उडुपी से हमारी वापसी की ट्रेन दोपहर
बाद चार बजे के करीब है। हमलोग दोपहर का खाना मथुरा वेज में खाने के बाद समय से
पहले स्टेशन आ गए हैं। हमने अपना अतिरिक्त लगेज क्लाक रुम में जमा कराया था उसे रिलीज
करा लिया। रेलवे की सुविधा काफी अच्छी है। एक आर्टिकिल के लिए 15 रुपये किराया 24 घंटे का। जहां क्लाक रुम ना हो वहां, टिकट बुकिंग आफिस में जाएं या स्टेशन मैनेजर ऑन ड्यूटी के पास जाएं। अब मत्स्यगंधा एक्सप्रेस का इंतजार है। ट्रेन समय पर चल रही है। कोंकण
रेल के नेटवर्क पर आमतौर पर रेलगाड़ियां लेट नहीं होतीं।
हमलोग रेलवे स्टेशन पर पूरनपोली नामक मराठी व्यंजन खरीदते हैं। यह मीठी रोटी है। सफर के लिए काफी अच्छा है। एक स्थानीय सज्जन से बात होने लगी। बताते हैं कि कोंकण रेल के निर्माण से पहले कर्नाटक के तटीय इलाकों से मुंबई पहुंचना काफी मुश्किल कार्य था। लंबी बस यात्रा करनी पड़ती थी। दो दिन लग जाते थे। अब यह सफर एक दिन में संभव है।
ट्रेन का नाम है मत्स्यगंधा एक्सप्रेस तो
इस ट्रेन में बड़ी मात्रा में मछलियां लादी भी जा रही हैं। मछलियां हैं तो उनका
गंध भी नाकों तक पहुंचेगा ही। तो हमारा सफर एकबार फिर कोंकण रेल से शुरू होने वाला
है। कुछ रास्ते जाने पहचाने से हैं, जहां से हम कई बार गुजर चुके हैं। उडुपी से
गोकर्ण रोड तक का सफर ट्रेन से कुछ दिन पहले ही तो किया था। फिलहाल उडुपी को अलविदा।
पर गोकर्ण से आगे गोवा के मडगांव तक का सफर दिन में नहीं किया था। सो इस बार माधवी भी खिड़की पर विराजमान हैं। बाहर के नजारे लेने के लिए। और नजारे इतने दिलकश हैं कि कोंकण रेल से बार बार सफर करने की इच्छा होती है सिर्फ प्रकृति कि हसीन चित्रकारी को देखने के लिए। हमलोग कारवार टनेल से गुजर रहे हैं। यह कोंकण रेल की 5.5 किलोमीटर से ज्यादा लंबी सुरंग है। रास्ते में कई नदियां और उनपर बने पुल आते हैं। ये सभी नदियां अरब सागर में जाकर मिल जाती हैं।
हमलोग रेलवे स्टेशन पर पूरनपोली नामक मराठी व्यंजन खरीदते हैं। यह मीठी रोटी है। सफर के लिए काफी अच्छा है। एक स्थानीय सज्जन से बात होने लगी। बताते हैं कि कोंकण रेल के निर्माण से पहले कर्नाटक के तटीय इलाकों से मुंबई पहुंचना काफी मुश्किल कार्य था। लंबी बस यात्रा करनी पड़ती थी। दो दिन लग जाते थे। अब यह सफर एक दिन में संभव है।
![]() |
पूरनपोली- सफर का साथी। |
पर गोकर्ण से आगे गोवा के मडगांव तक का सफर दिन में नहीं किया था। सो इस बार माधवी भी खिड़की पर विराजमान हैं। बाहर के नजारे लेने के लिए। और नजारे इतने दिलकश हैं कि कोंकण रेल से बार बार सफर करने की इच्छा होती है सिर्फ प्रकृति कि हसीन चित्रकारी को देखने के लिए। हमलोग कारवार टनेल से गुजर रहे हैं। यह कोंकण रेल की 5.5 किलोमीटर से ज्यादा लंबी सुरंग है। रास्ते में कई नदियां और उनपर बने पुल आते हैं। ये सभी नदियां अरब सागर में जाकर मिल जाती हैं।
अंकोला, कारवार जैसे स्टेशन आते
हैं। हम कारवार में प्लेटफार्म पर उतर कर वापस डिब्बे में आकर बैठ जाते हैं। अब
ट्रेन गोवा में प्रवेश कर गई है। काणकोण स्टेशन आता है। वहां छोटा सा ठहराव है।
मडगांव आने से पहले अंधेरा हो गया है। ट्रेन का मडगांव में 10 मिनट का ठहराव है।
हमलोग यानी मैं और अनादि मडगांव में प्लेटफार्म पर उतरते हैं। भोजनालय से अपने लिए
खाने की थाली पैक कराकर वापस ट्रेन में आ जाते हैं। मडगांव स्टेशन पर अच्छा और
काफी चलता हुआ भोजनालय है।
मडगांव के बाद ट्रेन आगे बढ़
जाती है। कुछ गोवा के स्टेशनों को पार करत है जहां इसका ठहराव नहीं है। करमाली,
थिविम, प्रेने में नहीं रुकती मत्स्यगंधा। अब महाराष्ट्र में प्रवेश करने वाली है
ट्रेन।
महाराष्ट्र का पहला स्टेशन सावंतवाडी रोड। हालांकि यहां भी ट्रेन का ठहराव नहीं है पर ट्रेन की गति थोड़ी धीमी होती है और एक मराठी लड़की पूरी बहादुरी के साथ अपना लगेज लिए हुए इस स्टेशन पर उतर जाती है। उतरने के दौरान एक बार मुझसे मराठी लहजे में ही पूछती है क्या यह सावंतवाडी रोड ही है ना। मैं नाम पढ़कर बताता हूं, हां ऐसा ही प्रतीत होता है। रात गहरा गई है। हमलोग ट्रेन में अपनी बर्थ पर सो जाते हैं। सुबह में नींद खुलने पर ट्रेन पनवेल में प्रवेश कर रही है। पर ट्रेन का आखिरी पड़ाव लोकमान्य तिलक टर्मिनस है।
महाराष्ट्र का पहला स्टेशन सावंतवाडी रोड। हालांकि यहां भी ट्रेन का ठहराव नहीं है पर ट्रेन की गति थोड़ी धीमी होती है और एक मराठी लड़की पूरी बहादुरी के साथ अपना लगेज लिए हुए इस स्टेशन पर उतर जाती है। उतरने के दौरान एक बार मुझसे मराठी लहजे में ही पूछती है क्या यह सावंतवाडी रोड ही है ना। मैं नाम पढ़कर बताता हूं, हां ऐसा ही प्रतीत होता है। रात गहरा गई है। हमलोग ट्रेन में अपनी बर्थ पर सो जाते हैं। सुबह में नींद खुलने पर ट्रेन पनवेल में प्रवेश कर रही है। पर ट्रेन का आखिरी पड़ाव लोकमान्य तिलक टर्मिनस है।
No comments:
Post a Comment