हमलोग गोवा को अलविदा कहने वाले
हैं। हमारी अगली मंजिल होगी कर्नाटक का गोकर्ण। सुबह नास्ते के बाद हमलोग लोकल बस
से मडगांव बस स्टैंड पहुंचते हैं।
कोलवा बीच से हर 20 मिनट पर एक बस चलती है मडगांव के लिए। मडगांव बस स्टैंड में जाने पर पता चला कि कारवार के लिए हर आधे घंटे पर बस मिलती है। ये बसें गोवा की कदंबा ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन की भी होती हैं और कर्नाटक रोडवेज की भी। हमें गोवा वाली बस मिल गई, कारवार के लिए। हालांकि हम मडगांव से गोकर्ण रोड ट्रेन से भी जा सकते थे, पर ट्रेन का समय काफी सुबह में था। बस मडगांव शहर से निकलकर हरे भरे सड़क पर दौड़ रही है। रास्ते में कुछ सुंदर चर्च दिखाई देते हैं।
कोलवा बीच से हर 20 मिनट पर एक बस चलती है मडगांव के लिए। मडगांव बस स्टैंड में जाने पर पता चला कि कारवार के लिए हर आधे घंटे पर बस मिलती है। ये बसें गोवा की कदंबा ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन की भी होती हैं और कर्नाटक रोडवेज की भी। हमें गोवा वाली बस मिल गई, कारवार के लिए। हालांकि हम मडगांव से गोकर्ण रोड ट्रेन से भी जा सकते थे, पर ट्रेन का समय काफी सुबह में था। बस मडगांव शहर से निकलकर हरे भरे सड़क पर दौड़ रही है। रास्ते में कुछ सुंदर चर्च दिखाई देते हैं।
मडगांव से कारवार की दूरी 72
किलोमीटर है। बस करीब ढाई घंटे लगाएगी। मडगांव शहर से बाहर निकलने पर बस नावेली से होकर गुजरी। नावेली मडगांव के बाहर नवविकसित कस्बा है।पर यहां कुछ पुराने चर्च हैं। हमें सड़क के किनारे एक सुंदर चर्च नजर आता है। आवर लेडी रोजरी चर्च यहां के लोगों का लोकप्रिय प्रार्थना स्थल है।
इसके बाद कोनकोलिम में कस्बे में रुकी। यहां बस बस स्टैंड के अंदर गई, पर तुरंत वहां से बाहर निकल कर आगे चल पड़ी।
यहां छोटे कस्बे के बस स्टैंड भी कर्नाटक की तरह शानदार बने हुए हैं। वहां से अगला स्टाप आया पाडी। पाडी के बाद आया काणकोण। काणकोण रेलवे स्टेशन भी है। इसके बाद सघन वन क्षेत्र आरंभ हो गया।
हम गोवा के ही काठीगांव वाइल्ड लाइफ सेंचुरी से होकर गुजर रहे हैं। जहां तक नजर जा रही है, हरे भरे पेड़ नजर आ रहे हैं। रास्ता पहाड़ी है पर ज्यादा घुमावदार नहीं है। दोनों तरफ खुशबूओं के जंगल साथ साथ चल रहे हैं। दोपहर में भी मौसम सुहाना है। ये हरियाली की खुशबू है ना वह भी साथ साथ चल रही है। माधवी और अनादि दोनों सफर का आनंद ले रहे हैं।
इसके बाद कोनकोलिम में कस्बे में रुकी। यहां बस बस स्टैंड के अंदर गई, पर तुरंत वहां से बाहर निकल कर आगे चल पड़ी।
यहां छोटे कस्बे के बस स्टैंड भी कर्नाटक की तरह शानदार बने हुए हैं। वहां से अगला स्टाप आया पाडी। पाडी के बाद आया काणकोण। काणकोण रेलवे स्टेशन भी है। इसके बाद सघन वन क्षेत्र आरंभ हो गया।
हम गोवा के ही काठीगांव वाइल्ड लाइफ सेंचुरी से होकर गुजर रहे हैं। जहां तक नजर जा रही है, हरे भरे पेड़ नजर आ रहे हैं। रास्ता पहाड़ी है पर ज्यादा घुमावदार नहीं है। दोनों तरफ खुशबूओं के जंगल साथ साथ चल रहे हैं। दोपहर में भी मौसम सुहाना है। ये हरियाली की खुशबू है ना वह भी साथ साथ चल रही है। माधवी और अनादि दोनों सफर का आनंद ले रहे हैं।
रास्ते में पोलियम (
POLLEM
) बीच के
लिए ठहराव आया। यह दक्षिण गोवा का आखिरी समुद्र तट है। यहां भी कुछ बेहतरीन
रिजार्ट बने हुए हैं। गोवा आने वाले सैलानी यहां तक आते हैं। पोलियम विदेशी सैलानियों की भी खास पसंद है। वे यहां आकर लंबा वक्त गुजारना पसंद करते हैं। ऐसे लोग जो खास तौर पर भीड़ भाड़ से दूर समंदर के किनारे रहना चाहते हैं उनके लिए पोलियम खास पसंद है। यह प्रदूषण से भी काफी दूर है।
आगे कसार नामक छोटा सा गांव आता है
जो गोवा का आखिरी गांव है। इसके बाद बस कर्नाटक में प्रवेश कर जाती है। सीमा पर चेक पोस्ट आता है। पुलिस तैनात है। हम एक बार फिर कर्नाटक में हैं। इसी साल मार्च तो कर्नाटक आना हुआ था। कर्नाटक में
पहला गांव आता है माजाली। इसके बाद हमलोग कारवार की सीमा में पहुंच चुके हैं।
कारवार शहर से ठीक पहले काली नदी पर पुल आता है। इसके बाद शहर आरंभ हो जाता है।
हमारी बस कारवार बस स्टैंड में जाकर रुकती है।
कारवार ( कर्नाटक) का समुद्र तट |
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कारवार में सड़क किनारे मछली बेचती महिलाएं। |
कारवार कर्नाटक के उत्तर कनारा
जिले का मुख्यालय भी है। शहर के एक तरफ सह्याद्रि पर्वत माला है तो दूसरी तरफ उछाल
मारता अरब सागर। शहर के उत्तर में सुंदर काली नदी है। इस नदी में बोटिंग करने के
इंतजाम दिखाई देते हैं। यह देश के ग्रीन सिटी में शुमार है जहां इको टूरिज्म की
पर्याप्त संभावनाएं हैं।
कारवार में है रविंद्र नाथ टैगोर बीच
कारवार में है रविंद्र नाथ टैगोर बीच
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने इसे कर्नाटक का कश्मीर कहा था। गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने कारवार के समुद्र तट पर अपने पहले नाटक की रचना यहीं पर की थी। गुरुदेव 1822 में यहां आए थे। उनके भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर यहां जिला जज के तौर पर पदस्थापित थे।कारवार के मुख्य समुद्र तट नाम टैगोर के सम्मान में रविंद्र नाथ टैगोर बीच रखा गया है।
कारवार शहर की आबादी 1.5 लाख के पास है। 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश शासन ने कारवार शहर का निर्माण एक सैन्य शहर के तौर पर किया था। हालांकि यह कर्नाटक का शहर है, पर यहां मराठी और कोंकणी भाषा का काफी प्रभाव है।
कारवार शहर की आबादी 1.5 लाख के पास है। 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश शासन ने कारवार शहर का निर्माण एक सैन्य शहर के तौर पर किया था। हालांकि यह कर्नाटक का शहर है, पर यहां मराठी और कोंकणी भाषा का काफी प्रभाव है।
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