साल 1995 में कटनी जाना हुआ था। एमए में पढ़ते हुए पीसीएस
की परीक्षा देने की सूझी थी। हालांकि मैं कभी सिविल सेवाओं में नहीं जाना चाहता
था। पर एक बार यूं ही साथियों की संगति में आकर परीक्षा दे दी थी। एमपी पीसीएस का
केंद्र आया कटनी। तो वाराणसी से कटनी जाने के लिए ट्रेन में सवार हुआ। बनारस कैंट में ही एक सहयात्री मिल
गए, डीएलडब्लू की पंडित जी, जो कई बार
से पीसीएस की परीक्षा दे रहे थे। रेल यात्रा के दौरान कई संभावित सवालों के जवाब
उन्होंने मुझे बता दिए। आश्चर्य ये कि उसमें से कई सवाल अगले दिन परीक्षा में आ भी
गए। हालांकि इस परीक्षा में चयन न मेरा हुआ न उनका। पर रेलयात्रा में हमने तय किया
कटनी में होटल एक साथ ले लेंगे जिससे कुछ रुपयों की बचत हो जाएगी। कटनी जंक्शन
उतरने पर हमलोग होटल की तलाश में निकले। काफी परीक्षार्थी आ गए थे इसलिए होटलों
में मारामारी थी। खैर हमें एक होटल में कमरा मिल गया। अगले दिन हमारा परीक्षा केंद्र
किसी स्कूल में था।

अब शुरू
होता है इस यात्रा में नए मोड़ का अचानक आ जाना। मैहर के बाजार में हमारी मुलाकात गांधी
शांति प्रतिष्ठान द्वारा संचालित एक यात्रा के लोगों से हुई। मैं गांधीवादी संस्थाओं से जुड़ाव रखता हूं इसलिए इस यात्र को देखकर रुक गया। जीप पर आठ लोगों के साथ चल
रही यह यात्रा अहिंसक समाज की रचना के लिए निकाली गई थी। इसमें हमारे राष्ट्रीय
युवा योजना (एनवाईपी) के दो पुराने साथी मिल गए, जिन्होंने मुझे पहचान लिया और यात्रा में
कुछ दिन मुझे साथ रहने के लिए आमंत्रित किया। यहीं पर पता चला कि इस यात्रा में शाम को महान गांधीवादी एसएन सुब्बराव जी भी आ रहे हैं। तो सुब्बराव जी से मुलाकात का
लोभ देखकर मैं यात्रा का सहभागी बन गया। शाम को सुब्बराव जी आए। उनसे 1991 से ही
परिचय गहरा हो गया था। उन्होंने मुझे रात को अपना एक लेख हिंदी में अनुवाद करने का काम
सौंप दिया। देर रात मैं ये कार्य करता रहा। अगले दिन यात्रा के साथ हमलोग सतना शहर
में थे। सतना में भी कुछ पुराने दोस्तों से मुलाकात हुई।
इसके बाद अगले दिन मध्य
प्रदेश के एक और शहर रीवा में पहुंचे। रीवा में यात्रा का कार्यक्रम अवदेश प्रताप विश्वविद्यालय में था। रीवा में मैंने दोपहर में यात्रा का साथ
छोड़ दिया। यहां से मैं वाया सीधी- शक्तिनगर होते हुए वाराणसी सड़क मार्ग से जाने का मन बना
चुका था।

मैं रीवा से
सीधी बस से पहुंचा। सीधी मध्य प्रदेश का वह जिला है जो भोजपुरी बोलता है। सीधी के
बस स्टैंड से मैंने अगली बस ली बैढ़न के लिए। बैढ़न के पास नार्दन कोलफील्ड्स
लिमिटेड (एनसीएल) के अमलोरी प्रोजेक्ट में मेरे मामाजी के बेटे कार्यरत हैं। तब यह
सीधी जिले में आता था अब सिंगरौली जिले में आता है। उनके घर एक बार पहले भी जा चुका
था, पर तब शक्तिनगर की ओर से आया था। बैढ़न बाजार में
पहुंचते हुए बस ने रात के नौ बजा दिए थे। मेरी चिंता थी कि अगर अमलोरी कॉलोनी में
जाने वाली आखिरी बस छूट गई तो छोटे से बैढ़न कस्बे में रात कहां गुजारूंगा।
पर इसे संयोग कहिए अमलोरी कॉलोनी की ओर जाने वाली आखिरी बस मिल गई। बस चल पड़ी थी मैंने उसे भागकर पकड़ा। मुझे जान में जान आई। रात 10 बजे के बाद भैया के फ्लैट में मैंने दस्तक दी। कई साल बाद गया था, पर भाभी ने आवाज से पहचान लिया। अगला दिन अमलोरी में गुजरे। भैया ने अमलोरी में कोयले की खुली खदानें दिखाईं। एनसीएल भारत सरकार की मिनी रत्न कंपनी है। इस इलाके में अमलोरी, जयंत और निगाही में एनसीएल की तीन प्रमुख खदानें हैं। इन सबके साथ बड़ी स्टाफ कालोनी है। बाद में अमलोरी से शक्तिनगर, चौपन, चुनार होते हुए वाराणसी वापस आ गया।
पर इसे संयोग कहिए अमलोरी कॉलोनी की ओर जाने वाली आखिरी बस मिल गई। बस चल पड़ी थी मैंने उसे भागकर पकड़ा। मुझे जान में जान आई। रात 10 बजे के बाद भैया के फ्लैट में मैंने दस्तक दी। कई साल बाद गया था, पर भाभी ने आवाज से पहचान लिया। अगला दिन अमलोरी में गुजरे। भैया ने अमलोरी में कोयले की खुली खदानें दिखाईं। एनसीएल भारत सरकार की मिनी रत्न कंपनी है। इस इलाके में अमलोरी, जयंत और निगाही में एनसीएल की तीन प्रमुख खदानें हैं। इन सबके साथ बड़ी स्टाफ कालोनी है। बाद में अमलोरी से शक्तिनगर, चौपन, चुनार होते हुए वाराणसी वापस आ गया।
- - विद्युत प्रकाश मौर्य
(KATNI, MAIHAR, SATNA, RIWA, SIDHI, SINGRAULI, BAIDHAN, AMLORI, NCL, COALFIELDS)
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रोचक संस्मरण। एक यात्रा से दूसरी यात्रा पर निकलना सुखद संजोग हुआ। छात्र जीवन में हम ऐसा कर सकते हैं। नौकरी में तो बंधी बंधाई योजने के अनुरूप ही काम करना होता है।
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