मिजोरम
राज्य के लोगों के दैनिक जीवन, सामाजिक कार्य और राजनीति में चर्च का काफी प्रभाव
है। मिजोरम राज्य की आबादी 11 लाख है। राज्य की 91 फीसदी से ज्यादा आबादी साक्षर
है। साक्षरता के प्रतिशत के लिहाज से यह देश के सबसे अग्रणी राज्यों में है। आबादी के घनत्व के लिहाज से यह प्रति
वर्ग किलोमीटर सबसे कम आबादी वाले राज्यों में है। राज्य का 91 फीसदी हिस्सा
वनाच्छादित है। जाहिर है आबोहवा अच्छी होगी। राज्य की 95 फीसदी आबादी जनजातीय है।
राज्य की कुल आबादी में ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या 87 फीसदी है। मिजोरम की
722 किलोमीटर चौहद्दी अंतरराष्ट्रीय सीमा है जो म्यांमार और बांग्लादेश से लगती
है।
राज्य
के उत्तरी इलाके ईसाई प्रेसबिटिरियन संप्रदाय से जुड़े हैं तो दक्षिणी इलाके वाले
बैपटिस्ट हैं। 1849 में पहली बार मिजो इलाके में ब्रिटिश अधिकारियों के पांव पड़े।
1895 में मिजो हिल्स पर ब्रिटेन के कब्जा हो चुका था। 1898 में ब्रिटिश भारत ने इस
क्षेत्र को असम का हिस्सा बना लिया। इसका नाम लुसाई हिल्स जिला रखा गया और इसका
मुख्यालय आईजोल में बना।
बीसवीं
सदी के पूर्वार्ध में यहां ईसाई मिशनरियों का आगमन शुरू हुआ और धीरे धीरे सारा
जनजातीय समाज यहां ईसाई बनने लगा। राज्य की भाषा मिजो है। मिज़ो भाषा की अपनी कोई
लिपि नहीं है। इसे अंग्रेजी स्क्रिप्ट में ही लिखा जाता
है। चर्च ने ही यहां की भाषा के लिए रोमन स्क्रिप्ट को अपनाया।
मिजोरम
के जनजातीय समाज में कुकी और लुसाई लोग प्रमुख हैं। कुकी लोग उत्तर पूर्वी मिजोरम
में बसते हैं। मिजोरम में पाहते, पई और राल्ते मार या लाखेर
इत्यादि उपशाखाओं वाला जनजातीय समाज भी है।
मणिपुर और मिजोरम में रहने वाले नेई मेनाशे समुदाय के
लोगों का कहना है कि वे इजरायल से नाता रखते हैं। नेई मेनाशे लोगों में मिजो,
कुकी और चिन समुदाय के लोग शामिल हैं जो तिब्बती-बर्मी भाषा बोलते
हैं। समझा जाता है कि उनके पूर्वज करीब सैकड़ों साल पहले यहां आ बसे। 19वीं सदी में उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया।
सबसे
ज्यादा अंतर्जातीय विवाह - भारत में सबसे ज़्यादा
अंतर्जातीय विवाह मिजोरम में होते हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड
इकॉनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) के एक सर्वे से ये बात पता चली है। मिजोरम में 55 प्रतिशत शादियां अंतर्जातीय होती है। एनसीएआईआर
की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 95 फीसदी शादियां समान जाति
में होती है, लेकिन मिजोरम इसका
अपवाद है।
क्रिसमस और नए साल की धूम
क्रिसमस का त्योहार आने के साथ
ही मिजोरम में क्रिसमस कैरल्स (मंगलगीत) की धुन हर
गांव में सुनाई देने लगती है। ईसाई बहुल राज्य में अभी भी त्योहार का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे पारंपरिक सामुदायिक
भोज का आयोजन होता है। गांवों या आसपास के इलाकों से आए लोग जुट जाते हैं। ये लोग एकसाथ
मिलकर इस तरह के भोज का आयोजन करते हैं जिसमें मुर्गे, मछली,
हरी सब्जियों और सलाद के अलावा पोर्क (सूअर का मांस) और बीफ (गाय का
मांस) का बना व्यंजन परोसा जाता है।
शाम
को मैं इधर ऊधर की सैर के बाद जारकोट चर्च पहुंचता हूं। यह आईजोल शहर का प्रमुख
चर्च है। यहां नए साल की पहली संध्या पर विशेष प्रार्थना सभा आयोजन हो रहा है।
चर्च के मुख्य हॉल में मैं जाकर बेंच बैठ जाता हूं। तकरीबन एक घंटे संगीतमय
प्रार्थना और प्रवचन सुनता हूं। हालांकि भाषा मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है। पर देख
रहा हूं कि आईजोल का सबसे पॉश समुदाय यहां जुटा हुआ है। बड़ी संख्या महिलाएं भी
हैं। 24 दिसंबर से 3 जनवरी तक जिस तरह मिजोरम में छुट्टी और उत्सव मनाने का वातावरण
बना रहता है उससे महसूस किया जा सकता है कि मिजो समाज में चर्च किस तरह समाया हुआ
है। राज्य की राजनीति की दशा और दिशा तय करने में भी चर्च की प्रमुख भूमिका है।
साल 2016 में यहां चर्च के कुछ प्रतिनिधियों ने योग दिवस का भी विरोध किया था।
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