दिल्ली
के मालवीय नगर मेट्रो स्टेशन के पास दिल्ली की एक प्राचीन विरासत है। यहां कम लोग
पहुंचते हैं। पर इतिहास के पन्नों में इसका खास महत्व है। हम बात कर रहे हैं किला
राय पिथौरा की। हालांकि अब किले के नाम पर यहा कुछ खास मौजूद नहीं है। पर यह हमें
दिल्ली के स्वर्णिम अतीत की स्मृतियों में ले जाता है।
किला राय पिथौरा का निर्माण पृथ्वीराज चौहान ने
कराया था। कुछ लोग उन्हें दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक के तौर पर देखते हैं। उन्हें
राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता था। भारतीय इतिहास के पन्नों पर पृथ्वीराज
चौहान का नाम मुस्लिम अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध
हिन्दू प्रतिरोध की कथाओं के प्रसिद्ध नायक के रुप में है। किला
राय पिथौरा के परिसर में घोड़े पर सवार पृथ्वीराज चौहान की विशाल प्रतिमा स्थापित
की गई है।
जहां अभी किला राय पिथौरा है वहां पहले लालकोट नामक प्राचीन नगर
हुआ करता था। इसे तोमर वंश के राजाओं ने बसाया था। तोमर राजा, अनंगपाल ने दिल्ली में संभवत पहला नियमित रक्षा संबंधी कार्य किया था।
उनके नाम पर हरियाणा में फरीदाबाद के पास अनंगपुर नामक गांव है। अनंगपाल ने जो शहर
बसाया उसे लालकोट नाम दिया गया था।
लाल कोट
अर्थात लाल रंग का किला, जो कि वर्तमान दिल्ली क्षेत्र का प्रथम निर्मित
नगर था। इसकी स्थापना तोमर शासक राजा अनंगपाल द्वितीय ने 1060 में की थी। तोमर वंश
ने दक्षिण दिल्ली क्षेत्र में सूरजकुण्ड के पास से राजधानी बनाकर शासन किया।
तोमरवंश का इतिहास 700 ईस्वी से आरम्भ होता है। फिर चौहान राजा, पृथ्वीराज चौहान ने 12वीं सदी में लालकोट को अपने अधिकार में ले लिया और
उस नगर एवं किले का नाम किला राय पिथौरा रखा।
पृथ्वीराज
चौहान ने 1191 में मुहम्मद गोरी को तराइन ( थानेशर, हरियाणा) के प्रथम युद्ध में हरा कर दिल्ली पर कब्जा किया था। इसके बाद पृथ्वीराज ने किला
राय पिथौरा को विशाल नगर में तब्दील किया। लेकिन दिल्ली की तख्त पर चौहान का कब्जा
ज्यादा दिनों तक रह नहीं पाया। एक साल बाद 1192 में
वह कुतुबुद्दीन ऐबक के हाथों हार गया और ये नगर मुस्लिम शासकों के कब्जे में आ गया।
राय पिथौरा
के अवशेष अभी भी दिल्ली के साकेत, महरौली, किशनगढ़ और वसंत कुंज क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं। इस किले की
प्राचीरों के खंडहर अभी भी कुतुब मीनार के आसपास के क्षेत्र में आंशिक रूप से देखे
जा सकते हैं।
किला राय
पिथौरा यानी लालकोट दिल्ली के सात प्राचीन नगरों में से एक है। इस किला में कुल 28
बुर्ज हुआ करते थे। इसके बुर्ज बिल्कुल नष्ट प्राय हो चुके हैं। अब इसमें किला के नाम पर कुछ बुर्ज और दीवारें ही बची हैं। इस किले में बुर्ज नंबर 15 सबसे बड़ा बुर्ज है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने इसका संरक्षण किया है।
आजकल महरौली
बदरपुर रोड (एमबी रोड ) कुतुबमीनार से अधचीनी के बीच इस किले को काटती हुई जाती
है। इस किले का विस्तार जितने हिस्से में था उसमें अब दक्षिण दिल्ली की तमाम नई नई
कालोनियां बस चुकी हैं। इसलिए अब किले का पूरा घेरा अब पुनर्स्थापित करना मुश्किल
है। पर इसमें किसी जमाने में कुल 13 दरवाजे
हुआ करते थे।
दिल्ली के
प्राचीन शहरों में से एक जहांपनाह की एक दीवार किला राय पिथौरा से मिलती है। इस
दीवार को संरक्षित किया गया है। मुहम्मद बिन तुगलक ने सीरी और किला राय पिथौरा के
बीच जहांपनाह नामक नगर बसाया था।
कैसे पहुंचे – आप मालवीय नगर मेट्रो स्टेशन से उतरने के बाद
मालवीय नगर थाने की तरफ बढ़े। यानी साकेत मॉल की उल्टी तरफ गीतांजलि कालोनी के
सामने किला राय पिथौरा का परिसर है। बस नंबर 680 और 534 किला राय पिथौरा से होकर
गुजरती है। परिसर के अंदर एक सुंदर पैदल चलने के लिए ट्रैक बनाया गया है। बीचों
बीच एक छोटा सा संग्रहालय और चित्र प्रदर्शनी है, जहां
दिल्ली के इतिहास से रुबरू हुआ जा सकता है। इस इमारत के ऊपर ही पृथ्वीराज चौहान की
प्रतिमा स्थापित की गई है।
06 मीटर
चौड़ी दीवार हुआ करती थी किला राय पिथौरा की
18 मीटर तक
ऊंचाई थी कई जगह किले की दीवार की
13 दरवाजे
हुआ करते थे किला राय पिथौरा में प्रवेश के लिए।
-vidyutp@gmail.com
( QUILA RAI PITHAURA, DELHI, LALKOT )
( QUILA RAI PITHAURA, DELHI, LALKOT )
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