बचपन से सुनता आया था कि लखनऊ
शहर में एक भूलभुलैया है। जब पहली बार लखनऊ आया तो समय निकाल कर पहुंच गया देखने
भूलभुलैया। वास्तव में लखनऊ शहर में स्थित बड़ा इमामबाड़ा को ही लोग भूलभुलैया
कहते हैं। इसका नाम आसफी इमामबाड़ा भी है। इस बड़े इमामबाड़े में आने वाले लोग
हमेशा ही भूलभुलैया में गुम हो जाते हैं। तो इसे अच्छी तरह घूमने के लिए लोगों को गाइड का
सहारा लेना पड़ता है।
वास्तव में भूलभुलैया के अंदर प्रकोष्ठों ओर मार्गों का ऐसा जाल है जो घूमने वाले को भ्रम में
डाल देता है। इसके बाद बाहर निकलने का मार्ग का ज्ञान होना कठिन होता है। आपको
सारे दरवाजे और गलियारे एक ही जैसे नजर आते हैं। घूमते घूमते आप वहीं पहुंच जाते
हैं जहां से चले थे।
बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण –
बड़ा इमामबाड़ा के निर्माण की कहानी दिलचस्प है। इसका निर्माण अकाल पीड़ितों को
रोजगार देने के लिए किया गया था। तब इसके निर्माण में कुल 10 लाख की लागत आई थी।
इसे नवाब आसिफुद्दौला ने 1784 में बनवाया था। इसके वास्तुकार किफायतउल्ला थे। तब
लखनऊ में भारी सूखा पड़ा था। तो मजदूरों को रोटी देने के लिए इस विशाल इमारत का
निर्माण शुरू कराया गया। बड़ा इमामबाड़ा के निर्माण में मुगल और राजपूत वास्तुकला
का मेल दिखाई देता है। वास्तव में पूरी इमारत न कोई मस्जिद है न कोई मकबरा है। पर
इसके परिसर में एक मसजिद और बावड़ी जरूर है।
इसका विशाल गुंबदनुमा हाल 50
मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। इसकी चौड़ाई 16 मीटर है। इसकी छत को बिना किसी बीम
या गार्डर के सिर्फ इंटे जोड़ कर बनाया गया है। जो अपने अपने आप में एक अजूबा है। भूलभुलैया में तीन बड़े कमरे हैं। इसकी दीवारों के छुपे हुए लम्बे गलियारे हैं।
दीवारें लगभग 20 फीट मोटी हैं। इस भूल भुलैया में 1000 छोटे
छोटे रास्तों का मकड़जाल है जिसमें से कुछ रास्ते बंद हैं। इन्ही रास्तों में लोग
भूल जाते हैं।
अगर आप बड़ा इमामबाडा में पहुंचे हैं तो अधिकृत गाइड के साथ पूरी
इमारत को घूमें। गाइड आपको भूलभुलैया में ले जाकर छोड़ देगा और आपको खुद से बाहर
निकले को कहेगा। आप इसमें असफल होंगे, फिर कहीं से वही गाइड अवतरित हो जाएगा और
आपको बाहर निकाल ले जाएगा।
बावड़ी और आसफी मसजिद -
बड़ा इमामबाड़ा से जुड़ी हुई एक बावड़ी है जो पांच मंजिलों की है। इस बावड़ी में
गोमती नदी से पानी आने का इंतजाम किया गया था। इमामबाड़ा के अंदर एक आसफी मसजिद भी
है। इस मसजिद में गैर मुस्लिमों का प्रवेश प्रतिबंधित है। इमामबाड़ा के बाकी
हिस्सों में सारे लोग घूम सकते हैं।


- vidyutp@gmail.com
बढिया जानकारी
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : अनंत पई और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी। मैंने इसके विषय में पहली बार अपने दोस्त से सुना था जो अक्सर लखनऊ जाता रहता है। इसके पश्चात सत्यजित रे का लघु उपन्यास राजा की अँगूठी में इसे पढ़ा था। कमरे में बैठकर फेलुदा के साथ इमामबाड़ा घूम तो आया था लेकिन खुद उधर जाकर देखने की इच्छा बलवती हो गयी थी। उम्मीद है जल्द ही उधर जाऊंगा।
ReplyDelete(duibaat.blogspot.com)