आस्था की नगरी हरिद्वार में
अनेक आश्रम बने हुए हैं, जहां देश के अलग
हिस्सों के श्रद्धालु आकर ठहरते हैं। इसलिए आपको हरिद्वार में देश का सबसे सस्ता
आवासीय इंतजाम और भोजन मिल सकता है। कई आश्रम में तो आपको 200 रुपये प्रतिदिन में
आवास के साथ भोजन मिल सकता है। कई आश्रम यात्रियों से प्रतिदिन का कमरे का किराया नहीं
वसूल कर दान की रसीद देते हैं। हरिद्वार के प्रमुख आश्रमों में से एक है भीमगोड़ा
स्थित जयराम आश्रम। आश्रम गंगा जी तट पर स्थित है। मुझे जयराम आश्रम जाने का पहला
मौका 1993 में मिला था। दुबारा एक बार जयराम आश्रम 2017 में गया। हरिद्वार ऋषिकेश
मार्ग पर चार जयराम आश्रम देखने को मिलते हैं।
हरिद्वार
में गंगा घाट के किनारे ब्रह्मचारी श्री देवेन्द्र स्वरूप जी महाराज ने भीमगोड़ा
में,
सन् 1972 जयराम आश्रम की नींव रखी। यह आश्रम
आदि गुरु श्री जयराम महाराज की याद में बनवाया गया है। आश्रम की ओर से धर्मार्थ
चिकित्सालय और स्कूल आदि का भी संचालन किया जाता है। आश्रम की ओर से स्कूल ऋषिकेश
में संचालित है। आश्रम का ट्रस्ट एक संस्कृत कॉलेज का भी संचालन करता है। जयराम
आश्रम में कुल 512 कमरे हैं। पर हरिद्वार में भीड़ भाड़ के दिनों अक्सर यहां कमरे
खाली नहीं मिलते। अक्सर आश्रमों में अग्रिम बुकिंग का भी प्रावधान नहीं होता। आप
सामान के साथ पहुंचे कमरा मिल गया तो ठीक नहीं तो कहीं और तलाश करें। आश्रम में
श्रद्धालुओं को लिए निःशुल्क भोजन का भी इंतजाम है।
जयराम आश्रम के परिसर में एक
सुंदर प्रदर्शनी भी है। इस प्रदर्शनी को 2 रुपये के टिकट में देखा जा सकता है। इस
प्रदर्शनी में कई धार्मिक प्रसंगों को सुंदर झांकियों में दिखाया गया है। भीमगोड़ा
के आश्रम का मुख्य द्वार खड़खड़ी भूपतवाला मार्ग पर है। मुख्यद्वार के आसपास सुंदर
बाजार है। इस बाजार में हमने एक नाम लिखा हुआ लकड़ी का चाबी रिंग बनवाया। आश्रम के
सामने एक पंजाबी ढाबा में दोपहर का खाना खाया। खाना सुस्वादु था।
मां गंगा के गोद में एक बार फिर
- जयराम आश्रम का आश्रम का पिछला हिस्सा गंगा
तट पर खुलता है। आश्रम के बगल वाली गली से
आप गंगा तट पर पहुंच सकते हैं। यहां गंगा जी पर एक पैदल पार करने वाला पुल भी बना
हुआ है। इस पुल से उस पार जाकर आप गंगा स्नान कर सकते हैं। यहां पर हर की पौड़ी की
तुलना में कम भीड़ होती है। पानी भी अपेक्षाकृत साफ रहता है।
दोपहर में भी गंगा जी का पानी
बिल्कुल शीतल है। जयराम आश्रम के सामने वाले घाट पर मैं और अनादि गंगा में दो घंटे
से ज्यादा देर तक स्नान करते रहे। ये अदभुत आनंद था स्नान करने का। गंगा मां की
गोद से निकलने की इच्छा ही नहीं हो रही थी। पर आखिर कब तक यह सुख.. मैथिली के महान
कवि विद्यापति की पंक्तियां याद आती हैं...कत सुख सार पाओल तुअ तीरे... छाड़ते नयन
बह नीरे... हां सचमुच आंखे भर आती हैं मां गंगा से दूर होते हुए। पर हम फिर आएंगे
मां। तुम्हारे ममता के आंचल में अटखेलियां करने के लिए।
- vidyutp@gmail.com
(HARIDWAR, JAIRAM ASHRAM, BHIMGODA, GANGA GHAT )
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