गोवा में बुद्धकालीन गुफाएं भी हैं।
बेटे अनादि ने ये रिसर्च कर डाला था। तो अब हमारी मंजिल थी रिवणा पहुंचना और उन ऐतिहासिक
गुफाओं को देखना। हालांकि गोवा आने वाले बहुत कम लोग वहां जाते हैं। पर इतिहास में
रुचि रखने वालों के लिए ये कौतूहल भरा अनुभव है।
हमलोग चांदोर (चंद्रपुर ) से
रिवणा के लिए जाना चाहते हैं। चांदोर के ब्रिगेंजा हाउस के बाहर एक सज्जन ने
रास्ता बता दिया। सीधे जाइए नदी का पुल पार करें तिलामोल से आगे रास्ता पूछते हुए
जंबावली होते हुए जाएं। हमलोग चल पड़े। रास्ते मे कुशावती नदी का पुल आया। नदी
इतनी प्यारी लगी की हमलोग रुक गए, कुछ तस्वीरों के लिए। नदी के दोनों पाट नारियल
के पेड़ से आच्छादित थे। मानो वे नदी के मोहपाश में बंधकर झुक गए हों। ऐसा प्रेम
भला कहां देखने को मिलता है।
हरियाली से लदी-फदी नदियां गोवा, कर्नाटक, केरल में ही देखने को मिल सकती हैं। नदी के उस पार सड़क के किनारे कुछ युवक मछलियां बेच रहे थे। ये मछलियां नदीं से निकाली गई थीं। हरा भरा सुंदर रास्ता है। असोलाडा से रास्ता बदलना पड़ा।
हरियाली से लदी-फदी नदियां गोवा, कर्नाटक, केरल में ही देखने को मिल सकती हैं। नदी के उस पार सड़क के किनारे कुछ युवक मछलियां बेच रहे थे। ये मछलियां नदीं से निकाली गई थीं। हरा भरा सुंदर रास्ता है। असोलाडा से रास्ता बदलना पड़ा।
थोड़ी दूर चलने पर तिलामोल आ गया। तिलामोल एक छोटा सा बाजार
है। यहां चौराहे पर रस्सी पर संतुलन बनाने वाला खेल देखने को मिला। हमने गांव में ऐसे
खेल देखे थे, अनादि के लिए वह नया था। वहां से आगे बढ़े जांबोलिम नामक छोटा सा
गांव आया। यहां प्रसिद्ध दामोदर मंदिर है। उनके दर्शन लौटते हुए करेंगे। यहां एक
गन्ने के जूस वाला स्टाल नजर आया। गन्ना का जूस निकालने वाले इलाहाबाद के हैं। इस जूस स्टाल पर एक महिला मिली जो अपनी
बिटिया को एक्टिवा से स्कूल से लेकर आ रही थीं। उन्होंने भी बताया कि हम सही
रास्ते पर हैं। वहां हमलोग रुक कर जूस पीकर आगे बढ़े।
तीन किलोमीटर आगे चलने पर हमलोग रिवणा गांव में हैं। यहां सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शाखा नजर आती है। अब हम रिवणा की गुफाओं की तलाश में हैं। बाजार से थोड़ा आगे जाकर दाहिनी तरफ नीचे कच्चे रास्ते पर उतरने के बाद एक जगह जाकर रास्ता बंद हो गया। हमलोग स्कूटी वहीं पार्क कर पैदल चल पड़े। जंगलों के बीच। पर कहीं गुफाएं नहीं दिखीं। थोड़ी दूर जाने पर एक परिवार मिला। उसने बताया कि गुफाएं पीछे ही हैं। हमलोग उसके मार्गदर्शन में वापस आए।
रिवणा की गुफा नंबर एक। चारों तरफ घास उग आई है.... |
तीन किलोमीटर आगे चलने पर हमलोग रिवणा गांव में हैं। यहां सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शाखा नजर आती है। अब हम रिवणा की गुफाओं की तलाश में हैं। बाजार से थोड़ा आगे जाकर दाहिनी तरफ नीचे कच्चे रास्ते पर उतरने के बाद एक जगह जाकर रास्ता बंद हो गया। हमलोग स्कूटी वहीं पार्क कर पैदल चल पड़े। जंगलों के बीच। पर कहीं गुफाएं नहीं दिखीं। थोड़ी दूर जाने पर एक परिवार मिला। उसने बताया कि गुफाएं पीछे ही हैं। हमलोग उसके मार्गदर्शन में वापस आए।
हमें जंगल के बीच अति प्राचीन
गुफा नजर आई। पक्की गुफा के चारों तरफ इतनी हरी हरी घास उग आई है कि आते जाते एकबारगी ये गुफा नजर नहीं
आती। इन गुफाओं के बारे में कहा जाता है कि ये छठी सातवीं सदी की बनी हुई हैं।
इनमें कभी बौद्ध भिक्षु तपस्या किया करते थे। इस तरह की गुफाएं देश के दूसरे
स्थानों पर भी मिलती हैं। पर गोवा में इन्हें देखना सुखद है।
मौर्य सम्राज्य के दौरान गोवा में आया बौद्ध धर्म - तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में गोवा मौर्य सम्राज्य का हिस्सा बन चुका था। इस दौरान गोवा में बौद्ध धर्म का काफी प्रचार प्रसार हुआ। गोवा के निवासी पूर्णमैत्रेयणी सारनाथ गए थे, जहां से लौटकर उन्होंने गोवा में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। रिवणा की गुफाओं में पीठ नजर आता है। इससे प्रतीत होता है कि इन गुफाओं में गुरु बैठकर शिष्यों को धर्म की शिक्षा देते थे।
गोवा वास्तव रिवणा में दो बौद्ध गुफाएं हैं। वापस लौटकर सड़क के बायीं तरफ 50 मीटर चलने के बाद बायीं तरफ दूसरी गुफा है। इस गुफा की बनावट बेहतर है। इसमें अंदर जाने की सीढ़ियां है। नीचे जाकर दूसरी तरफ से बाहर निकलने का रास्ता भी है। बाहर एक कूप भी बना हुआ है। यहां लोगों ने बाद में कुछ देवी प्रतिमाएं भी रख दी हैं। इस गुफा के पास हमें प्राकृतिक पानी का सोता भी नजर आया।
गोवा वास्तव रिवणा में दो बौद्ध गुफाएं हैं। वापस लौटकर सड़क के बायीं तरफ 50 मीटर चलने के बाद बायीं तरफ दूसरी गुफा है। इस गुफा की बनावट बेहतर है। इसमें अंदर जाने की सीढ़ियां है। नीचे जाकर दूसरी तरफ से बाहर निकलने का रास्ता भी है। बाहर एक कूप भी बना हुआ है। यहां लोगों ने बाद में कुछ देवी प्रतिमाएं भी रख दी हैं। इस गुफा के पास हमें प्राकृतिक पानी का सोता भी नजर आया।
कुछ लोग रिवणा की गुफाओं को
पांडव कालीन कहते हैं। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां रुके थे। पर
इतिहासकार इन्हें बौद्ध गुफाएं मानते हैं। लेटेराइट की बनी इन गुफाओं के बारे में
माना जाता है कि ये बौद्ध पीठ थे। यहां गुरु शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे।
हमारे लिए लंबी और रास्ता पूछ-पूछ कर सफर के बाद रिवणा पहुंचना और गुफाएं देखना सार्थक रहा। यूं कहें कि गोवा भ्रमण की सबसे बेहतर अनुभूति रही।
हमारे लिए लंबी और रास्ता पूछ-पूछ कर सफर के बाद रिवणा पहुंचना और गुफाएं देखना सार्थक रहा। यूं कहें कि गोवा भ्रमण की सबसे बेहतर अनुभूति रही।
कैसे पहुंचे – मडगांव से रिवणा की दूरी 25 किलोमीटर है। आप मडगांव से क्वेपे होकर चलें। वहां तिलामोल – जंबावली होते हुए
रिवणा पहुंच सकते हैं। अपना वाहन हो तो अच्छा है। बसें बहुत कम चलती हैं इस
मार्ग पर। आप हमारी तरह वाया चांदोर होकर
भी रिवणा जा सकते हैं।
- vidyutp@gmail.com
बहुत खूब
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