साल 1994 का दिसंबर महीना। गुनगुनी सी ठंड में भोपाल शहर
में कुछ दिन यादगार रहे। वाराणसी से भोपाल पहुंचा था मैं कोई परीक्षा देने। पर शहर
इतना अच्छा लगा कि कुछ दिन यहीं गुजराने और शहर को तफ्शील से घूमने का फैसला लिया।
वाराणसी से भोपाल की कोई सीधी ट्रेन नहीं थी। सो हम पहले पहुंचे महानगरी एक्सप्रेस
से इटारसी जंक्शन। फिर इटारसी से भोपाल दूसरी ट्रेन से। भोपाल में मैंने रहने के
लिए यूथ होस्टल बुक कराया था। यह न्यू मार्केट चौराहे पर था। यूथ हास्टल का परिसर
शानदार था। 25 रुपये प्रतिदिन में रहने के लिए डारमेटरी में
इंतजाम। पर हमने अपने भोपाल आने की सूचना अपने एक मित्र प्रिंस अभिषेक अज्ञानी को
खत लिखकर दे दी थी। उनसे अलीगढ़ में लगे एनवाईपी के शिविर से जान पहचान थी। अगले
दिन सुबह सुबह वे यूथ होस्टल में टपक पड़े। बड़े अधिकार से बोले। आप मेरे घर
चलेंगे रहने।
हमने यूथ हास्टल से
चेकआउट किया और चल पड़े साउथ तांत्या टोपे नगर में उनके घर। अज्ञानी समाजसेवक साथ
पत्रकार भी हैं। और तब मैं पत्रकार बनने की सोच रहा था। उनके पिता कैलाश आदमी
निर्दलीय नामक एक अखबार निकालते थे। अगले कुछ दिन गुजरे हमारे उनके घर में। वैसे
तो मैं भोपाल दो दिन के लिए ही गया था। पर शहर इतना अच्छा लगा कि पांच दिन रुक कर
शहर को इत्मीनान से घूमना तय किया। तो रोज सुबह अभिषेक हमें एक रुट बनाकर देते थे।
मैं दिन भर घूमने के बाद शाम को लौटकर न्यू मार्केट आ जाता था। न्यू मार्केट में
एक जलेबी की दुकान हुआ करती थी। वहीं जलेबियां खाने के बाद घर को लौट आता।
भोपाल का विशाल
बिड़ला मंदिर
कई शहरों की तरह
भोपाल में भी बिड़ला परिवार द्वारा बनवाया गया विशाल मंदिर है। यह लक्ष्मीनारायण
जी का मंदिर है। हैदराबाद की तरह ही यह मंदिर ऊंचाई पर बना हुआ है। यों जानिए कि
बिड़ला मंदिर भोपाल शहर की सबसे ऊंची चोटी पर निर्मित है। इसलिए यहां से पूरे शहर
का नजारा काफी सुंदर दिखाई देता है। अगर आप यहां शाम ढलने के बाद जाएं तो और भी
आनंद आता है। रात को यहां से पूरा भोपाल शहर रोशनी में नहाया हुआ नजर आता है। इसे
निहारना अत्यंत सुखद अनुभूति होती है।
भोपाल के बिड़ला मंदिर का निर्माण कार्य 3 दिसंबर 1960 को तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू के कर कमलों से शिलान्यास के बाद आरंभ हुआ। तकरीबन चार साल बाद 15 नवंबर 1964 को इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र ने इसका उदघाटन किया। मंदिर के गर्भ गृह में लक्ष्मी नारायण की सुंदर प्रतिमा है। मंदिर के हॉल में भगवान बुद्ध समेत कई संतों की प्रतिमाएं लगी हैं। इसके साथ ही उनके संदेश भी लिखे गए हैं। मंदिर में भजन की जगह अक्सर राष्ट्रभक्ति और समाज को सकारात्मक संदेश देने वाले गीत बजते हैं। दरअसल बिड़ला मंदिर की संकल्पना एक राष्ट्र मंदिर के तौर पर की गई है।
खुलने का समय - मंदिर सुबह 5.30 बजे से 11 बजे तक फिर शाम को 4 बजे से रात नौ बजे तक खुला रहता है। पर पर्व त्योहार के समय यह ज्यादा समय तक खुलता है।
बिड़ला मंदिर से लगा हुआ एक संग्रहालय भी है। इसमें टिकट लेकर प्रवेश किया जा सकता है। इस छोटे से संग्रहालय में चार दीर्घाएं हैं जिनमें प्राचीन मूर्तियों, सिक्कों आदि का संग्रह है। काफी मूर्तियां संग्रहालय के बाहर भी रखी गई हैं। इनमें ज्यादातर मूर्तियां भोपाल के पास, रायसेन, सीहोर, मंडला, मंदसौर आदि जिलों से लाई गई हैं।
भोपाल के बिड़ला मंदिर का निर्माण कार्य 3 दिसंबर 1960 को तत्कालीन मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू के कर कमलों से शिलान्यास के बाद आरंभ हुआ। तकरीबन चार साल बाद 15 नवंबर 1964 को इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र ने इसका उदघाटन किया। मंदिर के गर्भ गृह में लक्ष्मी नारायण की सुंदर प्रतिमा है। मंदिर के हॉल में भगवान बुद्ध समेत कई संतों की प्रतिमाएं लगी हैं। इसके साथ ही उनके संदेश भी लिखे गए हैं। मंदिर में भजन की जगह अक्सर राष्ट्रभक्ति और समाज को सकारात्मक संदेश देने वाले गीत बजते हैं। दरअसल बिड़ला मंदिर की संकल्पना एक राष्ट्र मंदिर के तौर पर की गई है।
खुलने का समय - मंदिर सुबह 5.30 बजे से 11 बजे तक फिर शाम को 4 बजे से रात नौ बजे तक खुला रहता है। पर पर्व त्योहार के समय यह ज्यादा समय तक खुलता है।
बिड़ला मंदिर से लगा हुआ एक संग्रहालय भी है। इसमें टिकट लेकर प्रवेश किया जा सकता है। इस छोटे से संग्रहालय में चार दीर्घाएं हैं जिनमें प्राचीन मूर्तियों, सिक्कों आदि का संग्रह है। काफी मूर्तियां संग्रहालय के बाहर भी रखी गई हैं। इनमें ज्यादातर मूर्तियां भोपाल के पास, रायसेन, सीहोर, मंडला, मंदसौर आदि जिलों से लाई गई हैं।
कैसे पहुंचे – बिड़ला मंदिर में भोपाल में मालवीय नगर में स्थित है। यह न्यू मार्केट को रोशनपुरा चौराहा के करीब है। रोशनपुरा चौराहा से शेयरिंग आटोरिक्शा से यहां पहुंचा जा सकता है। मैं अपने भोपाल प्रवास में कई बार बिड़ला मंदिर गया। भोपाल में आप बड़ी ताल, मानव संग्राहलय, भारत भवन, ताजुल मसजिद आदि भी देख सकते हैं।
धरने पर मेधा पाटेकर - जिस समय मैं भोपाल गया था संयोग से उसी दौरान सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ की मांग को लेकर धरने पर बैठी थीं। कई बार मैं दोपहर में धरना स्थल पर चला जाता था। वहां नर्मदा बचाओ आंदोलन के आदिवासी कार्यकर्ता खास तौर पर महिलाएं लोकधुन पर नाचते गाते नजर आते थे। इसी दौरान धरना स्थल पर एक दिन मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल आए। तब मुख्यमंत्री कांग्रेस के दिग्विजय सिंह हुआ करते थे।
- vidyutp@gmail.com
( BHOPAL, BIRLA TEMPLE, NEW MARKET, YOUTH HOSTEL )
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