माघ
पूर्णिमा को विशाल मेला - चतुर्दश देवता मंदिर की प्रबंधन गांव की समिति देखती है।
माघ मास की पूर्णा की तारीख के दिन यहां विशाल मेला लगता है। दो दिन के इस मेले के
दौरान दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचते हैं।
कैलाशहर
से रंगौती जाने के रास्ते में कई किलोमीटर तक बांग्लादेश की सीमा नजर आती है। मुख्य
सड़क से मंदिर तकरीबन एक किलोमीटर है। आटो वाले मोड़ पर उतार देते हैं और बताते हैं कि सामने मंदिर है। मैं पैदल चल पड़ा हूं। थोड़ी दूर चलने पर खेतों के बीच एक घर दिखाई देता है। वहां देखता हूं जलापूर्ति का कनेक्शन लगा है और पानी भी आ रहा है। हरे भरे खेतों के बीच सड़क पर पैदल चलना भला लग रहा है। अपनी धुन में चला जा रहा हैूं। तभी एक बाइक वाले
जाते दिखते हैं। मैं उन्हें इशारा करता हूं, वे लिफ्ट दे देते हैं।
चतुर्दश
मंदिर पहुंचने पर देखता हूं कि मंदिर में ताला बंद है। पास में कुछ लोग बैठे हैं।
सुभेंद्र कुमार दास से परिचय होता है। रेलवे से रिटायर कर्मचारी हैं। बदरपुर जंक्शन पर उनकी पोस्टिंग थी। बताते हैं मंदिर के
पुजारी का निधन हो गया है। नए पुजारी की तलाश है। वे जब सुनते हैं कि मैं दिल्ली
से आया हूं तो गांव से मंदिर की चाबी मंगाते हैं। मैं अंदर जाकर दर्शन करता हूं।सुभेंदू दास मंदिर के बारे में और जानकारी देते हैं। बताते हैं कि मेरी सूरत उनके एक ओडिया दोस्त से मिलती है। थोड़ी देर में ही काफी अपनापन हो जाता है। पर मुझे तो वापस भी लौटना है।
वापसी
में फिर वह बाइक वाले संयोग से मिल गए। उनका नाम बीरबाबू देवबर्मा है। वे पिग (सूअर)
का कारोबार करते हैं। इस बार वे मुझे कैलाशहर बाजार तक छोड़ देते हैं। बताते हैं
कि देवबर्मा मतलब मैं आदिवासी (जनजाति समुदाय) हूं। पर वे ईसाई बन गए हैं। धर्म बदला है पर पर नाम नहीं बदला है।
मैं उनका धन्यवाद कर आगे बढ़ता हूं। केले 5 रुपये दर्जन मिल रहे हैं। ये केले हाजीपुर के अलपान केले जैसे हैं। तो एक दर्जन केले खा लिए।
सुबह का नास्ता हो गया। यहां तो कच्चा पपीता भी 10 रुपये किलो बिक रहा है। सस्ती का जमाना है।
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विद्युत प्रकाश मौर्य
(CHATURDASH DEV TEMPLE, LAXMI NARYAN TEMPLE, KAILASHAR )
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